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अनुसूचित जाति/जनजाति के कार्मिकों को पदोन्नति में आरक्षण तथा पारिणामिक ज्येष्ठता से सम्बन्धित मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा दिये गये आदेश दिनांक 04 जनवरी, 2011 के सम्बन्ध में प्रदेश सरकार द्वारा दायर की गई विशेष याचिका मा0 उच्चतम न्यायालय में लिम्बत

Posted on 29 March 2011 by admin

मा0 उच्चतम न्यायालय के यथास्थिति बनाये रखने के निर्देश
राज्य सरकार द्वारा प्रकरण में प्रभावी पैरवी की जा रही हैै
प्रकरण से जुड़े पक्ष मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करें
राज्य सरकार की दृष्टि में सभी अधिकारी व कर्मचारी एक समान
राज्य सरकार सभी वर्गो के कर्मचारियों के हितों के प्रति पूरी तरह से सजग एवं संवेदनशील

उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जाति/जनजाति के कार्मिकों को पदोन्नति में आरक्षण तथा पारिणामिक ज्येष्ठता से सम्बन्धित मामला मा0 सर्वाेच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है। इसलिए इस प्रकरण के सम्बन्ध में राज्य सरकार की तरफ से कोई भी टिप्पणी किए जाने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन विगत दिनों में दो-तीन स्थानों पर इस प्रकरण को लेकर किए जा रहे धरना-प्रदर्शन के चलते स्थिति स्पष्ट किया जाना जरूरी है।

प्रमुख सचिव गृह, कार्मिक एवं गोपन श्री कुंवर फतेह बहादुर आज यहां लाल बहादुर शास्त्री भवन स्थित मीडिया सेन्टर में पत्रकारों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कार्मिकों को पदोन्नति में आरक्षण की सुविधा तथा पारिणामिक ज्येष्ठता का लाभ दिलाने हेतु आवश्यक व्यवस्था की है। इसके लिए उ0प्र0 लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षण) अधिनियम 1994 की व्यवस्थाओं के तहत पदोन्नतियों में अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए आरक्षण अनुमन्य कराया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा 85वें संशोधन के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक ज्येष्ठता नियमावली में दिनांक 14 सितम्बर, 2007 को तृतीय संशोधन करते हुए अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के कार्मिकों को पारिणामिक ज्येष्ठता प्रदान किये जाने का प्राविधान किया गया है।
प्रमुख सचिव ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किये गये इन प्राविधानों को मा0 उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इस सम्बन्ध में मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ पीठ द्वारा गत 04 जनवरी 2011 को दिए गए निर्णय के सम्बन्ध में प्रदेश सरकार द्वारा दाखिल की गई एक विशेष याचिका मा0 उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्तमान में विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि इस तरह यह प्रकरण वर्तमान में मा0 उच्चतम न्यायालय के समक्ष अभी भी लिम्बत है। मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 28.02.2011 को इस प्रकरण में निम्न अनन्तिम आदेश पारित किया गया है :-
“State Quo, as it exists today, shall be maintained by the parties until further orders.”
प्रमुख सचिव ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा मा0 उच्चतम न्यायालय में लिम्बत अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण से सम्बन्धित पारिणामिक ज्येष्ठता सम्बन्धी इस याचिका  की प्रभावी पैरवी की जा रही है।

प्रमुख सचिव कार्मिक ने कहा कि राज्य सरकार के सञ्ज्ञान में यह तथ्य आया है कि पिछले कुछ दिनों से अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण तथा पारिणामिक ज्येष्ठता के प्रकरण में भ्रान्तियां फैलाकर लोगों को बरगलाने का प्रयास किया जा रहा हैं तथा इस मुद्दे को लेकर प्रदेश की कानून-व्यवस्था की स्थिति को खराब करने की चेष्टा की जा रही है तथा  धरना-प्रदर्शन, रैली, जुलूस व आन्दोलन के नाम पर आम जीवन को अस्त-व्यस्त करने तथा रेल यातायात को रोकने का भी प्रयास किया जा रहा है।

श्री कुंवर फतेह बहादुर ने कहा कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शान्तिपूर्ण एवं अनुशासित ढंग से धरना-प्रदर्शन करने का सबको हक है, लेकिन धरना-प्रदर्शन तथा रैली, जुलूस व आन्दोलन के नाम पर प्रदेश की कानून-व्यवस्था खराब करने तथा निजी व सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने सम्बन्धी घटनाओं को सञ्ज्ञान में लेकर ही मा0 उच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका संख्या-40831/09 मो0 सुजाउद्दीन बनाम उ0प्र0 सरकार व अन्य में आदेश दिनांक 02-12-2010 में निम्न निर्देश दिए हैं कि “As and when any incident of damage to public property takes place, if such agitation/procession etc. has been called at the invitation or instance of a political party or a sitting or former people’s representative, report shall be registered by concerned police station against such political party/person by name.”

मा0 सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा भी ऐसे प्रकरणों में अधिकतम दण्ड दिये जाने के निर्देश दिये गये हैं- “…………maximum punishment shall be imposed. For a lenient view, reasons shall be assigned.”

श्री कुंवर फतेह बहादुर ने सभी पक्षों से अपील करते हुए कहा है कि यह प्रकरण वर्तमान में मा0 सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अभी भी लिम्बत है, अत: सभी पक्ष मा0 सर्वाेच्च न्यायालय के अन्तिम निर्णय आने तक इस मामले में धैर्य बनाये रखें तथा ऐसा कुछ भी न करें, जिससे की प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो और आम जनता को कठिनाइयों का सामना करना पड़े। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की दृष्टि में सभी अधिकारी व कर्मचारी एक समान है और राज्य सरकार सभी वर्गो के कर्मचारियों के हितों के प्रति पूरी तरह से सजग एवं संवेदनशील है।

प्रमुख सचिव ने स्पष्ट किया कि संविधान के 85वें संशोधन 2001, जिसमें परिणामी ज्येष्ठता को माना गया है, के आधार पर प्रदेश सरकार ने दिनांक 18.10.2002 को अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कार्मिकों को पारिणामिक ज्येष्ठता का लाभ देने के प्रयोजन से ज्येष्ठता नियमावली-1991 प्रथम संशोधन द्वारा दिनांक 18-10-2002 को नियम ´8-क´ जोड़ा गया था। कालान्तर में दिनांक 13 मई, 2005 को सरकार द्वारा ज्येष्ठता (प्रथम संशोधन नियमावली-2002) में जोड़े गये नियम 8-क को निकाल दिया गया था।

संविधान में हुए 85वें संशोधन एवं 77वें, 21वें और 22वें संशोधनों की वैधता/संवैधानिकता के सम्बन्ध में योजित याचिका एवं नागराज व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य में मा0 सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा दिनांक 19 अक्टूबर 2006 को पारित निर्णय में इन संविधान संशोधनों को वैध घोषित किया गया। मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर सम्यक विचारोपरान्त राज्य सरकार द्वारा ज्येष्ठता नियमावली 1991 में पुन: संशोधन करते हुए वर्ष 2007 में नियम 8-क नियमावली 1991 में तृतीय संशोधन द्वारा बढ़ा दिया गया जिसे 17 जून 1995 से प्रभावी किया गया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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