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वनाधिकार अधिनियम-2006 के क्रियान्वयन हेतु कार्यशाला सम्पन्न

Posted on 23 November 2010 by admin

वन निवासियों की आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु विकास परक कार्यक्रम संचालित किये जाये

पेड़-पौधों के संरक्षण में उनकी भागीदारी  सुनिश्चित की जाय

वन भू-अधिकार प्रमाण-पत्र के वितरण में तेजी लायें  -मुख्य सचिव

उत्तर प्रदेश सरकार अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006 के अन्तर्गत दावाधारकों को भू-अधिकार पत्र देने, उनकी भूमि के विकास हेतु कार्यक्रम संचालित करने  तथा भू-अधिकार प्राप्त लाभार्थियों का समग्र विकास करने हेतु कृत संकल्प है। यह अधिनियम समाज के सबसे पिछड़े और गरीब वन निवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए बनाया गया है। इसे लागू किये काफी समय हो गया है और पात्र लोगों को इसका लाभ शीघ्र मिलना चाहिए। ऐसे लक्षित वर्ग के लोगों को उनका वाजिब हक दिलाकर विकास की मुख्य धारा में जोड़ने के प्रयास में तेजी लाकर उनके विकास के लिए सभी संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

यह बात आज यहां योजना भवन के सभागार में वनाधिकार अधिनियम-2006 के क्रियान्वयन हेतु आयोजित कार्यशाला में मुख्य सचिव श्री अतुल कुमार गुप्ता ने कही। उन्होंने कहा कि वन में निवास करने वाली ऐसी अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों को, जो वनों में पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं, किन्तु उनके अधिकारों को अभी तक अभिलिखित नहीं किया जा सका है, उन्हें वन अधिकारों और वन-भूमि में अधिभोग को मान्यता देने के लिए अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006 लागू किया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य उन दावाधारकों के अधिकारों का निर्धारण करना है जो अपनी आजीविका हेतु वनों के ऊपर निर्भर हैं तथा अधिकारों के निर्धारण के साथ-साथ वनों की सुरक्षा संवर्द्धन का दायित्व भी उन्हें दिया जाना है। उन्होंने कहा कि वनों के अन्दर व आस-पास रहने वाले आदिवासी व परम्परागत वन निवासियों की आर्थिक स्थिति में जब तक सुधार नहीं होता, तब-तक वनों की सुरक्षा व संवर्द्धन में कठिनाई होगी। उन्होंने कहा कि इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वन अधिकार अधिनियम की धारा-3 (1) के अन्तर्गत खेती व निवास हेतु व्यक्तिगत अधिकार के अतिरिक्त सामुदायिक वन अधिकार प्रदान किये गये हैं तथा उनके सम्यक विकास को ध्यान में रखते हुए इस अधिनियम की धारा-3 (2) के अन्तर्गत विद्यालय, चिकित्सालय, आंगनबाड़ी केन्द्र, उचित दर की दुकानें, विद्युत और संचार लाइनें लघु जलाशय, पेय जल की आपूर्ति एवं संचयन, व्यवसायिक प्रशिक्षण एवं सामुदायिक केन्द्र आदि कार्यों के लिए एक हैक्टेयर वन भूमि दिये जाने की व्यवस्था है।

कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए समाज कल्याण आयुक्त श्री प्रेम नारायण ने कहा कि वनाधिकार अधिनियम के लागू करने में जो स्थानीय कठिनाईयां सामने आ रही हैं उन्हे दूर करने हेतु इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के क्रियान्वयन में अब तेजी आयी है। अभी गत दिवस जनपद सोनभद्र में 3000 अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासियों को भूमि अधिकार प्रमाण पत्र कैम्प लगाकर वितरित किये गये हैं। उन्होंने कहा कि अब तक प्रदेश में 9,971 वन निवासियों को  भूमि अधिकार प्रमाण पत्र वितरित किये जा चुके हैं। उनके विकास पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। उन्हें प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न विकासपरक एवं कल्याणकारी योजनाओं से लाभािन्वत किया जाना है ताकि उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। उन्होंने कहा कि वन भूमि में जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी जो वन भूमि पर रह रहे थे उनकों भूमि अधिकार देने के लिए यह अधिनियम बनाया गया है। प्रदेश में 12 ऐसे जनपद हैं जहां इस वर्ग के लोग पाये जाते हैं। अब तक कुल 91,698 वन निवासियों के दावें ग्राम स्तर पर प्राप्त हुये थे जिसमें 67,788 दावें अस्वीकृत किये गये हैं यह बड़ी संख्या है। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के बारे में वन निवासियों के बीच और अधिक प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है ताकि उन्हें अपने अधिकारों/दावें करने सम्बंधी समस्त जानकारी हो सके। उन्होंने कहा कि निरस्त दावों का पुन: परीक्षण किये जाने की आवश्यकता है।

श्री प्रेम नारायण ने कहा कि वन क्षेत्र में अन्य परम्परागत वन निवासी जो तीन पीढ़ी या 75 वर्ष से रह रहे हैं तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग के वन निवासी जो 2005 (वनाधिकार अधिनियम) से पूर्व वन क्षेत्र में रह रहे हैं उनको वन भूमि अधिकार प्रमाण पत्र दिया जाना है। उन्होंने कहा कि इस हेतु अध्यक्ष राजस्व परिषद की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया गया है जो उनके अधिकारों के भू अभिलेखों में उिल्लखित करने के सम्बंध सुझाव देगी।

प्रमुख सचिव समाज कल्याण श्री बलविन्दर कुमार ने कहा कि वनाधिकार अधिनियम की धारा-3(1) के अन्तर्गत जिन दावा धारकों को वन भूमि निवास व खेती के लिए दी गई है उनके बहुमुखी विकास हेतु कम्युनिटी राइट को अभियान के रूप में चला कर उन्हें लाभािन्वत कराया जाय। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को वन क्षेत्र में भूमि उपलब्ध कराई गई है, उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक करके पेड़़-पौधों के संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाय। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों के पक्ष में भूमि अधिकार दावे स्वीकृत करने तथा भू-अधिकार पत्र दिये जाने का कार्य सबसे अच्छा जनपद सोनभद्र में किया गया है और लखीमपुर खीरी की प्रगति निम्न रही है।

इस अवसर पर भारत सरकार से आये संयुक्त सचिव श्री बचित्तर सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किये तथा वनाधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के सम्बंध में सम्बंधित जनपदों से आये अधिकारियों की शंकाओं, जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए अन्य प्रदेशों में लागू किये जा रहे वनाधिकार अधिनियम की प्रगति एवं कार्यक्रमों की जानकारी देते हुये कहा कि सबसे अच्छे प्रदर्शन करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश अग्रणी स्थान पर है। इस कार्यशाला में वन संरक्षक, 12 जनपदों के जिलाधिकारी, जिला वनाधिकारी एवं सम्बंधित जिलों के समाज कल्याण अधिकारी उपस्थित थे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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