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और नही अब और नहीं

Posted on 13 January 2011 by admin

यह बात इस ओर संकेत करती है कि चाहे जो भी कारण हो, कमी हो अथवा दोष हो अब सजा पर्याप्त मिल चुकी है और सजा की आवश्यकता नहीं है। यह बात शिक्षक व विद्यार्थी, बाप व बेटा, सिपाही और चोर के बीच सुनाई पड़ती है। होमवर्क न करने पर विद्यार्थी को शिक्षक द्वारा मार पड़ती है घर में शिकायत पहुंचने पर पापा द्वारा बेटे को मार पड़ती है तब मम्मी कहती है अब बस कीजिए अब और नहीं लेकिन यहां पर न शिक्षक, बाप, बेटा, पुलिस व चोर इस बात को कह रहे हैं बल्कि पूरा का पूरा समाज गांव, कस्बों, नगरों, शहरों में पान की दुकान से लेकर घर के कीचन तक मंहगाई की मार अब और नहीं सही जाती कह रहा है। बढ़ती मंहगाई के विरूद्ध आमजन का यह शोर सरकार नहीं सुन रही है। सरकारी नियत का यह खोट अब वोट की चोट मांग रहा है। सत्तारूढ नेताओं, नौकरशाहों और बड़े पूंजीपतियों को छोड़ दें तो भारत के लोग मंहगाई की मार से रो रहे हैं। इस भ्रष्ट व्यवस्था में दम तोड़ रहे हैं चीजों की गुणवत्ता की बात तो पहले ही सोचना छोड़ दिया था मिलावटी सामान बाजारों में खरीदने को मजबूर थे अब तो दाम आसमान छू रहे हैं। यूपीए-2 की पूरी सरकार सरकार से ऊपर श्रीमती सोनिया गांधी उनके पुत्र राहुल गांधी भी मंहगाई काबू में करेंगे इस प्रकार के बयान टीवी चैनलों व अखबारों में देते रहते हैं। किसी भी प्रकार की अति की गति बड़ी दुखदाई होती है। अधिक रिसाव, भटकाव, भेदभाव, अलगाव व झूठे वादों से भरमाओं आदि हानिकारक होता है। कांग्रेस पार्टी के 125 वर्ष के ढांचे से मंहगाई की पीड़ा फूटकर रिस रही है। कोरे व थोथे वादे करने की सरकारी झूठ सुनते-सुनते जनता के सब्र का बॉंध टूटने लगा है। किसान (उत्पादक) और ग्राहक (खरीददार) लूट रहा है। जो पैदा करे वह भी दुखी जो खरीदे खाये वह भी दुखी तो बीच वाला (बिचौलिया) सदा सुखी चाहे वह आढ़ती हो, नौकरशाह हो, सरकार हो सब मौज में हैं। आम आदमी के लिये आज का जीवन जीना किसी सजा से कम नहीं रह गया है। रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा, शिक्षा व सुरक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकतायें देने में सरकारें फेल साबित हो रही हैं। मंहगाई की पापूलरिटी ने कांग्रेस आई की पापूलरिटी घटाई है। मंहगाई की चर्चा में कांग्रेस हमेशा तर्क देती है कि उसकी सरकार ने कृषि उपज का न्यूनतम मूल्य बढ़ाया है इस कारण थोड़ी सी मंहगाई लाजमी है। यह सफेद झूठ हेै पिछले 6 सालों में कृषि के लागत मूल्यों में बेतहासा बढ़ोत्तरी हो रही हैं। बीज, खाद, दवा, बिजली, डीजल सब मंहगे हुये हैं। सरकार कीमतों को काबू में करने के लिये देशवासियों से ही नहीं प्रवासी भारतियों से भी सच नहीं बोल रही हेै। नई दिल्ली में आयोजित छत्प् सम्मेलन में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह व वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुये मोैजूदा मंहगाई की वजह आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज और सामान की कीमतों में वैश्विक स्तर पर बढ़ोत्तरी को बताया। प्रधानमन्त्री ने देश में विकास की दर को दो अंकों के लक्ष्य तक ले जाने का दावा किया। प्रवासियों के बीच आर्थिक आंकड़े पेश करते हुये दोनों नेता इस बात का बखूबी ख्याल रख रहे थे कि लगातार बढ़ती मंहगाई पर काबू पाने में सरकार की नाकामी के मद्दे नज़र कोई भी दावा विरोधाभास बनकर सामने न आ जाय। सरकार को यह अहसास खूब है कि मंहगाई पर काबू पाने में उसकी नाकामी उसके दावों की हवा निकाल रही है। जच्चा बच्चा, कच्चे पक्के चाहे किसी से सब बिना पूछे ही कहते मिलेंगे मंहगाई के लिये यूपीए-2 सरकार जिम्मेदार है। गृह मन्त्री चिदम्बरम साहब कहते हैं सरकार के पास मंहगाई रोकने के पर्याप्त उपाय नहीं हैं। मंहगाई से बढ़कर और क्या टैक्स हो सकता है। सवाल उठता है कीमते काबू में कैसे आयें उसके लिये सरकार को आकड़ों का खेल और गैर जिम्मेदार बयानबाजी तुरन्त बन्द करनी चाहिए। मंहगाई को रोकने की वर्तमान असफल नीति में आमूल चूल परिर्वतन करना चाहिए सत्ताधारियों में दृढ इच्छाशक्ति का होना बेहद जरूरी है। मौजूदा कानून को तत्काल बदल देना चाहिए। कमीशनखोरों के गोदामों पर छापों की कारवाई बढ़नी चाहिए। प्रभु की कृपा से भारत पर प्रकृति मेहनबान है हमारा उत्पादन बढ़ा है घटा नहीे है। सरकारी गोदामों में गेहंूं के भण्डार भरे पड़े हैं, अनाज को रखने की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण अनाज सड़ जा रहा है। एक तरफ गरीब भूखमरी से मर रहा है वहीं दूसरी ओर अनाज न बट पाने के कारण सड़ रहा है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि एवं खाद्य मन्त्री शरद पवार को तत्काल अनाज गरीबों में बांटने को कहा था। मा0 मन्त्री ने न्यायालय के सुझाव पर अमल करने में असमर्थता जताई। तब मा0 न्यायालय को कड़ी फटकार लगानी पड़ी। उसके बाद मन्त्री जी के मान पर जूं रेंगी। सरकार के मन्त्री कहते हैं कि मंहगाई रोकना राज्य सरकारों का काम है। लोग ज्यादा खाने लगे हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि 2008 में मिस्र, कैमरून और हैती देशों में खाने को लेकर दंगे हो चुके हैं। हमारे देश की हालत बेहद खस्ता है कुछ मण्डियों में प्याज की कीमत 89प्रतिशत और सब्जियों में 59 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज हो चुकी है। मौसमी फल 20 प्रतिशत, दूध का मूल्य 19 प्रतिशत बढ़ गये हैं। मात्र 7 साल पहले राजग सरकार के जब अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमन्त्री थे तथा राजनाथ सिंह कृषि मन्त्री थे उस समय चीजों के जो दाम थे वह आज तीगुना-चौगुना हो चुके हैं। जैसे -

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यह प्रमाणित है कि अटल सरकार ने जनता के हितों को ध्यान में रखते हुये  6 वषोZ तक मंहगाई को बढ़ने से रोका वहीं यूपीए-2 मनमोहन सरकार ने 6 वषोZ में महंगाई से जनता की कमर तोड़ दी।

नरेन्द्र सिंह राणा - लेखक, पावर लििफ्टंग के अन्तर्राष्ट्रीय कोच रहे हैं
लखनऊ, मो0 9415013300

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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