प्रदेश में आलू के अच्छे उत्पादन हेतु कीट/व्याधियों का उचित समय पर नियन्त्रण नितान्त आवश्यक है। आलू की फसल अगेती एवं पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है, प्रतिकूल मौसम विशेशकर बदलीयुक्त बून्दा-बान्दी एवं नम वातावरण में अगेती/पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुंचती है, ऐसी परिस्थितियों में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा आलू उत्पादकों को सलाह दी जाती है कि आलू की अच्छी पैदावार सुनििश्चत करने हेतु रक्षात्मक दृिश्टकोण अपनायें, ताकि पैदावार अच्छी हो सके।
यह जानकारी उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशक श्री डा0 एस0एस0सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि अगेती झुलसा रोग का प्रकोप निचली पत्तियों से प्रारम्भ होता है।, जिसके फलस्वरूप गहरे भूरे/काले रंग के कुण्डाकार छल्लेनुमा धब्बे बनते हैं, जो बाद में बीच में सूखकर टूट जाते हैं। प्रभावित निचली पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं। इन धब्बों के बीच में कुण्डाकार आकृति दिखाई देती है।
निदेशक, उद्यान ने बताया कि पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियां सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती हैं, जो तीव्र गति से फैलता है, पत्तियों पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों की निचली सतह पर रूई की तरह फफून्द दिखाई देती है। बदलीयुक्त 80 प्रतिशत से अधिक आद्रZ वातावरण एवं 10-20 ब तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नश्ट हो जाती है।
श्री सिंह ने बताया कि आलू की फसल को अगेती एवं पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए जिंक मैगजीन काबाZमेट 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से पहला रक्षात्मक छिड़काव बुवाई के 30-45 दिन बाद अवश्य किया जाये। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तराल पर दूसरा छिड़काव कॉपर आक्सीक्लोराइड 2.5 से 3.0 कि0ग्रा0 अथवा जिंक मैगजीन काबाZमेट 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 में से किसी एक रसायन का चयन कर 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से करने की सलाह दी जाती है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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