अलाव जलाने में फिसड्डी नपाप जौनपुर टापर और अन्य तीन नगर पालिका प्रथम हैसियत में है
उपेक्षित और अड़ियल रवैया इस आपदा के समय भी हैवानियत भरा ही दिखाई दे रहा है। जिम्मेदार शासन-प्रशासन का मानवीय और नैतिक दायित्व होता है कि वह प्रदेश की िस्मता, वजूद और जनता के जान-माल की हिफाजत किसी आपदा और दैवीय प्रकोप में लड़कर करे, लेकिन नक्कारी व्यवस्था के कारण शासन-प्रशासन मौजूदा समय में पूरी तरह असफल ही साबित हुआ है। हाड़ कंपा देने वाली इस ठण्ड में राहत के नाम पर शासन तो मौन साधे हुए है, प्रशासन सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर अलाव जलाने के लिए िढंढोरा पीट रहा है। रोज ही नये-नये आदेश-निर्देश अखबारों में छपवाकर वाहवाही लूटे जाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि जनपद में चल रहे 12 दिन से भीषण ठण्ड और शीत लहर से राहत देने के लिए इक्का-दुक्का स्थानों को छोड़कर नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं भी अलाव जलता दिखाई नहीं दे रहा है।
जनपद के अन्य तहसीलों में अलाव जलाने की बात ही बेमानी है। नगर क्षेत्र जो सर्व साधन सम्पन्न क्षेत्र है और जिले के लगभग सभी अधिकारी नगर क्षेत्र में रहते हैं। कहीं भी सरकारी खर्चे पर अलाव जलवाते नहीं देखे गये। इस भीषण ठण्ड में शीत लहर से बचने के लिए घर-परिवार वाले व्यक्ति, दुकानदार, कल-कारखाने के मजदूर अपने खर्चे से लकड़ी, काटूZन, कपड़ा, टॉयर आदि जलाकर ठण्ड से निजात पाने के लिए आग जला रहे हैं। काफी चिल्ल-पो होने पर कहीं-कहीं हरे पेड़ की न जलने वाली कुछ लकड़ियां रखकर इतिश्री कर देते हैं। ग्रामीण इलाकों में प्रशासन की उपेक्षा है। ग्राम पंचायतों के प्रधान बजट न होने का रोना रोकर पीछा छुड़ा रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण ठिठुरन से निजात पाने के लिए सरपत, पुआल व अपनी जलाऊ लकड़ी जलाकर अपने जीवन की रक्षा कर रहे हैं, मगर शासन-प्रशासन का रवैया अभी भी क्रूरता का बना हुआ है। कहना अनुचित न होगा कि मुर्दो को ज़िन्दा रखने के लिए अरबो-खरबों बहाये गये और जिन्दों को जिलाने के बजाय मरने की नीति अपनाई जा रही है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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