भाग-टप्ß व इसके अंग्रेज़ी संस्करण
“A Travelogue of My Struggle-Ridden Life and BSP ovement, Vol-VI” का, उनके 55वें जन्मदिन के शुभ अवसर पर विमोचन
बहुजन समाज पार्टी की राश्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की माननीया मुख्यमन्त्री सुश्री मायावती जी ने आज यहां अपने 55वें जन्मदिन के शुभ अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में स्व-लिखित पुस्तक Þमेरे संघशZमय जीवन एवं बी.एस.पी. मूवमेन्ट का सफ़रनामा, भाग-टप्ß व इसके अंग्रेज़ी संस्करण “A Travelogue of My Struggle-Ridden Life and BSP ovement, Vol-VI” का विमोचन किया। इस पुस्तक के पांच खण्ड हिन्दी व अंग्रेज़ी में पहले जारी हो चुके हैं। उल्लेखनीय है कि हिन्दी के प्रथम दो खण्डों का विमोचन मान्यवर श्री कांशीराम जी के कर-कमलों द्वारा दिनांक 15 जनवरी सन् 2006 को किया गया था।
बी.एस.पी. की `ब्लु बुक´ के नाम से मशहूर इस पुस्तक के छठे भाग के लगभग 1100 पृश्ठों में सुश्री मायावती जी ने दिनांक 1 जनवरी सन् 2010 से लेकर दिसम्बर सन् 2010 तक अर्थात् एक वशZ के भीतर बतौर उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री व बहुजन समाज पार्टी (बी.एस.पी.) की राश्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में, Þसामाजिक परिवर्तनß अर्थात् Þसमतामूलक समाज व्यवस्थाß स्थापित करने के बी.एस.पी. मूवमेन्ट के मिशनरी लक्ष्य को प्राप्त करने के क्रम में आने वाली चुनौतियों व अनेकों प्रकार के संघशोZं का तिथिवार वास्तविक वर्णन है। घटना-प्रधान चित्रों सहित पुस्तक में ये बातें आम बोल-चाल की सरल हिन्दुस्तानी जुबान में एक सीधे-साधे सत्य की तरह पेश की गई हैं, जिसे बी.एस.पी. मूवमेन्ट के समकालीन इतिहास की भी संज्ञा दी जा सकती है।
इस `सफ़रनामा´ की प्रस्तावना Þअपनी बातß में सुश्री मायावती जी लिखती हैं कि वशZ 2010, उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में चल रही बी.एस.पी. की पूर्ण बहुमत वाली सरकार का तीसरा वशZ था। और यह वशZ, हालांकि लोकसभा आम चुनाव के एतबार से, वशZ 2009 की तरह, अत्यन्त ही महत्वपूर्ण व चुनौतीपूर्ण तो नहीं था, लेकिन दूसरे अन्य मामलों को लेकर वशZ 2010 काफी ज़्यादा संघशZपूर्ण रहा। इस दौरान बी.एस.पी. व उत्तर प्रदेश में इसकी सरकार के समक्ष अनेकों प्रकार की गम्भीर चुनौतियां आयीं। ख़ासकर भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित किसानों के आन्दोलन तथा अनुसूचित जाति/ जनजाति व व पिछड़े वर्गों में जन्में महान सन्तों, गुरुओं व महापुरुशों के आदर-सम्मान में निर्मित किये गये ऐतिहासिक महŸव के भव्य स्थलों/स्मारकों/संग्रहालयों/पार्कों व नये ज़िलों की स्थापना आदि के सम्बंध में, जातिवादी मानसिकता के कारण तीव्र विरोध, पंचायत चुनाव, बी.एस.पी. के चुनाव चिन्ह Þहाथीß को ज़ब्त करने के िख़लाफ माननीय न्यायालय व चुनाव आयोग में संघशZ आदि ऐसे मामले थे जिसके लिये उन्हें, उनकी पार्टी व उनकी पार्टी की सरकार को काफ़ी कड़ा संघशZ करना पड़ा व इसके लिये काफी समय भी लगाना पड़ा, जिनके सम्बंध में विस्तार से इस Þसफ़रनामाß में तिथिवार पढ़ा जा सकता है।
यह बातें कोई िशकवा-िशकायत के लिहाज़ से नहीं हैं, क्योंकि वह अच्छी तरह जानती हैं कि उनका जीवन एक संघशZ, बल्कि अनन्त संघशZ है और आने वाले दिनों में भी इस प्रकार के संघशोZं का उन्हें सामना करना है। सुश्री मायावती जी के अनुसार विरोधी पार्टियों के साम, दाम, दण्ड, भेद आदि अनेकों हथकण्डों का और तरह-तरह की परेशानियों, दिक़्क़तों, चुनौतियों का सामना करने के लिये संघशZ ही सर्वोत्तम उपाय है और जब लक्ष्य महान व पूर्णत: मानवतावादी हो तो ÞसंघशZ का संकल्पß ही बड़ा काम आता है और बेड़ा पार भी लगाता है।
अयोध्या प्रकरण का ज़िक्र करते हुये सुश्री मायावती जी कहती हैं कि अयोध्या के विवादित स्थल के मालिकाना हक़ के सम्बन्ध में माननीय उच्च न्यायालय के फैसले के बाद की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण स्थिति से केन्द्र सरकार चिन्तित थी और पूरा देश आक्रान्त व एक अनजाने ख़ौफ़ से ग्रस्त था तथा उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिकता की आग की ज़रा सी चिंगारी भी पूरे प्रदेश में फैल कर पूरे देश को उसकी लपेट में ले सकती थी व देश की अर्थव्यवस्था का सत्यानाश हो सकता था। लेकिन उत्तर प्रदेश के सभी छोटे-बड़े पुलिस व प्रशासनिक अिधकारियों ने, बिना केन्द्र सरकार के अपेक्षित सहयोग के, उनके मार्ग-निर्देशन में, व्यापक राश्ट्र हित को ध्यान में रखते हुये, एक ऐसा काम कर दिखाया जिससे पूरे देश ने बड़ी राहत की सांस ली और हमारे विरोधियों को भी इस बात की प्रशंसा के लिये मजबूर होना पड़ा कि शान्ति व क़ानून-व्यवस्था की मिसाल जो यू.पी. में बी.एस.पी. की सरकार ने पेश की है, उसकी दूसरी मिसाल मिलनी बहुत मुिश्कल है।
सुश्री मायावती जी के अनुसार, अयोध्या-प्रकरण से सम्बंधित इस परिस्थिति से निपटना उनके जीवन की कड़ी चुनौतीपूर्ण घड़ियों में से एक थी, जिसका उन्होंने बख़्ाूबी सामना करते हुये आत्म-सन्तोश प्राप्त किया। इस चुनौती का भी सामना करने में उनका दृढ़ निश्चय, जनहित में कठोर निर्णय लेने की इच्छा-शक्ति, दूरदृिश्ट के साथ-साथ क़ानून-व्यवस्था के मामले में ख़ासकर एक बेहतरीन व मिसाली शासन देने का उनका संकल्प बहुत काम आया और इसी कारण धार्मिक भावना से जुड़ा यह अति संवेदनशील मामला भी कुछ इस तरह अप्रत्यािशत तौर पर निपट गया जिसकी देश के लोगों ने कल्पना तक भी नहीं की थी। उन्हें इस बात का सन्तोश है कि देशभर के लोगों ने उनकी सरकार के इस कार्य को समुचित तौर पर सराहा और ज़ेहननशीन किया है।
पुस्तक के आमुख में यू.पी. में बी.एस.पी. की सरकार के `गुड गवनेZन्स´ से सम्बंधित कार्यों के साथ-साथ, समतामूलक समाज व्यवस्था स्थापित करने के मिशनरी लक्ष्य की प्राप्ति की ओर बढ़ते हुये क़दम का उल्लेख करते हुये बी.एस.पी. की राश्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती जी कहती हैं कि इस प्रयास में एक नया अध्याय तब जुड़ गया यह स्वीकारा गया कि भारत Þड्रामाई परिवर्तनोंß (कतंउंजपब जतन्देवितउंजपवदेद्ध के दौर से गुज़र रहा जिनमें Þराजनीतिक संस्कृतिÞ व Þसामाजिक व्यवस्थाß में बदलाव भी शामिल है। इतिहासकार कहते हैं कि इन Þपरिवर्तनोंß के फलस्वरूप भारत की राजनीतिक संस्कृति संघशZशील व समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों की भागीदारी पर आधारित बन रही है, जबकि भारत की सामाजिक व्यवस्था महिलाओं एवं निचली जातियों के लोगों पर आधारित समाज के शोशित-पीड़ित वर्गों को अपने अधिकारों के प्रति ज़्यादा-से-ज़्यादा जागरूक व संघशZशील बना रही है। इस सम्बंध में सुश्री मायावती जी का मानना है कि भारत में होने वाली इन दोनों ऐतिहासिक व युग-परिवर्तनीय सामाजिक व लोकतान्त्रिक क्रान्ति का श्रेय Þबी.एस.पी. मूवमेन्टß व उत्तर प्रदेश की बी.एस.पी. सरकार के सिवाय किसी और को कैसे दिया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में, माह अक्तूबर-नवम्बर सन् 2010 में हुये पंचायत चुनाव के परिणामों का ज़िक्र करते हुये सुश्री मायावती जी कहती हैं कि ये परिणाम इस बात को दशाZते हैं कि प्रदेश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में समाज के उपेक्षित वगोंZ के लोगों, विशेशकर अनुसूचित जाति/जनजाति व अन्य पिछड़े वगोंZ के लोगों की काफी भागीदारी बढ़ी है और इस प्रकार उत्तर प्रदेश में लोकतन्त्र को आम तौर से व सामाजिक लोकतन्त्र को ख़ास तौर से मज़बूती मिली है।
साथ ही, उन्होंने उन कुछ महŸवपूर्ण शोध का भी ज़िक्र किया जिनमें उत्तर प्रदेश में बी.एस.पी. मूवमेन्ट के बढ़ते प्रभाव व बी.एस.पी. सरकार के विभिन्न क्षेत्रों में अनवरत् महŸवपूर्ण व ऐतिहासिक प्रयासों के कारण सामाजिक स्तर पर जो दलित क्रान्ति सम्भव हो पायी है, उसे Þआर्थिक क्रान्तिß से ज़्यादा महŸवपूर्ण माना गया है।
उनके अनुसार, उपरोक्त बातें गम्भीरतापूर्वक ग़ौर करने लायक़ हैं ताकि इस हक़ीक़त को उसकी पूरी वास्तविकता में देखा व समझा जा सके कि Þबी.एस.पी. मूवमेन्टß एक प्रकार से राश्ट्र निर्माण का सारथी व साक्षी है व इसकी नीति Þसर्वजन हिताय व सर्वजन सुखायß पर आधारित होने के कारण पूर्णत: देशहित में है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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