संयुक्त राष्ट संघ ने मतदान के माध्यम से एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें ‘ईरान में मानवाधिकारों पर गंभीर चिंता’ व्यक्त की गई है। यह मतदान बीता 21 दिसम्बर 2010 को सम्पन्न हुआ जिसमें 78 में से 45 देशों ने भाग लिया जबकि भारत सहित 59 सदस्य देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया। इस प्रस्ताव में स्पष्टत: ईरान के मानवाधिकार रक्षकों पर बढ़ते अत्याचार एवं उनके खिलाफ बल का अत्यधिक प्रयोग, उन्हें बंदी बनाना, दोषपूर्ण एवं अनुचित कानूनी कार्यवाही एवं अत्याचार की रिपोर्ट पर चिंता व्यक्त की गईहै, साथ ही साथ लिंगभेद में बढ़ोत्तरी, औरतों पर अत्याचार एवं अल्पसंख्यकों से भेदभाव, जिसमें बहाई अनुयायी भी शामिल हैं, पर गंभीर आपत्ति व्यक्ति की गई है।
इसी संदर्भ में कनाडा के विदेश मंत्री लॉरेन्स कैनन ने एक बयान में अपने देश की चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कनाडा ईरानी सरकार की घरेलू एवं अन्तर्राष्टीय कानूनों का पालन करने में लगातार असफलता पर अत्यन्त चिंतित है। कनाडा की सरकार मानवाधिकार हनन, भेदभाव एवं अल्पसंख्यकों से दुर्व्यव्हार के खिलाफ पूरी तरह ईरान की जनता के साथ है। पिछले माह आस्टेलिया के संसद सदस्यों ने विशेष रूप से ईरान के अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव, विशेष रूप से बहाई, सूफी, बलूच एवं कुर्दिश सम्प्रदायों के खिलाफ तथा सात बहाई नेताओं को सजा देने इत्यादि पर ईरान सरकार की असफलता पर गंभीर चिंता व्यक्त की। अमेरिका के राज्य विभाग ने नवम्बर में प्रकाशित सालाना इण्टरनेशनल रिलीजियस ीडम रिपोर्ट में कहा कि ईरान में धार्मिक स्वतन्त्रता लगातार खत्म होती जा रही है जिससे गैर शिया धार्मिक समूहों, विशेषकर बहाइयों के लिए वातावरण खतरनाक बन गया है।
संयुक्त राष्ट में बहाई इंटरनेशनल कम्यूनिटी की प्रमुख सदस्य सुश्री बानी दुगाल ने कहा कि विश्व समुदाय ने साफ-साफ ईरान में मानवाधिकार हनन एवं बढ़ते अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई है। यह सब काफी लंबे समय से होता आ रहा है तथा अब समय आ गया है कि ईरान विश्व समुदाय की बात सुने तथा अन्तर्राष्टीय कानून का पालन करे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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