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कांग्रेस की 125वीं वर्षगांठ पर विशेष- भारतीय राष्ट्रीय कंाग्रेस की उपलब्धियां एवं चुनौतियां

Posted on 27 December 2010 by admin

28दिसम्बर को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपनी स्थापना के 125 वर्ष पूरे कर रही है। इन 125 वषोZं में जहां एक ओर कांग्रेस पार्टी ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया और इसे अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराया। वहीं दूसरी ओर आजादी के बाद देश को एकता के सूत्र में पिरोने, आत्मनिर्भर बनाने, गरीबों, किसानों, दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं तथा समाज के सभी कमजोर वर्गों के लिए विकास का ताना-बाना तैयार करने और उसमें उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास किया। एक मजबूत, लोकतान्त्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण में कांग्रेस पार्टी के योगदान, बलिदान और गौरवशाली परम्परा के कारण ही आज भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था और विश्वशक्ति बनकर उभर रहा है।

जिस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, पूरे देश में आम लोगों की आवाज उठाने का कोई मंच मौजूद नहीं था। 1857 के विप्लव के बाद सभी विरोधियों को अंग्रेजों ने गोली, बन्दूकों और तोपों के जरिए मौत के घाट उतार दिया था। देश में एक असहज सन्नाटा सा पसरा हुआ था। अंग्रेज अपनी मनमानी करने पर तुले थे और न्यायसंगत बात करना भी विद्रोह का प्रतीक माना जाता था। ऐसे में यह एक अंग्रेज प्रशासक ए.ओ.ह्यूम ही थे जिन्होने जनता की नब्ज को पहचाना और एक ऐसे संगठन की परिकल्पना की जिसके माध्यम से भारतवासी अपनी बात और अपनी समस्याएं अंग्रेज शासकों के समक्ष मजबूती से उठा सकें। उस समय सम्भवत: किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ऐसा संगठन साबित होगा जो भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने का माध्यम बनेगा। परन्तु सच तो यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कंाग्रेस के शैशवकाल से ही आधुनिक भारत में प्रगति, शंाति और समृद्धि की एक मजबूत नींव पड़ चुकी थी। अंग्रेजों के शासनकाल में ही भारतीय राष्ट्रीय कंाग्रेस एक मात्र ऐसी पार्टी रही जिसने सभी वर्गों, धर्मों और समुदायों को एक सूत्र में पिरोकर ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध देशव्यापी संघर्ष का सूत्रपात किया। कंाग्रेस ने ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर रोक लगाने वाली नीतियों के खिलाफ संघर्ष किया। जिससे बौखलाकर इस संघर्ष का नेतृत्व करने वाले तमाम नेताओं को ब्रिटिश हुकूमत ने राष्ट्रद्रोह के अपराध में जेल के सींखचों के पीछे डाल दिया।

भारतीय राजनीति में गांधी जी के पदार्पण के पहले अनेक नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलन्द करने के कारण यातनाएं झेलीं और जेल गये। इनमें बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, दादा भाई नौरेाजी, गोपाल कृष्ण गोखले, देशबन्धु चितरंजन दास, मोती लाल नेहरू, ऐनी बेसेंट और बदरूद्दीन तैय्यब जैसे महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी नेतृत्व के अिग्रम पंक्ति में थे।

गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका से भारत आने एवं भारतीय राष्ट्रीय कंाग्रेस का नेतृत्व सम्भालने के पश्चात आजादी के आन्दोलन को एक नई धार मिली। सविनय अवज्ञा, असहयोग, खादी, सत्य, अिंहंसा जैसे साधन आजादी के आन्दोलन में महात्मा गांधी के नये हथियार बने। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक अभिनव आदर्श प्रस्तुत किया। जिसने न सिर्फ भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी वरन् दुनिया भर में साम्राज्यवादी शक्तियों के दमन और उत्पीड़न के विरूद्ध चल रहे अभियान को एक नई धार दी। गांधी जी के नेतृत्व ने दुनिया केा यह दिखा दिया कि किस तरह सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह जैसे साधन अपनाकर उस ब्रिटिश हुकूमत को भी हिलाया जा सकता था जिसका सूर्य कभी अस्त नहीं होता था। गांधी जी ने दुनिया को दिखा दिया कि शासक वर्ग कितना भी क्रूर, दमनकारी तथा ताकतवर क्यों न हो, उसे आम जनता की शान्तिपूर्ण एकता तथा सभी धर्मों एवं समुदायों की सामूहिक पहल के आगे झुकना ही पड़ता है। मोहन दास करमचन्द गांधी के इसी सत्य तथा अहिंसा के दर्शन के कारण विश्व कवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने उन्हें “महात्मा´´ का दर्जा दिया था। यह महात्मा गांधी ही थे जो अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के कारण विभिन्न सम्प्रदायों एवं समुदायों में गठित लोगों को एक सूत्र में पिरोकर अंग्रेजों से लेाहा ले सके। एक ओर जहां उन्होने सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों द्वारा समाज में एकता का सन्देश दिया वहीं दूसरी ओर हिन्दू एवं मुसलमानों को एक मंच पर लाने में सफलता प्राप्त की। महात्मा गांधी ने दलित उत्थान की दिशा में समाज के सबसे निचले तबके की स्थिति सुधारने के लिए “अस्पृश्यता निवारण´´ जैसा कार्यक्रम कंाग्रेस पार्टी को दिया। छुआछूत की भावना मिटाने के लिए उन्होने दलितों के साथ हर तरह के भेदभाव का विरोध किया। दलित उत्थान की दिशा में महात्मा गांधी और कंाग्रेस पार्टी का यह अप्रितम योगदान था। यह महात्मा गांधी का ही राजनीतिक कौशल था कि जिसके कारण गरम दल और नरम दल के बीच समझौता हुआ। असहयोग आन्देालन, दाण्डी मार्च, नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा और अन्तत: भारत छोड़ो आन्देालन के जरिए न सिर्फ भारतवासियों को बल्कि विश्व भर के तरक्कीपसन्द और शान्तिप्रिय लोगों को भारतीय स्वतन्त्रता आन्देालन से जोड़ दिया। फलस्वरूप अंग्रेज शासकों पर चौतरफा दबाव पड़ा और वह भारत छोड़ने के लिए मजबूर हो गये। अंन्तत: महात्मा गांधी के नेतृत्व में जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, मौलाना अबुल कलाम आजाद, गणेश शंकर विद्यार्थी, सरोजनी नायडू, बाबू जगजीवन राम, डा. राजेन्द्र प्रसाद, जय प्रकाश नारायण, आचार्य कृपलानी, पट्टाभि सीतारमैया, सरदार बल्लभ भाई पटेल, राजषिZ पुरूषोत्तम दास टण्डन, मौलाना मोहम्मद अली जैसे अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के संघषोZं के माध्यम से 15अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ।

भारत की आजादी के बाद पं. जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमन्त्री बने। नेहरू जी एक बुद्धिजीवी, चिन्तक, दूरदशीZ तथा असाधारण राजनेता थे जिन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारतीय जनता एवं अर्थव्यवस्था विशेषकर कृषि एवं उद्योग अत्यन्त विपरीत व विषम परिस्थितियों से गुजर रही थी। इसलिए आजादी के बाद पं0 नेहरू की प्राथमिकता भारतीय अर्थव्यवस्था एवं कृषि को फिर से पटरी पर लाना था। यही कारण था कि नेहरू जी ने देशवासियों का आवाहन किया कि हमें राजनैतिक आजादी तो मिल गई है लेकिन आर्थिक आजादी प्राप्त करने के लिए सबको मिलकर प्रयास करना होगा। उन्होने जहां एक ओर पंचवषीZय योजनाओं का सूत्रपात किया वहीं दूसरी ओर सिंचाई के लिए नहरों एवं बांधों के निर्माण पर बल दिया। भूमि सुधारों को लागू करने के लिए उन्होने तेजी से कदम उठाये जिसके तहत जमीन्दारी उन्मूलन कानून बना और किसानों को जमीन्दारेां के उत्पीड़न से मुक्त कराया गया। पण्डित नेहरू ने खाद के कारखाने स्थापित करने और बड़े बांध बनाने पर भी बहुत जोर दिया और वह इन बड़े बांधों केा आधुनिक भारत का मन्दिर कहा करते थे। उन्होने भारत के परमाणु कार्यक्रम की भी नींव रखी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए कुटीर एवं लघु उद्योगों को बढ़ावा देकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने पर जोर दिया। जाहिर सी बात है यह सारे कार्यक्रम एक तरह से आजादी के आन्दोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की देश के आम लेागों के प्रति प्रतिबद्धता एवं विरासत की ही कड़ी थे।

कंाग्रेस की नीतियों को पं. नेहरू ने मूर्त रूप देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इसलिए भारतीय संसद में जहां एक तरफ हिन्दू कानून में का्रन्तिकारी बदलाव लाकर छुआछूत जैसी सामाजिक विषमता को दूर करने की कोशिश हुई वहीं दूसरी तरफ सामाजिक बदलाव के लिए महिलाओं को भी सामाजिक स्वतन्त्रता का अवसर दिया गया। भारतीय संविधान में डा. अम्बेडकर के विचारों को कांग्रेस पार्टी ने स्वीकार किया और सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े लेागों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए अनुसूचित जाति एवं जनजातियोें को आरक्षण का लाभ दिया गया। कांग्रेस सरकार ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एवं उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए साम्प्रदायिक सद्भाव एवं धर्मनिरपेक्षता को हमेशा अपने एजेण्डे पर रखा। गौरतलब है कि 1955 में आवड़ी अधिवेशन में कांग्रेस पार्टी ने समाजवाद-उन्मुख व्यवस्था पर आधारित समाज के निर्माण पर जोर दिया, जिससे गैर बराबरी दूर करने की दिशा में कांग्रेस की सरकार की तरफ से अनेक कदम उठाये गये। पं0 नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने देश के प्रधानमन्त्री पद की बागडोर सम्भाली। उनके नेतृत्व में भारतवर्ष ने पाकिस्तान के विरूद्ध एक बड़ी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। देश पर आये संकट के समय उन्होने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास करने की अपील की, जिसका बहुत व्यापक असर पड़ा। शास्त्री जी ने जय जवान-जय किसान का एक ऐसा नारा देश को दिया जो आज भी प्रासंगिक है।

शास्त्री जी की असमय मृत्यु के कारण देश की बागडोर इिन्दरा गांधी के हाथों में आयी। उनका प्रारिम्भक कार्यकाल काफी चुनौतीपूर्ण रहा। उन्हें कांग्रेस पार्टी के ही एक वर्ग का विरोध झेलना पड़ा। इिन्दरा जी जहां बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने एवं प्रीवीपर्स खत्म करने की वकालत करती थीं वहीं दूसरी ओर उनके विरोधी उन्हें इस दिशा में बढ़ने से रोकते थे। किन्तु इिन्दरा जी ने देश के गरीबों, पिछड़ों और दलितों के हित में निर्णय लिये जिसक परिणति अन्ततोगत्वा कांग्रेस पार्टी के विभाजन के रूप में हुई। 1971 में पाकिस्तान से एक बार फिर युद्ध की स्थिति पैदा हुई। इिन्दरा जी की राजनीतिक सूझबूझ के चलते पाकिस्तान को पुन: करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान दो भागों में विभाजित हुआ और बंगलादेश का जन्म हुआ। हरित क्रान्ति और श्वेत क्रान्ति इिन्दरा जी के प्रधानमन्त्रित्व काल का अविस्मरणीय योगदान है। यह इन्दिरा गांधी ही थीं जिन्होने बीस सूत्रीय कार्यक्रम लागू किया और गांवों में गरीबों के बीच जमीन का वितरण करवाया। उन्होने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्षता´´ और “समाजवाद´´ को जुड़वाकर एक क्रान्तिकारी कदम उठाया। 1974 में पहला परमाणु विस्फोट करके भारत को परमाणु सम्पन्न देश बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इिन्दरा जी के कार्यकाल में गुट निरपेक्ष आन्दोलन में भारत एक महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली देश के रूप में उभरा। इिन्दरा जी ने देश की एकजुटता और अखण्डता के लिए कांग्रेस की नीतियों के अनुरूप कभी भी समझौता नहीं किया। यही कारण था कि अलग खालिस्तान की मांग को लेकर उपजे आतंकवाद को दबाने में उन्होने कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। इिन्दरा जी ने देश की एकता-अखण्डता की बलि बेदी पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।

संजय गांधी की असमय निधन के कारण कम उम्र में ही राजीव गांधी राजनीति में कदम रखा और अपनी मां की सहायता करने लगे थे। इिन्दरा जी के असामयिक निधन से पूरे कंाग्रेस पार्टी ने उन्हें ही प्रधानमन्त्री पद के लिए सबसे उपयुक्त माना। राजीव जी ने प्रधानमन्त्री पद का दायित्व सम्भालने के बाद सबसे पहले उद्योगों केा बढ़ावा दिया तथा कम्प्यूटर एवं संचार तकनीक की नींव रखी। राजीव जी की इसी सोच के चलते आज भारत की प्रगति में कम्प्यूटर एवं दूर संचार क्रान्ति ने पूरे विश्व में भारत को प्रतििष्ठत किया। इसी के साथ राजीव जी ने देश में युवाओं को 18वर्ष का मताधिकार देकर एवं पंचायती राज व्यवस्था लागू कर देश के कमजोर वर्गों, महिलाओं एवं युवाओं को शासन सत्ता में भागीदारी का मार्ग प्रशस्त किया।

सत्ता के विक्रेन्द्रीकरण के रूप में पंचायती राज व्यवस्था का लाभ आज पूरे भारत में देखने को मिल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से हो रही विकास की गति का पूरा श्रेय राजीव जी को ही जाता है। 1989 में बोफोर्स मामले में दुष्प्रचार के चलते कांग्रेस को लेाकसभा के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। लेकिन राजीव गांधी के प्रति आम लोगों के दिलों  में असीम स्नेह एवं विश्वास कभी कम नहीं हुआ।

तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस पार्टी एक बार फिर केन्द्र में सरकार बनाने में सफल रही और नरसिम्हाराव के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार गठित की। उनकी सरकार ने आर्थिक सुधारों का एक नया प्रयोग आरम्भ किया गया। जिससे भारत एक बार फिर आर्थिक रूप से शक्तिशाली बन सका। इसी बीच बाबरी मिस्जद के विध्वंस ने एक बार फिर साम्प्रदायिक राजनीति को हवा दी। साम्प्रदायिक विभाजन का नुकसान कांग्रेस को भी उठाना पड़ा। खासतौर पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की नाराजगी कांग्रेस से इस कारण बढ़ गई कि केन्द्र में उसकी सरकार होने के बावजूद मिस्जद का विध्वंस नहीं रोका जा सका। अल्पकालिक भाजपा की सरकार एवं संयुक्त मोर्चे की सरकार भी देश को नई दिशा नहीं दे सकी। कांग्रेस संगठन में भी बिखराव की स्थिति उभर रही थी। ऐसे मौके पर सोनिया गांधी ने कंाग्रेस को दिशा देने का निर्णय लिया और कंाग्रेसजनों को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई थी। 1998 से लेकर अब तक सोनिया गांधी के नेतृत्व में कंाग्रेस पार्टी लगातार मजबूत हो रही है। 2004 के चुनाव के पहले जहां उन्होने राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन(एनडीए) के विरूद्ध एक मजबूत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए) बनाया वहीं कांग्रेस को भी अनुशासित एवं संगठित करने पर अपना ध्यान केिन्द्रत किया। 2004 में जब यूपीए गठबंधन सत्ता में आया तो हर तरफ यही उम्मीद थी कि सोनिया गांधी ही प्रधानमन्त्री बनेंगी। लेकिन त्याग का एक अविस्मरणीय एवं अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होने प्रधानमन्त्री पद अस्वीकार कर दिया एवं डा0 मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री बने। 2004 के चुनाव में राहुल गांधी पहली बार अमेठी से सांसद चुने गये एवं देश के युवाओं को इस नये नेतृत्व ने अपनी सच्चाई और ईमानदारी से अत्यधिक प्रभावित किया। इस दौरान आर्थिक विकास की दर तेजी से बढ़ी और भारत विश्व में आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा। किसानों की कर्जमाफी, महात्मा गांधी नरेगा, सूचना का अधिकार, जंगल की जमीन पर आदिवासियों का अधिकार जैसे महत्वपूर्ण एवं क्रान्तिकारी कदम उठाये गये, जिसके फलस्वरूप 2009 में हुए लोकसभा के आम चुनावों में कांग्रेस और भी ज्यादा ताकतवर बनकर उभरी। शिक्षा का अधिकार का कानून बना एवं खाद्य सुरक्षा बिल तैयार किया गया। जिसके लागू होने के बाद यह देश में गरीबी और भुखमरी से लड़ने का सबसे सशक्त माध्यम बनेगा।

दिल्ली में सम्पन्न हुए कंाग्रेस के 83वें महाधिवेशन में सोनिया गांधी ने एक बार फिर भ्रष्टाचार एवं साम्प्रदायिकता से लगातार लड़ने का संकल्प कांग्रेसजनों को दिलाया है। भारतीय जनता पार्टी एवं अन्य विरोधी दल भले ही कांग्रेस पर भ्रष्टाचार को लेकर हमलावर हों, भ्रष्टाचार से लड़ने की कांग्रेस पार्टी की प्रतिबद्धता कभी कम नहीं रही।

125वर्ष की कांग्रेस पार्टी भविष्य के पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करने की दिशा में तेजी से अग्रसर है। इसके पास ठोस नीतियां हैं, ठोस कार्यक्रम हैं और जनहितकारी कदम उठाने की प्रतिबद्धता भी है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नेतृत्व एवं डा0 मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केन्द्र सरकार, कंाग्रेस कार्यकर्ताओं और आम जनता को यह विश्वास दिलाने में सफल सिद्ध होगी कि देश कंाग्रेस के हाथों में पूरी तरह सुरक्षित है और देश के युवाओं का भविष्य, देश का विकास, सामाजिक न्याय की दिशा में बढ़ते कदम और भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि लगातार निखरती रहेगी।

सुबोध श्रीवास्तव- राष्ट्रीय समाचार फीचर्स नेटवर्क

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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