जिला चिकित्सालय का महिला अस्पताल सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। जहां पर तैनात चिकित्सक अपने सरकारी आवासों पर प्राइवेट प्रेक्टिस में मशगूल हैं। जिसमें सीएमएस का नाम प्रमुख है। जब महिला अस्पताल इकी सर्वेसर्वा सीएमएस स्वंय प्राइवेट प्रैक्टिस करती है तो दनके मातहत अन्य चिकित्सक क्यों पीछे रहें। जिनका कर्मचारियों पर नियन्त्रण नहीं है। कहने को नर्स सहि पूरा स्टाफ है जिन्हे दवा कम्पनियों के एजेण्ट हमेशा घेरे रहते हैं। जिसमें कमीशन खोरी के कारण मरीजों को ग्लूकोज , इन्जेक्शन एवं अन्य दवायें बाहर से खरीदनी पड़ रही है।
यहां मरीजो के साथ दुव्र्यवहार तथा लापरवाही से आये दिन मौत होती रहती है और बवाल मचता है। शुक्रवार को रतना देवी पत्नी सोनू दूबे निवासी मैनपुर मड़ियाहूं दिलेवरी के लिए आयी थी। लेकिन डिलेवरी में कई दिन शेष होने के बाद उससे खून तथा ˆपये की व्यवस्था करने को कहा गया ताकि आपरेशन किया जा सके। जबकि उसे कोई विशेष कठिनाई Òी नहीं थी। यहां प्रसव के लिए आने वाली महिलाओं के परिजनों के साथ दुव्र्यवहार के साथ धमकी Òी दी जाती है। जबरी कागजातों पर हस्ताक्षर करने पर दबाव बनाया जाता है। महिला एमरजेन्सी मे कोई दवा उपलब्ध नहीं रहती। मरीजों के तीमारदार हाथ में पर्चे लिये बाहर की दुकानों पर देखे जा सकते हैं। बताया जाता है कि दिलेवरी के सÒी मामलों में आपरेशन करने की सलाह देकर माटी रकम चसूली जाती है। जननी सुरक्षा योजना का 1400 ˆपये का चेक प्राप्त करने के लिए आशा बहुओं के माध्यम से पेशगी में 5 सौ रूपया देना पड़ता है। महिला नसबन्दी में मिलने वाले धन का Òी बन्दरबांट कर लिया जाता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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