कंाशीराम का सपना मूर्तियों, स्मारकों और पार्कों की स्थापना नहीं बल्कि समाज के दबे, कुचले और शोषित लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाना और उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाना था। मुख्यमन्त्री ने कांशीराम के सपने को पूरा करने के बजाय अपने तानाशाही रवैये के चलते कांशीराम के सपने को चूर-चूर करने का काम किया है। गरीबों, पिछड़ों और दलितों के विकास की इन्हें कोई फि़क्र नहीं है।
उ0प्र0 कंाग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव ने आज यहां जारी बयान में कहा कि सुश्री मायावती का आचरण शुरू से ही लोकतन्त्र विरोधी रहा है। यह जगजाहिर है कि मुख्यमन्त्री का लोकतन्त्र के तीनों प्रमुख अंगों को कुचलना इनकी आदत में शुमार रहा है। कार्यपालिका के अधिकार चन्द चहेते अफसरों में कैद हो गए हैं और वरिष्ठ अधिकारी बेचैनी महसूस कर रहे हैं। विधायिका की चिन्ता कभी उन्होने नहीं की और लोकतन्त्र के मूल तत्व विरोधी पक्ष के साथ कभी भी प्रदेश के विकास की समस्याओं पर न तो चर्चा की और न ही सहयोग लिया। न्यायपालिका के आदेशों की भी उन्होने कभी परवाह नहीं की।
मुख्य प्रवक्ता ने कहा कि राजधानी सहित प्रदेश में हो रहे निर्माण कार्य पर मा0 न्यायालय द्वारा रोक लगाये जाने के बाद भी बदस्तूर निर्माण कार्य जारी रखा। जबकि मा0 न्यायालय द्वारा स्वयं इसका संज्ञान लिया गया। इसीलिए बार-बार मुख्यमन्त्री जी जनता के बीच सफाई देती रहती हैं, जबकि इन्हें यह सफाई मा0 न्यायालय को देना चाहिए।
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि खुद को दलितों का तथाकथित मसीहा कहने वाली मुख्यमन्त्री को शायद यह नहीं मालूम कि उ0प्र0 में सूखे के बाद बाढ़ ने आम जनता के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। लाखों गरीब और दलित परिवार बेघर हो गये हैं। दो जून की रोटी के लिए जनता परेशान है। पत्थरों की इमारत खड़ी करने, मूर्तियों, स्मारकों और पार्कों के निर्माण से जनता का पेट नहीं भरता, बल्कि उसे पेट भरने के लिए दो जून की रोटी चाहिए। बसपा सरकार और इसकी मुखिया पूरी तरह संवेदनहीन हो गई हैं और दु:खी तथा पीड़ित जनता के दु:ख-दर्द से उनका कोई सरोकार नहीं रह गया है। मुख्यमन्त्री के एजेण्डे में पार्कों के निर्माण, मूर्तियों की स्थापना और स्मारकों की निर्माण हैं जनता की परेशानियों को दूर करने और विकास इनके एजेण्डे में शामिल नहीं है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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