उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव 2012 में होने हैं। चुनावो की हवा लेकिन बहने लगी है। बसपा प्रत्याशियों के नाम घोिशत किए जा रहे हैं। यानी मुख्यमन्त्री ने यह बात मान ली है कि अब आगे ‘ाासन चलाना उनके वश की बात नहीं रही है। देवरिया, गाजीपुर, मथुरा की घटनाओं से जाहिर है कि प्रशासनतन्त्र पंगु और नििश्क्रय हो गया हे। लूट, भ्रश्टाचार से त्रस्त जनता का आक्रोश अब फूट पड रहा है। ऐसे में महामहिम राज्यपाल को चाहिए कि वे मायावती सरकार से तत्काल इस्तीफा मांग लें और चुनाव आयुक्त आचार संहिता लागू कर मध्यावधि चुनाव की प्रक्रिया ‘ाुरू करने की तैयारी करें।
मुख्यमन्त्री ने समय से पूर्व प्रत्याशी घोिशत करने के साथ कई खेल खेले हैं। विभिन्न विधानसभाई क्षेत्रोें में सम्भावित प्रत्याशियों के बीच टिकट नीलामी के खेल में सबसे ज्यादा बोली लगाने वालो का ही नाम घेािशत होता है, यह बसपा की पुरानी रस्म है। इससे एक लम्बा सौदा हो जाता है। बसपा के घोिशत प्रत्याशियों को चुनाव तक वसूली लक्ष्य पूरा करने का वचन निभाना होता है।
बसपा राज में बहे भ्रश्टचार के परनाले की दुर्गंध अब असह्य होती जा रही हैं। कोई विभाग और क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जहां अवैध वसूली नहीं हो रही है। मुख्यमन्त्री खुद आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में अदालतों में सफाई देते घूम रही हैं तो लोकायुक्त उनके तीन मन्त्रियों को अपनी प्रारिभ्मक जांच में भ्रश्ट आचरण का दोशी पा चुके हैं। बसपा के कई मन्त्री और विधायक रेप एक्सपर्ट हैं, कई हत्या, लूट और अपहरण के मामलें में फंसे हुए हैं। लोगों की जमीन, जायदाद कब्जाने के मामलों में तो बसपाई नेताओं का कोई जवाब नहीं है।
मुख्यमन्त्री को मालूम है कि प्रदेश में विकास ठप्प है और कानून व्यवस्था की हालत बिगड़ी हुई है। ऐसे में जनता का गुस्सा अपनी हदें तोड़ सकता है। मुख्यमन्त्री की लूट और भ्रश्टाचार अब जनता की निगाह में खटकने लगा है। वे विधान सभा भंगकर अपनी बचत के रास्ते खोज रही है। महामहिम राज्यपाल को स्थिति का तत्काल संज्ञान लेते हुए मायावती की सरकार को प्रदेश का और ज्यादा अहित करने से रोकने में देर नहीं करनी चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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