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हाल ही में प्रकाशित चर्चित पुस्तक “जड़, जमीन, जहान´´ की समीक्षा

Posted on 24 February 2011 by admin

book_jad-jameen-jahanजहान की बुलिन्दयों पर पहुंचने को प्रेरित करती है पुस्तक `जड़, जमीन, जहान´

प्रख्यात साहित्यकार पं. हरि ओम शर्मा `हरि´ द्वारा लिखित पुस्तक `जड़, जमीन, जहान´ का विमोचन अभी हाल ही में लखनऊ
हिन्दी साहित्य जगत में वैसे तो कहानियों की पुस्तकों की भरमार है परन्तु आज के वर्तमान परिवेश में सामाजिक व्यवस्था को जोड़े रखने व मजबूती प्रदान करने हेतु जिस लेखन की आवश्यकता है, उस पर पुस्तक `जड़, जमीन, जहान´ खरी उतरती है। इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि आजकल प्रकाशित होने वाली तमाम कहानियां जहां भौतिकतावादी पृष्ठभूमि लिए लेखक की कपोल कल्पना पर आधारित होती हैं, वहीं पं. शर्मा की कहानियां यथार्थ के धरातल से पाठकों को रूबरू कराती है। पं. शर्मा की कहानियां जहां पाठकों को हंसाती है, गुदगुदाती हैं तो वहीं आवश्यकतानुसार संवाद की कठोरता पाठक को झिड़कती भी महसूस होती है जो यह सोचने पर मजबूर करती है कि संस्कारों व जीवन मूल्यों के अभाव में हम किधर जा रहे हैं। दरअसल 176 पृष्ठों में सिमटी पं. शर्मा की 33 कहानियां में ग्रामीण व शहरी संस्कृति के अनूठे रंग समाये हैं जो पाठकों को बरबस ही आकषिZत करते हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि साहित्यजगत की अनुपम कृति पुस्तक `जड़, जमीन, जहान´ अपने लालित्य, सरल-सहज भाषा, पारिवारिक व सामाजिक परिवेश का यथार्थ शब्द-चित्रण व आकर्षक साज-सज्जा से जहां बरबस ही पाठकों के दिल को छू जाती है तो वहीं दूसरी ओर पुस्तक की विषय वस्तु पाठकों के `अन्तरमन´ को झकझोरती है।

खास बात यह है कि पुस्तक का नाम `जड़, जमीन, जहान´ अपने आप में तमाम विशेषताएं समेटे हुए है। पुस्तक की शुरुआत में ही पाठकों से अपनी बात कहते हुए पं. शर्मा लिखते हैं कि “`जड़, जमीन और जहान´, यह मात्र तीन शब्द ही नहीं हैं अपितु इन तीन शब्दों में हमारी तीन पीढ़ियों की दास्तान के साथ हमारा पूरा जीवन, हमारी अपेक्षाएं, हमारी सफलता, हमारी असफलता, हमारी औलाद, हमारी औलाद के संस्कार, हमारी मंजिल, हमारा भूत, हमारा वर्तमान व हमारा भविष्य निहित है। जो भी इन्सान जहान तक पहुंचे हैं, जिन इन्सानों ने ऊंचाइयों को छुआ है, अपनी मंजिल प्राप्त कर जहान में अपनी सफलता का परचम लहराया है, उन इन्सानों ने अपनी जड़ को अहमियत दी है, जड़ के महत्व को समझा है। ऊंचाइयों पर कितने भी पहुंच गये हों, मगर उन्होंने अपनी जमीन को मजबूती से पकड़ा है, अपनी जड़ों को सींचा है, संवारा है, उनमें खाद-पानी दिया है, तभी उनका जीवनरूपी वृक्ष हरा-भरा व फलों से लबालब रहा है।´´

पूरी पुस्तक में लेखक ने कठिन शब्दों से बचने का भरपूर प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में उन शब्दों का प्रयोग किया गया है जो बहुतायत से आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग होते रहते हैं और मध्यमवर्गीय किशोरों व युवाओं को आसानी से समझ में आने वाले हैं। इस पुस्तक का मुख्य आकर्षण व वृहद उद्देश्य बच्चों, किशारों व युवाओं का `चरित्र निर्माण´ ही है किन्तु खास बात यह है कि सामाजिक व पारिवारिक जीवन का शायद ही कोई ऐसा पहलू हो जो लेखक की लेखनी से अछूता रहा हो। प्राय: सभी पारिवारिक विषयों पर लेखक ने निर्विवाध रूप से अपनी लेखनी चलाई है। पुस्तक में प्रस्तुत कहानियों के कुछ शीर्षक देखने लायक है जो अपने आप में ही पुस्तक के नाम को ही सार्थकता प्रदान करते हैं यथा औलाद का सुख, बेटी का बाप, बुढ़ापा, गोबर-गनेश, करोड़पति भिखारी, सूनी सड़क, नानी मां, सरकारी मुलाजिम, धार्मिक कौन, कलयुगी कौन, बुजुर्ग भगवान, मेरी मां, लव मैरिज, सम्पत्ति की सीमा एवं औरत आदि आदि।

जहां तक पुस्तक की साज-सज्जा व पृष्ठ संख्या का प्रश्न है तो इस मामले में भी पुस्तक कसौटी पर खरी उतरती है। जहां एक तरफ पुस्तक की साज-सज्जा पाठकों को आकषिZत करती है तो वहीं दूसरी ओर 176 पेज की मोटाई ठीक-ठाक कही जा सकती है। जहां तक इसकी कीमत का सवाल है तो मात्र 150 रूपये की धनराशि लगभग सभी वर्गो की पहुंच के अन्दर है और उस पर उत्तम कागज क्वालिटी, उच्च क्वालिटी की बाइण्डिग, मोटा रंगीन कवर पृष्ठ आदि विशेषताएं इसकी कीमत को तर्कसंगत बनाते हैं। इस पुस्तक में लेखक ने जीवन के विविध पहलुओं पर विहंगम दृष्टि डालने के साथ ही कहानियों के बीच-बीच में उदहरणों व संस्मरणों के माध्यम से ग्रामीण व शहरी परिवेश की भीनी-भीनी महक से ऐसा अद्भुद मिलाप कराया है जो भुलाये नहीं भूलता। इसके साथ ही शहरी जीवन की भागमभाग व बैचेन मानसिकता की एक झलक भी इस पुस्तक में देखने को मिलती है। कुल मिलाकर `जड़, जमीन, जहान´ जीवन के विविध आयामों पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है एवं युवा पीढ़ी को संस्कारों व जीवन मूल्यों से लबालब कर कुछ कर गुजरने व जहान की बुलिन्दयों को छूने के लिए प्रेरित करती है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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