राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव अनिल दुबे ने लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालय के सभी पाठ्यक्रमों की फीस बढ़ाने के फैसले को पिछड़ा, गरीब व दलित विरोधी कदम बताते हुए कहा है कि विश्वविद्यालय को घाटे से उबारने के नाम पर छात्र-छात्राओं से फीस बढ़ाकर वसूली करना उचित नहीं हैं इसका पुरूजोर विरोध किया जायेगा।
आज जारी अपने बयान में श्री दुबे ने कहा कि एक तरफ देश व प्रदेश की दोनों सरकारें समाज के हर वर्ग के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा दिये जाने की घोषणाएं कर रही हैं वही दूसरी तरफ लखनऊ विश्वविद्यालय जहां प्रदेश के सभी वर्गो के छात्र-छात्रायें उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं उस विश्वविद्यालय ने अपनी सभी 174 पाठ्यक्रमों की फीस में लगभग दो गुनी वृद्वि करके अपनी गांव और गरीब विरोधी मानसिकता का परिचय दिया है। विश्वविद्यालय के इस तुगलकी फैसले से समाज का शोषित, विन्चत, पिछड़ा, दलित और गरीब वर्ग उच्च शिक्षा से धन के अभाव में विन्चत रह जायेगा और उच्च शिक्षा केवल अभिजात वर्ग की होकर रह जायेगी । और सरकार का सर्वशिक्षा अभियान का नारा आम आदमी के लिये दिवास्वप्न बनकर ही रह जायेगा।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के नागरिक भीषण मंहगाई की मार से पहले से ही त्रस्त है और दो वक्त की रोटी और दाल के लिये संघर्षरत है। ऐसे मे ंलखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा फीस में दो गुनी करना यहां तक कि माइग्रेसन, बैकपेपर, विलम्ब व परीक्षा शुल्क में भी भारी वृद्वि करके मंहगाई की भीषण मार से पहले से त्रस्त अभिभावकों की कमर ही टूट जायेगी।
उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन से अपने इस फैसले पर पुर्नविचार कर जनहित में वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन अपने घाटे की पूर्ति के लिये छात्र-छात्राओं का दोहन न करें और अन्य मदोां या सरकार से घाटे की प्रतिपूर्ति की मांग करें। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय लोकदल इस सम्बन्ध मे प्रदेश महामहिम राज्यपाल श्री बी0एल0 जोशी से शीध्र मुलाकात कर उनसे इस फैसले को वापस कराने की मांग करेगा।