• मुख्यमन्त्री सुश्री मायावती ने लोकतन्त्र का गला घोटने और संविधान को लाठी से हाकने का इरादा कर लिया है। वे अपने को होस्नी मुबारक, गद्दाफी और मुशरर्फ समझ रही हैं। उनका हश्र भी उन्हें जानना चाहिए।
• उत्तर प्रदेश में मुख्यमन्त्री ने तानाशाह की तरह सभी लोकतािन्त्रक संस्थाओं को नश्ट करने की साजिश रची है और वे अब बैलेट पर बुलेट की संस्कृति चलाना चाहती हैं। समाजवादी पार्टी मायावती सरकार के इस तानाशाही रवैये की निन्दा करती है। हर जिले में धरना प्रदशZन के साथ इसका व्यापक विरोध किया जा रहा है।
• कल दिंनाक- 21 फरवरी, को विधानसभा के अन्दर और बाहर सरकार ने जो तान्डव किया उससे गम्भीर संवैधानिक प्रश्न खड़े हुये हैं। विधानसभा में एक मिनट में 2011-12 के बजट प्रस्ताव पास करा लिये गये। कार्यमत्रंणा समिति ने 01 मार्च तक सदन चलाने केा मंजूरी दी थी। इसके बावजूद सदन अनििश्चत काल के लिए स्थगित कर दिया गया।
• सदन के अन्दर धरना दे रहे विधायको के साथ बल प्रयोग किया गया। यह सदन और विधायिका का घोर अपमान है। माशZल ने भी विधायकों से अभद्रता की और गालियॉ दी। रात्रि में सदन से विधायकों को बाहर निकालने के समय बसपा के गुण्डों को विधानसभा के अन्दर लाया गया जो नशे में धुत्त थे। इस सम्बन्ध में अध्यक्ष को स्पश्टीकरण देना चाहिए कि ये गुण्डे किसकी अनुमति से विधानसभा मण्डप के अन्दर आए।
• जिला पंचायत और ब्लाक प्रमुख के चुनावों को धनबल, बाहुबल से कब्जाने के बाद अब मुख्यमन्त्री की कुदृिश्ट नगर निकायों पर पड़ी है। इसके लिए महापौर एवं पालिका अध्यक्षों की निर्वाचन प्रक्रिया को बदलने के साथ निकाय अध्यक्षों के अधिकार भी छीनने की तेैयारी है।
• बसपा सरकार जनता से महापौर और पालिका अध्यक्षों के चुनाव का अधिकार छीनकर आम जनता के मतदान का अधिकार छीन लेना चाहती है। वशZ 1994 में समाजवादी पार्टी की सरकार में इन पदों के सीधे निर्वाचन की व्यवस्था की गई थी।
• 74वें संविधान संशोधन में सत्ता की त्रिस्तरीय व्यवस्था में केन्द्र और राज्य सरकार के बाद निकायों को दर्जा दिया गया है। अत: महापौर और अध्यक्षों का चुनाव जनता से कराना संवैधानिक बाध्यता है।
• निकायों पर बसपा का कब्जा कराने के लिए पाशZदों ओैर सभासदों की खरीद-फरोख्त का रास्ता मुख्यमन्त्री खोलना चाहती है। पंचायत चुनावों की तरह तब इसमें भी हत्या, अपहरण और जबरन मतदान का नाटक दोहराया जायेगा।
• यह सरकार निकाय अध्यक्षों के अधिकार भी छीनने की तैयारी में है। वेतन और कर्मचारियों के भुगतान सम्बन्धी सभी अधिकार अब अधिशासी अधिकारियों (ई0ओ0) को सौपे जायेंगे। उसके लिए नगर पालिका परिशद अधिनियम 1916 में संशोधन लाया जा रहा है।
• जनहित के नाम पर बसपा सरकार के उक्त कदम सम्पूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया को ही सन्दिग्ध बनाते है। उचित और अनुचित हर तरीके से सत्ता पर काबिज होने की सरकारी मंशा ने लोकतािन्त्रक संस्थानों की स्वायत्तता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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