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अमीर खुसरो व कबीर की रचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन जरूरी - प्रो0 मुजीब रिज़वी

Posted on 25 March 2011 by admin

मा0 कांशीराम जी उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय द्वारा उर्दू-हिन्दी साहित्य के विकास में अमीर खुसरो और कबीर का योगदान विशय पर  विषेश व्याख्यान

देश ओर देश के बाहर हो रही घटनाओं को ध्यान में रखते हुए सूफी सन्त अमीर खुसरो और सन्त कबीर की रचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन जरूरी है क्योंकि दोनों कवियों ने सामाजिक सौहार्द की बात कही है। सन्त कबीर ने कट्टर पन्थ पर चोट की और सीधे सादे शब्दों में लोगों को जोड़ने का काम किया।

यह बात आज यहां लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागर में मा0 श्री कांशीराम जी उर्दू, अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय द्वारा फख़रूद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी के सहयोग से ´´उर्दू-हिन्दी साहित्य के विकास में अमीर खुसरो और कबीर का योगदान´´ विशय पर आयोजित विषेश व्याख्यान देते हुये जामिया मििल्लया इस्लामिया, नयी दिल्ली के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 मुजीब रिज़वी ने कही। उन्होंने उर्दू-हिन्दी साहित्य में अमीर खुसरो और कबीर के योगदान पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि विश्व में बढ़ रहे नव-आब़ादियात (नव-उपनिवेशवाद) तथा आतंकवाद का सामना कबीर के दोहों पर अमल करते हुए किया जा सकता है। सामाजिक कट्टरता के द्वारा नफरत के बीज बोने वाले लोगों को सन्त कबीर से सबक लेने की जरूरत है। प्रो0 रिज़वी ने कहा कि अमीर खुसरो ने अपनी मसनवी, गज़लों और कह-मुकरनियों के जरिये हिन्दुस्तान के आम लोगों की जीवन-शैली को दूर-दूर तक पहुंचाया। साथ ही उन्होंने देश के प्रति अपने लगाव और मुहब्बत का भी इज़हार किया। एक जगह तो उन्होंने संस्कृत भाशा को फारसी से बेहतर बताया है। वह आम बोल-चाल की भाशा हिन्दवी के समर्थक हैं, जिसे आज उर्दू/हिन्दी कहा जाता है। उन्होंने फारसी और बोल-चाल की भाशा का ऐसा मिश्रण किया कि उसमें मिठास पैदा हुयी। यही नहीं उन्होंने कई राग-रागनियों और संगीत वाद्यों का भी अविश्कार किया।

प्रो0 रिज़वी ने कहा कि सन्त कबीर ने अपने दोहों में जाति-पॉति और ऊंच-नीच पर बेबाक टिप्पणी की। हिन्दी के प्रसिद्ध समालोचक डा0 हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी का डिक्टेटर कहा है। कबीर का कथन है कि जब खुदा एक है तो उसके नाम पर समाज को क्यों बाण्टा जा रहा है। प्रो0 रिज़वी ने कहा कि सन्त कबीर ने धार्मिक सौमनस्य तथा सामाजिक सौहार्द का सन्देश दिया, जो आज के परिवेश में बहुत जरूरी है। उनकी रचनाएं साम्प्रदायिक और आतंकवाद से टक्कर लेने में पूरी तरह सक्षम हैं।

अमीर खुसरो की रचनाओं का ज़िक्र करते हुए प्रो0 रिज़वी ने कहा कि खुसरो का कलाम सांकेतिक है और विचारों की अभिव्यक्ति इशारों में की गई है। उनकी कृतियॉं मन बहलाने के लिये नहीं हैं। इनमें साधु-सन्तों के संकेतों में आध्यात्म का सन्देश दिया गया है। यही सांकेतिक भाशा ख़ानक़ाह वालों के मतलब की थी। इसलिये उन्होंने इस सांकेतिक भाशा को अपनी अभिव्यक्ति के अनुकूल पाया। अमीर खुसरो ने जिस हिन्दवी का ज़िक्र किया है वह भाशा की चौहद्दी बताने के लिये है, जिसे खुसरो ने कोई नाम नहीं दिया। वास्तव में यह ´भाषा´ हैै, इसको बृजभाशा समझना गलत है।  ´भाषा´ बहुत सी बोलियों के मेल से अस्तित्व में आयी हैं। फारसी अल्फाज़ और फारसियत भी इसमें शामिल हो गई है। कबीर दास, सूरदास, जायसी, मीरा, तुलसीदास आदि सभी अपनी रचनाओं को ´भाषा´ में लिखा बताते हैं। वास्तव में ´भाषा´ उस समय की साहित्यिक भाषा का नाम है। इनकी कृतियां उर्दू तथा हिन्दी दोनों की संयुक्त विरासत है। अत: दोनों जुबानों में इनको पढ़ाया जाना चाहिए।

कबीर के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा करते हुए प्रो0 मुजीब रिजवी ने कहा कि कबीर दास के तीन रूप हैं : एक विष्णु भक्त जिसमें सूफियाना तत्व भी शामिल है। आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने उनमें एक भक्त को खोजा है लेकिन सरदार जाफरी ने कबीरवाणी में उन्हें सूफ़ी सिद्ध किया है। कबीर का दूसरा रूप फक्कड़ और मुंहफट सुधारक का है। तीसरे रूप में उनके कलाम में फारसी शायरी का तत्व नज़र आता है। उनका कलाम तो भाशा में है लेकिन वह फारसी अल्फ़ाज भी अपने कलाम में खूब इस्तेमाल करते हैं।

इससे पूर्व मा0 श्री कांशीराम जी उर्दू-फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अनीस अन्सारी ने विशय प्रवर्तन करते हुए इस बात पर बल दिया कि आज के परिवेश में अमीर खुसरो और कबीर की रचनाएं और भी प्रासंगिक हो गई हैं। उन्होंने प्रो0 मुजीब रिज़वी का परिचय कराते हुए कहा कि इस विशय पर व्याख्यान के लिये वह सबसे उपयुक्त वक्ता हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न सामाजिक तथा अन्य विशयों पर भी व्याख्यान आयोजित किये जायेंगे।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उ0प्र0 विधान सभा के अध्यक्ष श्री सुखदेव राजभर उपस्थित थे। इस अवसर पर से0नि0 आई0ए0एस0 अधिकारी श्री आर0के0मित्तल, प्रो0 शारिब रूदौलवी सहित नगर के गणमान्य नागरिक, शायर, लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी, अध्यापक और बड़ी संख्या में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र उपस्थित थे। सचिव उच्च शिक्षा श्री अवनीश अवस्थी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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