बैंक जमा धन पर ब्याज कम और ज्यादा कर धन को घटाते बढ़ाते रहते हैं। जमाराशि को दुगुना, तिगुना करने की स्कीम्स चलती है लेकिन अभी तक किसी बैंक ने जमा धन को सौ गुना करने का दावा नहीं किया है वो भी मात्र 28 वर्षो में, लेकिन क्रिकेट के खेल में रू0 100 गुना बढ़ा है। भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने इनाम में दी जाने वाली राशि को 28 वर्षो में 100 गुना कर दिया है। वही प्रतियोगिता का स्तर, वही खेल, वही देश और वही बोर्ड है सब समान है अगर कुछ बदला है तो वह है ईनाम की राशि। एक लाख से बढ़कर एक करोड़ हो गई। गौरतलब है कि भारतीय क्रिकेट टीम ने पहली बार विश्वकप जीतकर 25 जून 1983 को लार्डस में इतिहास रचा था। तत्कालीन कप्तान हरफनमौला आलराउण्डर कपिलदेव के धुरधरों ने लार्डस में वेस्टइंडीज को हराकर इतिहास रचा था। 2 अपै्रल 2011 को टीम इंडिया के कप्तान धोेनी के रणबांकुरों ने विश्वकप जीतकर इतिहास को दोहराया और भारतीयों के लिए यादगार बना दिया। 1983 में कपिलदेव की अगुवाई वाली टीम इंडिया विश्वकप जीतने के बाद स्वदेश लौटी। ऐतिहासिक जीत पर भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड ने विजेता खिलाड़ियों को एक-एक लाख रू0 ईनाम देने की घोषणा की। विजेताओं को पुरस्कार स्वरूप दिये जाने वाले धन की व्यवस्था के लिए टीम के स्वदेश वापसी पर देश की राजधानी नई दिल्ली में कन्र्सट आयोजित किया गया। आयोजित समारोहं में दुनिया की नामचीन हस्तियों के साथ सुर की कोकिला के नाम से ख्याति प्राप्त लतामंगेश्कर को विशेष रूप से बुलाया गया। ’’कन्र्सट’’ के लिए जब लता ने फीस लेने से इन्कार कर दिया था तब जाकर 20 लाख रू0 एकत्रित हो पाए थे, जिससे क्रिकेट के सितारों को ईनाम राशि बांटी गई। बेशक उस समय में लखपति बनना आज के करोड़पति बनने के बराबर है। इतिहास रचने वाली टीम के खिलाड़ियांे को मिला एक-एक लाख और इतिहास दोहराने वाली टीम के खिलाड़ियों को मिला एक-एक करोड़ तथा बीसीसीआई ने सपोर्ट स्टाफ को को 50-50 लाख रू0 व चयनकर्ताओं को 25-25 लाख रू0 बतौर ईनाम देने की घोषणा की। टीम धौनी के विश्वकप जीतते ही बीसीसीआई सहित देश व प्रदेश की सरकारों ने भी पुरस्कार देने की झड़ी लगा दी। नकद राशि, मकान, प्लाट, कार आदि देने वालों की लाइन लगी है। अनेक ऐतिहासिक घटनाएं भी इस मैच के दौरान घटी हैं जो सदियों में कभी कभार घटती हैं। ऐसी अनोखी-अनुठी घटनाओं में शामिल है एक बोलने में अक्षम बालक का बोल पड़ना। इसे कुदरत का करिश्मा कहें, चमत्कार कहें अथवा खुशी का चर्माेत्कर्ष कहें चाहे जो कहें। इस जीत ने एक ऐसे बच्चे को बोलना सिखाया जो शारीरिक रूप से विकलांग तथा बोलने में अक्षम था। भारतीय टीम के विश्व विजेता बनने पर जहां देश भर में जश्न का माहौल है वहीं मुम्बई के मंडाविया परिवार के लिए यह खुशी अनोखे ढंग से यादगार है। भारतीय टीम की जीत ने शारीरिक रूप से विकलांग और बोलने में अक्षम 11 वर्षीय हितांश मडाविया को इतना उत्साहित कर दिया कि वह बोल पड़ा। जश्न में डूबे परिवार वालों ने जब हितांश को ’’इण्डिया’’ बोलते सुना तो उनकी खुशी का ठिकाना नही रहा। हितांश की मांॅ श्रीमती रूपल कहती हैं कि भारत के मैच के दौरान हितांश काफी उत्साहित हो जाता है और उसकी गतिविधियाॅं बढ़ जाती हैं। वह टीम इण्डिया और सचिन तेंदुलकर का जबरदस्त फैन है। उसका इलाज कर रही फिजियोथेरेपिस्ट पुष्पा शाहरी बालक के बारे में कहती हैं कि वह बिना सहारे के बैठ भी नहीं पाता है फिर भी अपने भारत का पूरा मैच देखता है। सचिन का नाम सुनते ही उसका चेहरा खिल जाता है। इस अवस्था में खेल के प्रति उसके उत्साह और सक्रियता को देखते हुए परमपिता परमात्मा ने उसे ईनाम में बोलने का तोहफा देकर नवाजा है। कुछ और उल्लेखनीय घटनाएं इस जीत के साथ जुड़ गई हैं जैसे 25 जून 1983 को जब भारत पहली बार विश्व विजयी बना उस दिन शनिवार था, दूसरी बार 2 अपै्रल 2011 को जब विश्वकप जीता तब भी शनिवार ही था। दोनों फाइनल के दिनों में समानता होने पर प्रशंसक परिणाम में भी समानता तलाश रहे थे जो सही साबित हुई। दो विकेट कीपर कप्तानों के बीच मुकाबला विश्वकप के इतिहास में पहली बार हुआ जब फाइनल में पहुंची दोनों टीमों के कप्तान विकेट कीपर रहे। इस विश्वकप मैच में खेली टीमों के जिन कप्तानों के नाम की शुरूआत ’’एस’’ अक्षर से हुई वे भाग्यशाली नहीं रहे जैसे शाकिब (बंग्लादेश) सेमी (वेस्टइंडीज) स्टारस (इंग्लैंड) स्मिथ (दक्षिण अफ्रिका) शाहिद (पाकिस्तान) और संगकारा (श्रीलंका) ने भी हार का स्वाद चखा है। इसके पूर्व श्रीलंका और इंण्डिया के बीच पाॅंच यादगार मैच और हो चुके हैं। 13 मई 1996 को कोलकता में विश्वकप सेमीफाइनल खेला गया श्रीलंका जीती। दर्शकों के उग्र प्रदर्शन और हालात की नाजुकता को भांपते हुए श्रीलंका को विजयी घोषित कर दिया। 26 मई 1999 को टाॅंनटन में भारत ने मैंच जीता। सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़ ने यादगार पारी खेलते हुए 318 रनों की साझेदारी की। 29 अक्टुबर 2000 शारजहां में श्रीलंका जीता। भारतीय टीम आज तक के न्यूनतम स्कोर 54 रन पर सिमट गई थी। 15 दिसम्बर 2009 को राजकोट में भारत जीता। 16 अगस्त 2010 दांबुला में खेले गये मैंच में भारत जीता। इस मैच को नोबाल के लिए याद किया जाता है। भारत को जीत के लिए मात्र एक रन चाहिए था वीरेन्द्र सहवाग 99 रन पर खेल रहे थे उस समय सहवाग ने अन्तिम गेंद पर छक्का जड़ दिया लेकिन वह शतक पूरा नहीं कर पाया क्योंकि गेंदबाज रणदीव ने नोबाल फेंककर भारत को विजयश्री उपहार में दे दी थी। अगले विश्वकप का मैच 4 वर्ष बाद 2015 में आस्टेªलिया और न्यूजीलैंड में खेला जाएगा। भारतीय टीम को क्रिकेट में अपना एक छत्र राज कायम रखना है तो उसे ईश्वर का सुमिरन करते हुए सजगता के साथ नियमित कठिन परिश्रम करते रहना होगा। कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।
लेखक- पावरलिफ्टिंग के अन्तर्राष्ट्रीय कोच रहे हैं
वर्तमान मेंउ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं।
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