पिश्चमी उ0 प्र0 के 24 जिलों के 397 प्राचीन स्मारक के अनुरक्षण का दायित्व
स्मारकों के साथ उनके परिवेश पर भी ध्यान दें-अभिजात
नव गठित “राश्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण (National Monuments Authority) के कमिश्नरी परिसर में स्थापित कार्यालय का मण्डलायुक्त अमृत अभिजात ने फीता काटकर शुभारम्भ किया। इस अवसर पर प्राधिकरण की पहली बैठक में पावर पाइन्ट प्रिजेन्टेशन द्वारा प्राधिकरण के कार्यो और इसके अन्तर्गत राश्ट्रीय संस्मारको एवं पुराताित्वक स्थलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।
श्री अभिजात ने कहा कि व्यक्ति का परिवेश भी उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग होता है जिसके बिना उसकी पहचान अधूरी है। इसी प्रकार स्मारकों के रख रखाव के साथ उनके परिवेश की सुव्यवस्था पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। उन्होंने स्मारकों के आसपास अतिक्रमण आदि पर ध्यान देने के लिए निर्देश दिये।
उन्होंने बताया कि प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 में दिनांक 30.03.2010 की अधिसूचना द्वारा प्रमुख संशोधन एवं विधिमान्यकरण किये गये हैं, जो राश्ट्रीय महत्व के घोषित प्राचीन संस्मारकों और पुरातत्ववीय स्थलों के परिवेश अथवा मूल विन्यास के अनुरक्षण के अलावा अनधिकृत निर्माण और अवैध अतिक्रमणों को सख्ती से रोकने से सम्बन्धित है। इस अधिनियम के अन्र्तगत निर्माण से सम्बन्धित गतिविधियों के लिए आवेदन प्राप्त करने एवं अनुमति प्रदान करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा ´´राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण´´ गठित करने का प्रावधान है और आयुक्त, आगरा मण्डल, को सक्षम प्राधिकारी े नामित किया गया है। आगरा मण्डल के अधीन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 24 जिलों यथा आगरा, अलीगढ़, औरैया, बागपत, बिजनौर, बरेली, बदायंू, बुलन्दशहर, एटा, इटावा, फरूZखाबाद, फिरोजाबाद, गाजियाबाद, हाथरस(महामाया नगर), ज्योतिब फुले नगर, काशीराम नगर (कासगञ्ज), कन्नौज, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ, मुरादाबाद, मुज़फ्फर नगर, पीलीभीत एवं सहारनपुर में व्याप्त 397 राश्ट्रीय महत्व के प्राचीन संस्मारक एवं पुरातत्वीय स्थलों के प्रतिनिषिद्व अथवा विनियमित क्षेत्र में किसी भी प्रकार के निर्माण/नव-निर्माण/मरम्मत/जिणोZद्धार/सार्वजनिक निर्माण/पुननिZर्माण अथवा खनन कार्य हेतु अनुमति प्राप्त करने हेतु भारत सरकार द्वारा नामित सक्षम प्राधिकारी, आयुक्त, आगरा मण्डल, आगरा को सीधे आवेदन किया जा सकता है।
अधीक्षण पुरातत्व विद आई.डी.द्विवेदी ने इस अधिनियम की मुख्य बातों की जानकारी देते हुए बताया कि संरक्षित स्मारकों और संरक्षित क्षेत्रों के न्यूनतम ´प्रतिनिषिद्व क्षेत्र´ और ´विनियमित क्षेत्र´ की सीमाएं संरक्षित क्षेत्र से क्रमश: 100 मीटर और प्रतिनिषिद्व क्षेत्र के आगे 200 मीटर निर्धारित की गई है। प्रतिनिषिद्व क्षेत्र में किसी सार्वजनिक परियोजना अथवा अन्य किसी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं है। ऐसा करने पर दो साल तक कारावास अथवा एक लाख रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनों किये जा सकते हैं। विनियमित क्षेत्रों में सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना निर्माण, नवनिर्माण/मरम्मत /जीणोZद्धार आदि करने पर या सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी अनुमति की शर्तों का उल्लंघन करने पर दो साल तक कारावास अथवा एक लाख रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनों किये जा सकते हैं। प्रतिनिषिद्व क्षेत्र में 16 जून, 1992 से पूर्व हुये निर्माण की मरम्मत/जीणोZद्वार/नवीनीकरण तथा विनियमित क्षेत्र में मरम्मत/जीणोZद्वार/नवीनीकरण/निर्माण/पुननिर्माण आदि की अनुमति सक्षम प्राधिकारी से प्राप्त करना अनिवार्य है।
श्री द्विवेदी ने बताया 23 जनवरी 2010 के बाद, जिस किसी के द्वारा किसी भी प्रकार का निर्माण सक्षम प्राधिकारी के पूर्व अनुमति के बिना या विनियमित क्षेत्र में सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई अनुमति का उल्लन्धन करता है तो वह दो वर्ष का कारावास या एक लाख रूपये जुर्माना या दोनों, दण्ड का भागी होगा। अधिक जानकारी हेतु विवरण पुरातत्व विभाग की वेबसाइट - www.asi.nic.in पर उपलब्ध है।
इस अवसर पर अपर आयुक्त नागेन्द्र प्रताप एवं विभिन्न विभागों के अधिकारी उपस्थि थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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