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पुस्तक “अवेक, एराइज, असेन्ड´´ की समीक्षा

Posted on 04 February 2011 by admin

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शून्य से शिखर पर पहुंचाने में सक्षम है  पुस्तक `अवेक, एराइज, असेन्ड´

पुस्तक `अवेक, एराइज, असेन्ड´ का लोकार्पण अभी हाल ही में 31 जनवरी 2011 को प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह ने अपने सरकारी आवास 7, रेसकोर्स रोड, नई दिल्ली में किया। देशवासियों खासकर युवा पीढ़ी के लिए इस अनूठी पुस्तक को लोकार्पित करते हुए प्रधानमन्त्री ने कहा कि `अवेक, ऐराइज, असेन्ड´ भावी पीढ़ी को नई दिशा देने में अवश्य ही मील का पत्थर साबित होगी। प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह ने पुस्तक के लेखक व प्रख्यात साहित्यकार पं. हरि ओम शर्मा `हरि´ को शाल ओढ़ाकर सम्मानित करते हुए कहा कि पुस्तक `अवेक, एराइज, असेन्ड´ किशोरों व युवाओं को नई राह दिखाने एवं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर शून्य से शिखर पर पहुंचने की प्रेरणा देने वाली अनूठी पुस्तक है।

`प्यार जीवन के लिए अमृत है´ की नई परिभाषा गढ़ती साहित्यजगत की अनुपम कृति पुस्तक `अवेक, एराइज, असेन्ड´ अपने लालित्य, सरल-सहज भाषा, पारिवारिक व सामाजिक परिवेश का यथार्थ शब्द-चित्रण व आकर्षक साज-सज्जा से जहां बरबस ही पाठकों के दिल को छू जाती है तो वहीं दूसरी ओर पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर ही लेखक ने `अपनी बात´ कहते हुए पुस्तक के उद्देश्य व उपयोगिता से पाठकों के `अन्तरमन´ को झकझोर दिया है। बकौल लेखक - “मैंने अपनी बात उन व्यक्तियों के लिए नहीं लिखी है, जो सो रहे हैं, क्योंकि सोते हुए को जगाना एक पाप है। मैंने अपनी बात उन लोगों के लिए भी नहीं लिखी है जो जगे हुए हैं क्योंकि जागृत प्राणी को जगाना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। मैंने अपनी बात ऐसे व्यक्तियों के लिए लिखी है जो कि जागृत अवस्था में भी सुप्तावस्था में हैं, अर्थात तन से जगे होने के बाद भी मन से सोये हुए हैं। आत्मविश्वास से लबालब होने के बावजूद भी निराश हैं, दीन-हीन भावना से ग्रस्त हैं, कर्तव्य से विमुख हैं, भाग्य के गुलाम हैं। जो आत्मबल होने के बाद भी अपने को निर्बल समझ रहे हैं। जो एक मूल्यवान शरीर होने के बावजूद अपने को गरीब समझ रहे हैं, जो ईश्वर की सन्तान होने के बाद भी अपने को अनाथ समझ रहे हैं। ऐसे ही व्यक्तियों के लिए मैंने अपने विचारों को `अवेक, एराइज, असेन्ड´ नाम देकर एक पुस्तक के स्वरूप में समाज के एक ऐसे वर्ग को जगाने का प्रयास किया है जो जागृत होने के बावजूद सुप्तावस्था में हैं।´´

coverवैसे यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा में है परन्तु खास बात यह है कि पूरी पुस्तक में अंग्रेजी के िक्लस्ट अथवा कठिन शब्दों से बचने का भरपूर प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में अंग्रेजी के उन शब्दों का चयन किया गया है जो बहुतायत से आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग होते रहते हैं और मध्यमवर्गीय किशोरों व युवाओं को आसानी से समझ में आने वाले हैं। इस पुस्तक का मुख्य आकर्षण व वृहद उद्देश्य बच्चों, किशारों व युवाओं का `चरित्र निर्माण´ ही है किन्तु खास बात यह है कि सामाजिक व पारिवारिक जीवन का शायद ही कोई ऐसा पहलू हो जो लेखक की लेखनी से अछूता रहा हो। प्राय: सभी पारिवारिक विषयों पर लेखक ने निर्विवाध रूप से अपनी लेखनी चलाई है। जहां एक ओर जर व जमीन की मृग-मरीचिका में भटकते अभिभावकों को चेताया व आगाह करते हुए बिन्दुवार सलाह-मशविरा भी दिया है, सहानुभूति भी जताई है।

पुस्तक के लेखक पं. हरि लिखते हैं - “बच्चे मेरे और आपके नहीं हैं। बच्चे तो परम्पिता परमात्मा के हैं, हमें तो केवल इन बच्चों की देखभाल व लालन-पालन की जिम्मेदारी ईश्वर ने सौंपी है।´´ इसके अलावा सिर्फ बच्चों को ही नहीं अपितु समाज के सभी छोटे-बड़े नागरिकों को सफलता के उच्चतम सोपान पर पहुंचाने हेतु लेखक ने जैसे अपना सारा अनुभव उड़ेल दिया है जिसके कुछ नमूने देखने लायक हैं जैसे - `अपाट्Zयूनिटी नॉक्स एट डोर, आर यू अवेक ऑर स्लीप´, `पॉजिटिव थिंकिंग मेक्स वन फ्राम जीरो टु हीरो´, `इफ यू वान्ट टु फुलफिल योर ड्रीम्स, वेक अप´, `परसिस्टैन्स, पैशन एण्ड प्रोफाउण्ड इन्थूजियाजम विल टेक यू टु योर गोल´आदि-आदि। सिर्फ अनुभव ही नहीं अपितु पाठकों में आत्मबल भरने में भी लेखक ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है - `विक्ट्री एण्ड डिफीट हैव एन इनसपरेबल रिलेशनशिप´, `पावर ऑफ मनी, पॉवर आफ मशल, पॉवर ऑफ पोजीशन, बट द ग्रेटेस्ट पॉवर इज पॉवर ऑफ सॉल´, `एवरीथिंग इस पॉसिबल, नथिंग इज इम्पॉसिबल´ आदि।

मां की महिमा से रूबरू कराने से लेकर नारी शक्ति के साथ मिलकर सफलता का सपना दिखाने वाले पं हरि ने 70 लेखों के माध्यम से गागर में सागर भरने में अथक प्रयास किया है। जीवन के विविध पहलुओं पर विहंगम दृष्टि डालने के साथ ही लेखों के बीच-बीच में उदहरणों व संस्मरणों के माध्यम से लेखक ने ग्रामीण परिवेश की भीनी-भीनी महक से ऐसा अद्भुद मिलाप कराया है जो भुलाये नहीं भूलता। इसके साथ ही शहरी जीवन की भागमभाग व बैचेन मानसिकता की एक झलक भी इस पुस्तक में देखने को मिलती है। इसी के परिणामस्वरूप एक ही जैसे उद्धरण, संस्मरण कई बार जहां-तहां देखने को मिल जाते हैं, जो पाठकों को अखरता भी है तथा यह दोहरापन लेखन की धार को भी कम करता है, साथ ही पुस्तक की समरसता को ग्रहण लगता है। इतने पर भी यह पुस्तक जीवन के विविध आयामों पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है एवं कुछ कर गुजरने व मंजिल पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती हुई, युवाओं व अभिभावकों को नई राह दिखाती हुई `अवेक, एराइज, असेन्ड´ के अपने नाम सार्थक करती हुई लगती है।

हालांकि पुस्तक की मोटाई जरूर कुछ ज्यादा है किन्तु आदि से अन्त तक नीरसता ढूंढे से भी नहीं मिलती, यह लेखक की अद्भुद लेखन शैली ही है जो पाठक को प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर अगले अध्याय को पढ़ने हेतु लगातार प्रेरित करती है। इतना ही नहीं, अध्याय की समाप्ति पर लेखक के स्वलिखित `कोटेशनों´ ने तो इसमें चार-चांद लगा दिये है जैसे पूरी पुस्तक का सार इन्हीं छोटे-छोटे `कोटेशनों´ में समाया हो। जहां तक इसकी कीमत का सवाल है तो 300 रूपये की धनराशि मध्यम वर्ग की पहुंच के अन्दर ही है हालांकि गरीबी रेखा के स्तर पर यह कीमत कुछ अधिक हो सकती है किन्तु पुस्तक की उत्तम कागज क्वालिटी, उच्च क्वालिटी की बाइण्डिग, मोटा रंगीन कवर पृष्ठ आदि कीमत की मामूली अधिकता के कारक कहे जा सकते हैं।

कुल मिलाकर `अवेक, एराइज, असेन्ड´ पुस्तक अपने नाम को सार्थक करती हुई समाज के प्रत्येक सदस्य को जीवन के उच्चतम सोपानों पर कदम रखने का सपना दिखाकर उसको मंजिल पर पहुंचने की राह दिखाती है। यह अमूल्य पुस्तक जीवन मूल्यों, संस्कारों, अधिकारों व कर्तव्यों की ज्योति जगाकर आत्मविश्वास से लबालब भी करती है। सामाजिक सरोकारों पर भी पैनी नज़र रखती पं. हरि ओम शर्मा `हरि´ की यह एक प्रेरणादायी व संग्रहणीय कृति है, जो बहुत ही रचनात्मक विधि से सामाजिक विकास का ताना-बाना बुनती है।

(समीक्षक : प्रवीण शुक्ला -  12, स्टेशन रोड, लखनऊ  , मोबाइल : 09889460062 , ईमेल : praveensh33@gmail.com , फोन व फैक्स : 0522.2638324)

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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