स्व0 राजीव गांधी जी के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 1992 में कंाग्रेस सरकार द्वारा लोकसभा में 73वां, 74वां संविधान संशोधन पारित किया गया, जिसके द्वारा ग्रामीण व नगर स्थानीय निकायोंं में निर्वाचन को संवैधानिक अनिवार्यता प्रदान की गई। यह संशोधन पंचायत स्तर पर व्यापक विचारविमर्श के उपरान्त किया गया जिसकी स्पष्ट मंशा एवं उद्देश्य था कि सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो, स्थानीय निकाय ही स्थानीय सरकार के रूप में कार्य करे, जिससे जनप्रतिनिधियों एवं जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी हो। 73वें, 74वें संशोधन के अनुरूप प्रत्येक राज्य ने अपने-अपने नगर निगम व नगर पालिका अधिनियमों में आवश्यक संशोधन किये। उ0प्र0 के निर्वाचित सदन में यह संशोधन 30अप्रैल 1994 में किया गया। 73वें, 74वें संशोधन की मंशा को ध्यान में रखते हुए नगर पालिका व नगर निगम अधिनियमों में इस प्रकार संशोधन किया था कि उसके स्वरूप को पारदशीZ एवं जनता की भागीदारी के आधार को बढ़ाते हुए जवाबदेह बनाने का प्रयास किया।
● महापौर व चेयरमैन का चुनाव:-
नगर निगम व नगर पालिका अधिनियमों में संशोधन के द्वारा नगर पंचायत व नगर निगम के चेयरमैन व महापौर का चुनाव सीधे जनता से कराने का प्रावधान किया गया। उक्त निर्णय गम्भीर विचार-विमर्श के उपरान्त व इन सस्थाआं के पूर्व अनुभवों पर आधारित था। संविधान में संशोधन के उपरान्त निर्वाचन की प्रक्रिया के निर्धारण का अधिकार प्रदेश सरकारों को था- तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल वोरा ने सीधे तथा दलीय आधार पर करने का विकल्प चुन लिया। अब विकल्प के बाद 4 सरकारों ने सफलतापूर्वक चुनाव कराया है। अत: अब पुन: विकल्प बदलना, जनभावना तथा कानून के खिलाफ है।
महामहिम जी, 1995 में उ0प्र0 में पहली बार शहरी निकाय के प्रमुखों के चुनाव सीधे जनता द्वारा हुए और पहली बार सामान्य लोगों को चेयरमैन व महापौर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर निर्वाचित होने का मौका मिला।
वर्ष 1995 के पूर्व स्थानीय निकायों के प्रमुखों के चुनाव पार्षदों द्वारा किये जाते थे, जिसके कारण ऐसे धनाड्य व्यक्ति जेा धनबल के सहारे उन पदों पर आसीन हुए, उन्होने जनभावनाओं से सरोकार न रखते हुए केवल अपने आर्थिक पक्ष को मजबूत करने के लिए अपने पद का दुरूपयोग किया।
इन विसंगतियों को देखते हुए गम्भीर विचार-विमर्श के बाद तत्कालीन सरकार ने वर्ष 1994 में सामान्य मतदाताअों द्वारा स्थानीय निकाय प्रमुखों के चुनाव कराने का निर्णय लिया। इस तरह से उ0प्र0 में नगर निकाय चुनाव के तीन चक्र पूर्ण हो चुके हैं तथा अधिकांश चेयरमैन व महापौर के कार्यकाल आरोपरहित रहे हैं। उन्होने मध्यम व आम जनता की भावनाओं का प्रतिनिधित्व किया है।
प्रदेश की मा0 मुख्यमन्त्री जी प्रचलित चुनाव प्रणाली में जिस प्रकार का परिवर्तन/संशोधन करने की ओर पहल कर रही हैं वह न केवल स्थनीय निकाय को कमजोर करेंगी वरन धन-बल के दुरूपयोग का रास्ता खोल देंगी। चेयरमैन व महापौर यदि पार्षदों द्वारा चुने जायेंगे तो खरीद-फरोख्त प्रारम्भ हो जायेगी व धन, बल के आधार पर ही बहुत से अवांछनीय तत्व इन महत्वपूर्ण पदों को प्राप्त करने में सफल हो जायेंगे। इसका अर्थ यह है कि उक्त व्यक्तियों की जनता के प्रति जवाबदेही समाप्त हो जायेगी।
आश्चर्यजनक यह भी है कि महापौर व चेयरमैन का चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को सदन का सदस्य होने की आवश्यकता नहीं है। विचार करने का विषय है कि जो व्यक्ति एक वार्ड का चुनाव जीतने योग्य न हो, वह संस्था का मुखिया हो जायेगा। यदि ऐसा हुआ तो 74वें संशोधन की मंशा के पूर्णतया विपरीत होगा।
● विकासधन:-
महामहिम जी, केन्द्र सरकार द्वारा हजारों करोड़ रूपये शहरी नवीनीकरण योजना के अन्तर्गत राज्य सरकारों को प्रदान किया जा रहा है। नियमानुसार इस धन को निर्वाचित नगर निकाय के सदन के द्वारा तैयार किये गये योजनाओं के आधार पर खर्च किया जा रहा है। इस कार्य में सदन के महापौर व चेयरमैन उत्तरदायी होते हैं व उनकी भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। यदि यह चुनाव अप्रत्यक्ष आधार पर किया गया तो फिर इसमें घोटालों की विशेष आशंका होगी, क्योंकि संस्था का अध्यक्ष जनता को सीधे उत्तरदायी नहीं होगा।
● नामित सदस्यों के अधिकार:-
सम्भवत: प्रस्तावित संशोधन में नामित सदस्यों को मतदान का अधिकार दिया जा रहा है जो असंवैधानिक है क्योंकि भारत के संविधान के 243 में यह स्पष्ट रूप से निर्देशित है कि ऐसे सदस्यों को मतदान का अधिकार नहीं होगा´´। मा0 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नामित सदस्यों को मतदान देने पर रोक लगा रखी है इसलिए प्रदेश सरकार इसके विपरीत संशोधन कर अपने राज्य में नामित सदस्यों केा मतदान का अधिकार नहीं दे सकती, क्योंकि ऐसा करना असंवैधानिक है।
स्पष्ट है कि उक्त व्यवस्था शासित दल द्वारा नामित सदस्यों के सहयोग से सभी निकायों पर कब्जा करने की मंशा से की जा रही है। हाल ही में कराये गये पंचायतराज चुनाव में शासित दल ने धन, बल का प्रयोग कर अधिकांश जिला पंचायतों व क्षेत्र पंचायतों पर कब्जा किया है।
● सत्ता का विकेन्द्रीकरण :-
आपके संज्ञान में है कि हमारे प्रदेश में स्थानीय निकायों द्वारा विकेन्द्रीकरण हेतु राज्य सरकार से लगातार प्रयास जारी है। उ0प्र0 महापौर परिषद तथा नगर पालिका अध्यक्ष परिषदों द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है। उक्त संस्थाएं 74वें संविधान संशोधन को लागू करने की मांग कर रही हैं। प्रदेश सरकार ने ध्यान न देते हुए लगातार स्थानीय निकायों के अधिकारों का हनन किया है। अपने प्रस्तावित संशोधनों से प्रदेश सरकार वित्तीय व प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के बजाय अपना शिकंजा मजबूत कर रही है। यह एक असंवैधानिक कृत्य है और इसे जनहित में रोका जाना अत्यन्त आवश्यक है।
महामहिम जी, यदि प्रस्तावित संशोधन लागू हो जाते हैं तो महात्मा गांधी की पंचायतीराज विचारधारा, स्व0 राजीव गांधी जी के स्थानीय निकाय को स्वयत्तशासी बनाने की मंशा व 74वें संविधान संशोधन का गला घुट जायेगा।
● अविश्वास प्रस्ताव:-
महामहिम जी, जब से नगर पालिका व नगर निगम अधिनियम बने हैं उसमें अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान रखा गया है। हमारे संज्ञान में आया है कि इस धारा को भी प्रदेश सरकार खत्म करने जा रही है। जिस नियम को और सख्त करने की आवश्यकता थी उसे पूर्णतया समाप्त करने की मंशा आप स्वयं समझ सकते हैं।
मान्यवर, वर्तमान सरकार का कार्यकाल लगभग एक वर्ष से भी कम बचा है। उ0प्र0 नगर पालिका, नगर निगम अधिनियम में संशोधन वर्ष 94 में विधानसभा में गम्भीर विचार-विमर्श के बाद किये गये थे जिसके आधार पर अभी चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में एक ऐसी सरकार जिसका कार्यकाल समाप्त हो रहा हो, उसके द्वारा अपने पक्ष में चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की नीयत से पुन: नये संशोधन करना कतई अनुचित है।
हम मांग करते हैं कि आप इस विधेयक को अपनी स्वीकृति न दें ताकि 73वें, 74वें संविधान संशोधन के अनुरूप जनता का पक्ष दुर्बल न पड़े और स्थानीय निकाय आम आदमी की भावनाओं का प्रतिबिम्ब हो, उनके प्रति उत्तरदायी हो। ऐसा न हो कि यह व्यवस्था अवांछनीय तत्वों की कठपुतली बनकर रह जाय।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com