भारत एवं संपूर्ण विश्व का बहाई समुदाय ईरान में बंदी सात बहाई नेताओं के 20 साल की पूर्व सजा बहाल होने पर स्तब्ध है। अभी छः महीने पहले ही ईरान की अपील कोर्ट द्वारा यह सजा घटाकर 10 वर्ष किए जाने की सूचना इन बंदी नेताओं को दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ में अन्तर्राष्ट्रीय बहाई समुदाय की प्रमुख प्रतिनिधि सुश्री बानी दुग्गल ने बताया कि यह निश्चित है कि जेल के अधिकारियों ने इन सात लोगों को सूचित किया है कि अपील कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया गया है। हालाँकि उन्हें अभी तक इसकी कोई लिखित सूचना नहीं मिली है, इसलिए हम यह नहीं बता सकते कि किस आधार पर उनकी कम की गई सजा रद्द की गई, शायद ईरान के महाधिवक्ता ने अपील कोर्ट के फैसले को शरीयत के विरुद्ध पाते हुए इसके खिलाफ अपील की थी।
डा. भारती गाँधी, प्रमुख बहाई धर्मावलम्बी, लखनऊ ने आज बताया कि पिछले महीने ही ईरानी दूतावास ने ब्रुसेल्स में दस्तावेज पेश कर पूरी दुनिया को सूचित किया था कि जासूसी, राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु खतरा एवं अवैध धर्म स्थापित करने के झूठे आरोपों के साबित न होेने पर इन सातों बहाई नेता बंदियों की सजा 20 वर्ष से घटाकर 10 वर्ष कर दी गई है। उन्होंने कहा कि इस 10 वर्ष की सजा को पुनः 20 वर्ष कर देने में ईरानी सरकार की गलत मंशा, धोखा एवं धूर्ततापूर्ण कार्यवाही जगजाहिर है जो उनके द्वारा इस केस में दिखाई जा रही है। उनकी सजा के प्रारम्भिक काल में भी उन्हें 30 महीनों के लिए बंदी बनाकर रखा गया था जबकि उन्हें या उनके वकील को आरोप पत्र भी नहीं दिया गया।
भारत के करीब 2 करोड़ बहाइयों ने इन सात ईरानी बहाई नेताओं की 2008 में गिरफ्तारी पर कड़ा विरोध जताया तथा भारत के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले बहाई न्यायिक पदाधिकारियों, धार्मिक नेताओं, शिक्षाविदों, फिल्म जगत, स्वयंसेवी संस्थाओं इत्यादि ने इसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताया। डा. भारती गाँधी ने कहा कि हम सभी बहाई समुदाय के लोग संपूर्ण भारतवासियों एवं विशेषकर भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह ईरानी सरकार पर दबाव डालें कि वह इन निर्दोष बहाई बंदी नेताओं की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करायें क्योंकि उनके इस कृत्य पर पूरी दुनिया की नजर है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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