उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा 24सितम्बर को बाबरी मिस्जद-रामजन्मभूमि मामले में सुनाया जाने वाला निर्णय एक महत्वपूर्ण पड़ाव तो है परन्तु अन्तिम पड़ाव नहीं है। एक सिविल मुकदमें के निर्णय के रूप में ही इसे देखने की आवश्यकता है। निर्णय आने के बाद न तो किसी पक्ष को आक्रोशित होना चाहिए और न ही किसी पक्ष को जश्न मनाना चाहिए।
उ0प्र0 कंाग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव ने आज यहां जारी एक बयान में कहा कि फिरकापरस्त ताकतें इस मौके पर अपनी नापाक साजिशों को अंजाम देने की कोशिश कर सकती हैं परन्तु राष्ट्रीय एकता, साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी भाईचारा बनाए रखने की जिम्मेदारी सही सोच रखने वाले सभी नागरिकों की है।
मुख्य प्रवक्ता ने कहा कि प्रदेश की राजधानी का सन्देश पूरे प्रदेश में जाता है इसलिए लखनऊ के निवासियों को अपनी रवायत के मुताबिक एक बार फिर फिरकावाराना ज़हनियत और साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने वाले तत्वों का सामाजिक बहिष्कार करके हिन्दू-मुस्लिम एकता, आपसी भाईचारा और मेल-मिलाप की धारा के लिए एक मिसाल पेश करनी चाहिए।
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि वर्ष 1992 में बाबरी मिस्जद विध्वंस के बाद भी लखनऊ में अपेक्षाकृत शान्ति रही थी और लखनऊ के बाशिन्दों ने साम्प्रदायिक सद्भाव की एक मिसाल पेश की थी। इस बार यद्यपि माहौल में तनाव नहीं है और साम्प्रदायिक शक्तियां भी ज़ाहिरा तौर पर उत्तेजना फैलाने की हरकत नहीं कर रही हैं पर इनके छुपे हुए मंसूबों से सचेत रहना आवश्यक है। इसलिए भारत की एकता-अखण्डता में विश्वास रखने वाले सच्चे देश भक्तों का यह दायित्व है कि वे हर हालत में शान्ति, आपसी भाईचारा और सर्व-धर्म-समभाव के ह़क में खड़े हों।