प्रदेश महामारी की चपेट में हैं। राजधानी के कई इलाकों में रहस्यमय बुखार ने दर्जन भर से ज्यादा जिदंगियां लील ली हैं। गोरखपुर व उसके आसपास के क्षेत्रों में जापानी ज्वर इंसेफ्लाइटिस से 500 से ज्यादा मौतें हुई है। अब यह बीमारी कानपुर देहात, अलीगढ़ और सूबे के अन्य इलाकों में भी फैलने लगी है। प्रदेश सरकार अक्षम्य रूप से लापरवाह बनी हुई है। अब तक मुख्यमन्त्री और स्वास्थ्यमन्त्री ने कोई निरोधक कारगर कदम नहीं उठाए है। रहस्यमय बीमारी की जांच तक नहीं हो रही है। दोशी अफसरों पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। संवेदनाशून्य ऐसा निन्दनीय सरकारी व्यवहार तो कभी देखने सुनने में नहीं आया है।
राजधानी लखनऊ में उल्टी तेज बुखार की बीमारी से मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। अस्पताल ले जाते हुए मरीजों की मौत हो रही है। अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। चिन्ता की बात यह है कि अस्पतालों में मरीजों के साथ दुव्र्यवहार हो रहा है। सरकार की ओर से दवाइयों, खून और जांचों की आपातकालीन व्यवस्था करने पर किसी का ध्यान नहीं है। गरीब कहां जाएंर्षोर्षो प्राइवेट नर्सिग होम आम जनता की मजबूरियों का दोहन निर्दयतापूर्वक कर रहे है। पूरा प्रदेश एक तरह से दहशत और निराशा में जी रहा है। जनता की यह निराशा और क्षोंभ कानून व्यवस्था के लिए विस्फोटक रूप ले सकता है।
समाजवादी पार्टी की लगातार चेतावनियों की बसपा सरकार ने अनुसनी की है। दरअसल वे जनता की परेशानी में ही सुख अनुभव करती है। इसीलिए महामारी के प्रकोप जैसी स्थिति के बावजूद मुख्यमन्त्री ने अभी तक एक भी बैठक इस सम्बंध में नहीं बुलाई है। स्वास्थ्यमन्त्री उन्हीं के चरणचिन्हों पर चलते हुए कमीशन की लूट में व्यस्त हैं। साढे तीन वशोZ में प्रदेश की जनता को उनके अमानवीय व्यवहार का बहुत तजुबाZ हो चुका है, अब उसका धीरज भी चुक गया है। मुख्यमन्त्री को यदि प्रशासन चलाना नहीं आता है तो उन्हें अपने कुशासन से जनता को स्वयं मुक्ति दे देनी चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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