जनसुनवाई - अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वननिवासी(वनाधिकारों की मान्यता)कानून-2006

Posted on 03 April 2011 by admin

100_2690राजधानी में आदिवासियों के हितों के प्रति सरकार का ध्यान आक्रसित करने हेतु सहकारिता भवन में आयोजित जन सुनवाई कार्यक्रम वनाधिकार से वंचित उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के वन गूजरों से लेकर बुन्देलखण्ड के चित्रकूट, ललितपुर के शहरिया तथा कोल आदिवासियों के साथ साथ वनटंगिया तथा थारू आदिवासियों के साथ सरकारी मशीनरी द्वारा लगातार किये जा रहे उत्पीड़न के दर्दनाक किस्से जब महिलाओं ने मंच पर आकर सुनाये तो सारा वातावरण करूणा मय बन गया। वनों पर आश्रित समुदायों के वनाधिकारों को मान्यता देने वाला कानून ‘‘अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वननिवासी(वनाधिकारों की मान्यता)कानून-2006‘‘ को 1 जनवरी 2008 से देशभर में लागू  किया जा चुका है। उŸार प्रदेश में भी सरकार द्वारा इसे लागू कराने के लिये हमारे संगठन राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच के साथ लगातार वार्तारत रहते हुये सकारात्मक दिशा में कई तरह के प्रयास व जिलास्तर पर प्रशासन तथा वनविभाग के लिये कई तरह के आदेश व निर्देश जारी किये हैं। लेकिन स्थानीय स्तर पर वनविभाग व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा राज्य सरकार के निर्देशों का अनुसरण न करके लगातार इस केन्द्रीय विशिष्ट कानून के क्रियान्वयन की प्रक्रिया को बाधित करने का काम किया जा रहा है। वनाधिकार कानून के तहत वनसमुदायों को मान्यता प्राप्त अधिकार सौंपने की बजाय लोगों को जंगलक्षेत्रों से बेदख़ली के आदेश जारी किये जा रहे हैं, समुदायों द्वारा प्रस्तुत किये गये दावों को निरस्त करने का अधिकार न होने के बावज़ूद बड़ी संख्या में निरस्त किया जा रहा है, सामुदायिक अधिकारों की बात पर एकदम चुप्पी है, लोगों को लघुवनोपज के अधिकार से वंचित किया जा रहा है और जंगल में अपनी ज़रूरतों का सामान लेने गये लोगों को लकड़ी काटने व शिकार आदि के मुकदमों में अंग्रेजी काल के कानूनों का सहारा लेकर झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। वनविभाग व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ऐसा करके वन समुदायों को एक बार फिर उन्हीं ऐतिहासिक अन्यायों की भट्ठी में झोंकने का काम खुले आम किया जा रहा है, जिन्हें स्वीकार करते हुये देश कीे संसद ने यह कानून पारित किया है। सरकार भी इन सब कारनामों को देखते जानते हुये सिर्फ अधिकारियों को चेतावनी देने के अलावा इनके खिलाफ कोई बहुत ठोस कदम नहीं उठा रही है।

100_2701इस कार्यक्रम में वनाधिकार कानून के सफल क्रियान्वयन के रास्ते में आने वाली रुकावटों व वनाश्रित समुदायों के विभिन्न तरह से किये जाने वाले उत्पीड़न से सम्बंधित मामलों का व वनाश्रित समुदायों के ऊपर ब्रिटिश काल में बनाये गये भारतीय वन अधिनियम-1927 के तहत लगाये गये झूटे मुकदमों का प्रस्तुतिकरण किया जा रहा है। चूंकि वनविभाग द्वारा वनाधिकार कानून के आ जाने के बाद भी लोगों पर इन मुकदमों को लादा जाना बन्द नहीं किया गया है, जो कि वनाधिकार कानून का सीधा उलंघन है व जिससे देश के तमाम वनक्षेत्रों में एक संवैधानिक संकट पैदा हो रहा है। प्रदेश की बसपा सरकार ने अक्टूबर 2010 में जनपद सोनभद्र में 7000 मुकदमों को वापिस लेने की घोषणा की थी। लेकिन स्थानीय स्तर पर वनविभाग व प्रशासन द्वारा इन सब मामलों में लोकअदालत लगा कर आदिवासियों व अन्य परम्परागत समुदाय पैसा लेकर अपराध स्वीकार कराया जा रहा है व उनका आपराधिक इतिहास बनाया जा रहा है जिससे कि वनाधिकार कानून की प्रस्तावना में दिये गये ऐतिहासिक अन्याय की पुर्नावृति की जा रही है।

इस जनसुनवाई में ऐसे कई गंभीर मामले जूरी सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत किये गये हैं, जिसमेंः-
उ0प्र0 के जनपद सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर पर वनविभाग व पुलिस विभाग द्वारा आदिवासीयों को माओवादी बना कर झूठी कार्यवाही करने के केस शामिल है।ं।
इन्हीं जनपदों से वनाश्रित समुदाय के ऊपर लदे करीब 10000 फर्जी केसों की सूची भी जूरी सदस्यों के समक्ष रखी जायेगी। इन मुकदमों में 80 फीसदी संख्या महिलाओं की है।
प्रदेश के सात जनपदों के टांगिया गांवों की समस्या के भी केस शामिल हैं। यह गांव आज भी वनविभाग के अधीन है जिन्हें अंग्रेजी शासन काल में वनों को लगाने के लिये बंधुआ मज़दूरों की तरह इस्तेमाल किया गया था। यह गांव अभी तक अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित है व देश के नागरिक तक कहलाने के लिये मोहताज हैं। इन्हें अभी तक वोट देने का भी अधिकार नहीं है। इन गांवों को राजस्व ग्रामों का दर्जा देने के लिये मुख्य सचिव के आदेश के बाद भी वनविभाग द्वारा अड़ंगा लगाया जा रहा है।
वनाधिकार कानून के तहत सामुदायिक अधिकारों को बहाल न कियेे जाने के सम्बन्ध में केस प्रस्तुत किया गया।
प्रदेश में शिवालिक की पहाड़ियों पर रहने वाले घुमन्तु जनजातीय समुदाय के वनगुजर के गंभीर मामले शामिल होगें जिन्हें कानून के लागू होने के चार साल बाद भी कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। अभी तक इनके अधिकारों को मान्यता नहीं दी जा रही बल्कि इन परिवारों को वनविभाग द्वारा बेदख़ल करने की पूरी योजना बनाई जा रही है। राजा जी नेशनल पार्क के निदेशक द्वारा वनगुजरों के साथ साम्प्रदायिक व्यवहार किया जा रहा है जिसके बारे में कुछ खास केसों को इस जनसुनवाई में प्रस्तुत किया गया।
जनपद खीरी में जंगलों में रहने वाले कई थारू आदिवासीयों पर वन्य जन्तुओं के शिकार के अनेकों झूठे मामले दर्ज किये गये है जिसमें आदिवासीयों को झूठी कार्यवाही कर जेल तक भेजा जा चुका है, लेकिन असली शिकारियों की जो कि वनविभाग की मिली भगत से शिकार कर रहे हैं उनके उपर कोई भी जांच नहीं की गयी है।
इसी तरह खीरी जनपद के ही मोहम्मदी तहसील के दिलावर नगर में सरकार द्वारा ही बसाये गये बाढ़ से उजड़े परिवारों को वनाधिकार कानून लागू होने के बाद वनविभाग ने बड़ी बर्बरता के साथ उनके घरों को आग लगा दी, लोगों की पिटाई की व महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की। यह तब किया गया जब इन परिवारों के पास हाई कोर्ट का आदेश था कि इन परिवारों को उजाड़ा न जाये।
इसी तरह पलिया तहसील, खीरी के नेपाल सीमा से जुड़े फिक्सड डिमांड होल्डिंग गांव गौरी फंटा को उजाड़ने के लिये वनविभाग द्वारा पूरा माहौल बनाया जा रहा है जबकि यह गांव वनाधिकार कानून के तहत बसाये जाने चाहिये।
मिर्जापुर, चित्रकूट, बांदा में भी वनाधिकार कानून को लागू करने की प्रक्रिया न के बराबर है। सबसे बड़ी समस्या इन क्षेत्रों में बसे आदिवासी कोल समुदाय के अनुसूचित जनजाति का दर्जा न मिलना है। जिसकी वजह से वनाधिकार कानून के अनुरूप उन्हें 75 वर्ष का प्रमाण देने के लिये बाध्य किया जा रहा है। हांलाकि प्रदेश सरकार ने 50 साल तक के साक्ष्य को आधार मानते हुये मालिकाना हक़  देने की बात कही है लेकिन वनविभाग व जिलाधिकारी स्तर पर इस कानून को लागू करने की कोई भी राजनैतिक इच्छा नहीं है।
यह जनसुनवाई केवल उ0प्र0 तक सीमित नहीं है इस जनसुनवाई में उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, झाड़खंड़ के भी वनाधिकार से सम्बन्धित कई मामलों की प्रस्तुति।

ban-gujar-jan-sunyai-me-apni-samasyai-batate-huyeजनसुनवाई में प्रस्तुत किये जाने वाले केसों की सूची
1.    दिलावर नगर, मोहम्मदी तहसील, खीरी में वनविभाग द्वारा सन् 2007 में घरों को जलाने व फसलों को जलाने के सम्बन्ध में
2.    पल्हनापुर टांगीयां ग्राम, खीरी में वनाधिकार कानून की कार्यवाही को  लम्बित करना
3.    खीरी के थाना पलिया, ग्रा0 बसही व थाना चन्दन चैकी सीमा क्षेत्र में वन्य जीव-जन्तु संरक्षण अधि0 की आड़ लेकर आदिवासियों का उत्पीड़न का मामला
4.    गौरी फंटा, फीक्सड डीमांड होल्डिंग ग्राम को वनविभाग द्वारा बेदखली के नोटिस ज़ारी करना
5.    ग्राम ढकिया, जनपद पीलीभीत में वनविभाग द्वारा बेदखली का मामला
6.    जनपद सहारनपुर,गोरखपुर,महराजगंज,खीरी के टांगीयां गांव को वनाधिकार कानून के तहत राजस्व ग्राम का दर्जा न देने का मामला
7.    गोंडा जनपद में पांच टांगीयां ग्रामों में वनविभाग द्वारा वनाधिकार कानून लागू होने के बाद भी ग्रामीणों के खेतों में गडडे खोदे जाने व बंधुआ मज़दूरी प्रथा को ज़ारी रखने का मामला
8.    उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड़ के शिवालिक पहाड़ीयों में घुमन्तु जनजाति समुदाय वनगुजरों के वनाधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने का मामला
9.    जनपद चन्दौली में गोंड़ व अन्य आदिवासीयों को अनुसूचित जनजाति के दर्जे में शामिल न करने का मामला
10.    मगरदह टोला, ग्राम सत्तद्वारी जनपद सोनभद्र में वनविभाग व सांमतों द्वारा आदिवासीयों के घरों व फसलों को जलाने व महिलाओं के साथ बदसलूकी का मामला
11.    राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच के कार्यकर्ता रामशकल गोंड़ को माओवादी बना कर जेल में ठूसने का मामला
12.    भैसइया नाला, ग्राम पनिकप, सोनभद्र में वनविभाग व सांमती तत्वों द्वारा ग्रामीणों के घर व फसल जलाने का मामला
13.    जनपद चित्रकूट में डबल एंट्री का मामला
14.    जनपद सोनभद्र में वनविभाग व पुलिस विभाग द्वारा आदिवासी, अन्य परम्परागत समुदाय व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर करीब 10000 फर्जी मुकदमें लादने का मामला

उक्त के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, तथा मध्य प्रदेश से अन्य वनविभाग द्वारा वनाधिकार अधिनियम के उल्लघंन के मामले जूरी के सामने रखने के लिये तकरीबन हजारों लोग अपने-अपने दमन, शोषण व अत्याचारों के मामलों को जूरी के सामने रखा।

इस जनसुनवाई में ज़ूरी मैम्बर हैंः- श्री मन्नूलाल मरकाम (रिटायर्ड न्यायाधीश जबलपुर, सदस्य राष्ट्रीय वनाधिकार संयुक्त समीक्षा समिति), श्री रवि किरण जैन (वरिष्ठ अधिवक्ता इलाहाबाद उच्च न्यायालय), सुश्री स्मिता गुप्ता (सदस्य वनाधिकार कानून ड्राफ्टिंग कमेटी) एवं सुश्री मणिमाला (निदेशक गाॅधी स्मृति दर्शन-नई दिल्ली)

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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