प्रधानी हो या जिला पंचायती, कम लागत में मुनाफे का सौदा, घाटे का सवाल ही नही, आखिर फिर कौन है जो इस अकूत धन दिलाने वाले धंधे को अपनाने से कतराये ! यही सबब है कि जिसे देखो वही `सफेद कुर्ता´ पहने टोली लेकर पर्चा दाखिले को चला निकला है। पर इनमें से कुछ ही हैं जिन्होंने पहले गांव के विकास एवं मतदाताओं के सुख-दुख में शरीक होना मुनासिब समझा, वरना अधिकतर तो जानकर भी अंजान बने रहे। शायद इसी का फायदा उठाकर कई जगह मतदाताओं ने अपनी जायज मांगोें के बैनर तले चुनाव का बहिश्कार करने का डंका पीट दिया है। बानगी के तौर पर विकासखण्ड दूबेपुर अन्र्तगत भादा गांव के मनरेगा मजदूरों की दशा काफी है। यहां काम के एवज कम मजदूरी के प्रकरण पर सैकड़ों मजदूरोें ने जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासन को चेताया है कि अब ईट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा।
सनद रहे कि मई 2010 के महीने की बात है। विकासखण्ड दूबेपुर अन्र्तगत भादा गांव में महात्मा गांधी राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के तहत लगभग सैकड़ों मजदूर ने आदशZ तालाब के निर्माण में मेहनत-मशक्कत के साथ काम किया था। इस सन्दर्भ में प्रदेश की मुख्यमन्त्री मायावती एवं जिलाधिकारी पिंकी जोवेल को रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजे गये िशकायती पत्र में आरोप लगाया है कि प्रशासनिक अमले ने योजना के अनुरुप लगभग 35 दिनों तक तालाब की खोदाई आदि का कार्य हम सभी से लिया। नियमत: प्रति मजदूर को प्रतिदिन के हिसाब से 100 रुपये मजदूरी देने का प्रविधान है।
आरोप है कि जाब कार्ड में 100 रुपये देय के हिसाब से मजदूरी चढ़ा दी गई है। जबकि वास्तविकता यह है कि सैकड़ों मजदूरों को काम के एवज कम मजदूरी दी गई। िशकायती पत्र के मुताबिक तो साफ जाहिर किया गया है कि प्रति मजदूर 20 रुपये का ही भुगतान किया गया है। जिसको लेकर मनरेगा मजदूरों ने कई बार िशकायत भी किया, हल न निकलते देख इन मजदूरों ने प्रदशZन कर भी अपनी मांग रखी। लेकिन यहां भी बात नही बन सकी। अब मौका देख चौका मारने की स्थित को अपनाते हुए चुनावी बयार में सभी मनरेगा मजदूरो ने चुनाव का ही बहिश्कार करने की घोशणा कर दिया है। जिससे प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच यह प्रकरण चर्चा का केन्द्र बना हुआ है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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