प्रदेश के पंचायत चुनावो में मुख्यमन्त्री मायावती के निर्देश पर लोकतन्त्र की जैसी निर्मम हत्या की गई है और प्रशासनतन्त्र को पार्टी के बंधुआ मजदूर के रूप में इस्तेमाल किया गया है, इससे गम्भीर संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। राज्य निर्वाचन आयोग की स्वतन्त्र व निश्पक्ष मतदान कराने की क्षमता पर भी इस सरकार ने प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। सत्तारूढ़ दल के पक्ष में प्रशासनिक आतंकवाद की छाया में जब चुनाव होगें तो जनतन्त्र कहंा बचेगा.
जिला पंचायत के चुनाव में मुख्यमन्त्री ने जमकर काले धन का इस्तेमाल किया है। बसपा के अध्यक्षों को जिताने के लिये लगभग एक हजार करोड़ रू0 खर्च किये गये हैं। यह जनता की गाढ़ी कमाई की लूट का निन्दनीय कृत्य है।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावो की पूरी प्रक्रिया सरकारी छलबल और धनबल की शिकार रही है। जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को सीधे आदेश थे कि वे बसपा समर्थित जिला पंचायत अध्यक्षों को चुनाव में जिताएं जबकि पंचायत चुनावों में समाजवादी पार्टी पहले नम्बर पर है।
मुख्यमन्त्री मायावती के इशारे पर खुलकर धांधली की गई। राज्य निर्वाचन आयोग पंगु बना रहा। सरकारी तौर पर तमाम मतदाताओं को नियम के विरूद्ध सैकड़ों ÞसहयेागीÞ दिये गए ताकि वे बसपा के पक्ष में वोट डालें। समाजवादी पार्टी के पंचायत सदस्यों के घरों में दबिश डाली गई। उनके और परिवारीजनों के ईट भट्टों के लाइसेंस रद्द किए जाने की धमकियां दी गई। कई का अपहरण हुआ।
बसपा ने जिला पंचायत के अध्यक्ष पद सरकारी डकैती डालकर लूटे हैं। इस लूट में भाजपा-कांग्रेस ने भी कई जगह बसपा का साथ दिया। बसपा प्रत्याशी के जुलूस में कांग्रेस नेताओं की भागीदारी साबित करती है कि कांग्रेस -बसपा में मिलीभगत है। भाजपा भी इनके साथ मौका परस्ती में साथ हो जाती है।
सरकारी दबाव में 23 पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुनवा लिए गए। समाजवादी पार्टी ने मांग की है कि ये निर्वाचन रद्द हों और पुन: मतदान की व्यवस्था हो।
समाजवादी पार्टी द्वारा पंचायत चुनावों में धांधली की तथ्यपरक रिपोर्ट राज्य निर्वाचन आयोग को भेजी गई किन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। स्वयं समाजवादी पार्टी के राश्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव ने सत्ता के दुरूपयोग के खिलाफ 11 दिसम्बर को चेताया था कि मुख्यमन्त्री चुनाव जीतने के लिए बेईमानी पर उतर आई है। नेता विरोधी दल श्री शिवपाल सिंह यादव एवं समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने भी कई बार राज्य निर्वाचन आयेाग से शिकायते की किन्तु कोई कार्यवाही नही हुई।
राज्य निर्वाचन आयोग की स्वतन्त्र व निश्पक्ष चुनाव कराने में अक्षम भूमिका के चलते हाईकोर्ट को बाराबंकी मथुरा में डीएम एसपी को हद में रहने की चेतावनी देनी पड़ी। मथुरा के डीएम हटाए गए, बाराबंकी के डीएम और एसपी से जवाब तलब किया गया। उन पर बसपा प्रत्याशी के पक्ष में काम करने का आरोप है।
एटा, मुरादाबाद, मथुरा, बाराबंकी, मुजफ्फरनगर, झॉसी आदि जिलो में सत्तारूढ़ दल ने स्वतन्त्र मतदान का मखौल उड़ाया। मथुरा में बसपा के एमएलसी ने गुण्डई की। मुजफ्फरनगर में जनता ने ही धांधली का विरोध किया। दोनों जगह बौखलाई पुलिस ने स्वतन्त्र मतदान की मांग करने वालों पर ही लाठियां भांजी। बस्ती झॉसी में मतदान की गोपनीयता नहीं रही।
मुख्यमन्त्री द्वारा बरती गई तमाम अड़चनों और गड़बड़ियों के बावजूद इटावा, मैनपुरी, कानुपर देहात (रमाबाईनगर) औरैया, ललितपुर, जालौन, गाजीपुर, गोण्डा, बहराइच, फैजाबाद तथा एटा में समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत अध्यक्ष जीते है।
समाजवादी पार्टी की महामहिम राज्यपाल से मांग है कि जिन जिलाधिकारियों एवं पुलिस अधीक्षकों ने पंचायत चुनावों में बसपा एजेन्ट की भूमिका निभाई है उनकी जांच कर उनके विरूद्व कार्यवाही सुनििश्चत की जाए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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