वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की स्थापना की कल्पना जिस उद्देश्य से तत्कालिन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने किया था वह बिल्कुल उल्टा हो गया है। इस विश्वविद्यालय में जहां एक ओर घोटालों का अम्बार है वही पर गुटबाजी चरम सीमा पर है। इस विश्वविद्यालय में अव्यवस्थाओं का दौर चल रहा है तथा कर्मचारी कई समूह में बटकर कार्य कर रहे हैं। विश्वविद्यालय में कर्मचारियों द्वारा अपनी गुट्टी सिद्ध करने के लिए किसी न किसी सम्बद्ध हो गये है। विश्वविद्यालय में चाहे तकनीकी हो अथवा गैर तकनीकी सभी मूल्यांकन में कुछ ही कर्मचारी लगाये जाते है तथा भारी भरकम धनराशि का बन्दरबाट कर लिया जाता है। अब सवाल उठता है कि नामचीन कर्मचारियों को ही क्यों लगाया जाता है। इस विश्वविद्यालय में सबसे अधिक विडम्बना यह है कि तकनीकी कर्मचारी से गैर तकनीकी तथा गैर तकनीकी कर्मचारी से तकनीकी कार्य लिया जा रहा है। इस ढंग से कार्य लेने से कार्य की सुचिता तथा पवित्रता प्रभावित होती है। विश्वविद्यालय में अधिकारियों द्वारा खुद गुटबाजी किये जाने का समाचार है जिसमें कुलसचिव व परीक्षा नियन्त्रक की इन कर्मचारियों पर छाया है। उक्त विश्वविद्यालय में किसी भी घोटाले का पर्दाफाश तक नहीं हो सका है। प्रभारी कुलपति की ईमानदारी का तभी पता चलेगा जब विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाये।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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