दुर्गा पूजा महोत्सव में शहर धर्मनगरी के रूप में ढ़ल सा गया है। दर्जनो मिन्दरो की शक्ल में पूजा पाण्डाल और उनमें श्रद्धालुओं को स्नेह पूर्वक अलपक निहारती देवी भगवती अपने आप में बिल्कुल अलग छटा विखेर रही है। मानो इन दिनो में मां भगतवी सुलतानपुर में ही विराज रही हो।
शहर की तिहासिक दुर्गा पूजा का यह 53वां वशZ निरन्तर इस शहर में दुगाZ पूजा की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। दुर्गा पूजा महोत्सव में नित श्रद्धा के नये रंग ढलते जा रहे हैं। शाम होते ही सुलतानपुर नगरी मानो धर्मनगरी में तब्दील हो जाती है। कुछ ऐसा ही रंग चढता है महोत्सव में। चतुदिZक भव्य विशालकाय मिन्दरो के रूप में बने पाण्डालो में आकशZक भव्य स्वरूप में स्थापित देवी भगवती के विभिन्न रूप श्रद्धालुओ को बरबस श्रद्धावगत करने को विवश कर देते है। महोत्सव का सूत्रधार होने का गौरव हासिल करने वाली सन् 1959 में पहली बार सजने वाली ठठेरी बाजार की बड़ी दुर्गा मां की भव्य प्रतिमा के निकट पहुंचते ही श्रद्धालु श्रद्धावत हो जाते है। जैसे भव्य पाण्डाल वैसे ही आकशZक देवी की प्रतिमा मानो स्नेह और आशीZवाद देने को आतुर है। यह केवल बड़ी दुगाZ जी की बात नहीं, बल्कि शहर की लगभग सभी दुर्गा पाण्डालों की विशेशता है। देवी के मिन्दरनुमा पाण्डालो के साथ साथ यहां की विद्युत सज्जा भी अपने में चार चांद लगा देती है। एक पाण्डाल पर एक से बढ़कर एक विद्युत सज्जा अपने आप में एक अलग ही छटा विखेर रही है। यही नही इस शहर में लगभग 150 प्रतिमाओं की स्थापना की गई है और प्रतिदिन लाखो श्रद्धालु इन देवीयों की अनुपम छटा व आशीZवाद लेने को लोगो का तान्ता लगा हुआ है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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