दिव्य योग एंव चेतना बोध प्रशिक्षिण शिविर का आयोजन दिनांक 25और 26सितम्वर 2010 शनिवार और रविवार को प्र:ता 7 से 10 तक के ब्लाक हनुमान मन्दिर संगम विहार नई दिल्ली में स्वामी ए ़एस.विज्ञानाचार्य जी महाराज की अनुकम्प से सत्याचार्य जी महाराज गोविन्द मठ दावानल कुण्ड परि—मा मार्ग वृृन्दावन मथुरा द्वारा शिविर का आयोजन डंा.एस.सी.एल.गुप्ता विधायक संगम विहार द्वारा किया जयेगा दिव्य योग एंव चेतना बोद्य प्रशिक्षिण शिविर के प्रणेता स्वामी ए ़एस.विज्ञानाचार्य जी महाराज जो विगत 12 सालो से गोविन्द मठ वृृन्दावन मे भारतीय संस्कति एवं दशZन का वैज्ञानिक विश्लेशण करने में साधनारत है । मनव की दिव्य आत्म-शक्ति को जाग्रत करके मानवता की समृि˜ करना चेतना बोघ का आघार है। प्रबल पुरूशार्थमयी वैचारिक क्रन्ति द्वारा ही इस अज्ञानमय आवरण को हटाया जा सकता है। जिसके भारतीय दशZन मिलेगा और उससे दिव्य चेतना का बोघ होगा।
दिव्य योग एंव चेतना बोध प्रशिक्षिण शिविर का आयोजन । विज्ञानाचार्य जी विगत12 सालो से वृृन्दावन मे साधनारत है। भारतीय संस्कति एवं दशZन का वैज्ञानिक विश्लेशण करने में साधनारत है स्वामी ए ़एस.विज्ञानाचार्य जी दिव्य-योग एंव चेतना-बोध के चार सोपान स्वाघ्याय,सत्संग,आघ्याित्मक,साधना और समाज सेवा।
मानवता देवत्व की जननी है। सम्पूर्ण सद्रगुण और सद्रकर्म,जिनसे मानव मात्र का कल्याण होता है,मानवता में सिन्नहित हेै। अज्ञान सम्पूर्ण दुरवों का कारण है। ज्ञान के द्वारा अज्ञान को दूर करके मानव ‘ाान्ति प्राप्त करता है। ‘ाुद्व अन्त करण में ही ज्ञान प्रतिबििम्बत होता है। सम्पूर्ण कर्मों को निश्काम भाव से लोक हित में समप्रिZत करने पर अन्त करण ‘ाुद्व हो जाता है। ज्ञान,कर्म और प्रेम के रहस्यों को तत्व से जानकर परमार्थ के लिए पुरूशार्थ करने वाले व्यक्ति में मानवता का नित्यवास को होता हैं।
दिव्य योग एंव चेतना बोध प्रशिक्षिण शिविरो द्वारा वैचारिक क्रन्ति के साथ साथ व्यक्ति के विकास के लिए उसे ‘ाारीरिक,मानसिक,बौद्विक,नैतिक एंव आघ्याित्मत स्तर पर प्रशिक्षित किया जायेगा। चेतना बोद्य के लिए व्यक्ति को ‘ाुद्व संस्कारों से आपूरित एवं आवेशित किया जायेगा। इसके लिए विचार,चरित्र और व्यव्हार की ‘ाुद्वि आवश्यक है। स्वाघ्याय,सत्संग,विशेश आघ्याित्मक साधना और समाज सेवा से कार्य कुशलता और बौद्विक कुशाग्राता को बौद्विक कुशाग्रता को बढाकर मानव में सफलता प्राप्त करना चेतना बोध शिविरो का उद्देुशय है। व्यक्ति और समाज में निर्भयता,कर्तव्य परायणता,सत्य और न्याय का पौशण,समरसता,प्रेम,सह अस्तित्व तथा स्वस्थ परम्पराओं की स्थापना चेतना बोध से ही सम्भव है।
Kavi Kakshivant Hardayal Kushwaha