किसानों से खरीदे जाने वाले धान का चावल (सीएमआर) और राइस मिलर्स से सरकार को चावल के रूप में मिलने वाली लेवी अब सीधे भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में जायेगी। यह व्यवस्था धान खरीद के नये सीजन में लागू कर दी गई है। बकाया लेवी के लिए भी यही व्यवस्था प्रभावी है। नयी व्यवस्था के कारण राइस मिलर्स की मुश्किलें बढ़ सकती हैं जिसका असर धान खरीद पर भी पड़ सकता है।
धान खरीद के लिए इस बार सेंट्रल पूल की व्यवस्था लागू होने से क्रय नीति में दो अहम परिवर्तन हुए हैं। पहला लेवी व सीएमआर चावल की डिलीवरी एफसीआई के गोदामों में होगी। दूसरा राइस मिलर्स का भुगतान संभागीय वित्त एवं लेखा कार्यालय के बजाय एफसीआई द्वारा किया जायेगा। वहीं राइस मिलर्स को संभागीय खाद्य नियन्त्रक कार्यालय में शुल्क जमा कर रजिस्ट्रेशन भी कराना होगा।
गत वर्ष चावल का भण्डारण खाद्य एवं विपणन विभाग के नियन्त्रण में था। उसे विभाग द्वारा राज्य भण्डारण निगम व निजी गोदामों में भण्डारित किया जाता था। वहीं राइस मिलर्स का भुगतान एसआरएओ के कार्यालय से होता था। इस बार राइस मिलर्स का बिल बनाकर विपणन निरीक्षक सीधे भारतीय खाद्य निगम को भेजेगा जहां से भुगतान किया जायेगा। जानकारों का कहना है कि यह व्यवस्था लागू होने से राइस मिलर्स की मुश्किलें बढ़ जायेंगी। कारण चावल की गुणवत्ता व अन्य पहलू आड़े आएंगे। संभागीय खाद्य एवं विपणन अधिकारी डा. सुधाकर मिश्र ने बताया कि वर्तमान में मण्डल की राइस मिलों पर 55 हजार मीट्रिक टन चावल लेवी के रूप में बकाया है। इसकी रिकवरी नये सीजन में होने की उम्मीद है जो सीधे एफसीआई को देय होगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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