डाक बंगला बना एआरटीओ का आफिस
मैं मन्त्री का खास रिश्तेदार हूं। एआरटीओ अधिकारी हूं। मैं दफ्तर क्यों जाऊं। मेरा दफ्तर, कार्यालय यही डाक बंगला है। मैं यही ड्यूटी देता हूं और सारे आफिशियल कार्य यहीं पर करता है। यह कहना है जनपद के आरटीओ आफिस के एआरटीओ (सहायक सड़क परिवहन संभाग) अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद का।
दरअसल में वाहनों का डीएल और खरीदे गये वाहनों के कागजात आदि बनवाने के मामले में गोरखधंधे और लूटपाट का केन्द्र बना आरटीओ आफिस जिले को भ्रष्टतम विभाग है। कुछ लोग इन्हीं कार्यो को लेकर बराबर आरटीओ आफिस का चक्कर लगाकर परेशान हो गये तो उन लोगों ने अधिकारी से मिलना चाहा तो वहां मौजूद एआरटीओ के दलाल ने तपाक से कहा कि साहब से मिलना है तो आइये हम मिलाते हैं। इतना कहकर जब दलाल कुछ लोगों को लिवाकर आफिस से बाहर जाने लगा तो पूछने पर उसने बताया कि साहब आफिस में कभी नहीं आते। वो अपनी ड्यूटी और सारा काम डाक बंगले में ही निबटाते हैं। दलाल द्वारा उन लोगों को साहब के पास लिवा जाने पर साहब, मुगाZ आते देख खुश हो गये और दलाल को अन्य मुर्गो की तलाश के लिए वापस आरटीओ आफिस भेज दिया तथा मिलने वालों से सौदेबाजी कर ले-देकर काम निबटा दिया। जब उनसे लोगों ने पूछा कि साहब आफिस सब जानते है और वहीं जाते हैं। मगर आप वहां मिलते ही नहीं तो जवाब देते हुए एआरटीओ ने मूछों पर ताव देते हुए कहा कि मैं मन्त्री का खास रिश्तेदार हूं और एआरटीओ हूं। इसलिए मैं आफिस कभी नहीं जाता। अपना सारा काम और आप जैसे लोगों की सेवा यहीं डाक बंगले से करता हूं। जो आदमी आपको मुझ तक लाया है, वह मेरा खास आदमी है। जो भी काम हो आप उसे लिवाकर आ जाइयेगा। मैं यही से फाइनल कर दूंगा। यहां काम-काज के दौरान लेन-देन में कोई दिक्कत या लफड़ा नहीं रहता।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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