उत्तर प्रदेश के मत्स्य निदेशक श्री अशोक दीक्षित ने हैचरी स्वामियों को सलाह दी है कि बरसात के मौसम में आक्सीजन की पर्याप्त मात्रा बनी रहे इसके लिये नर्सरियों में जल स्तर 4.5 फीट बनाये रखें, ताकि मछलियॉ भली प्रकार जीवित रहें।
श्री दीक्षित ने बताया कि बरसात के दिनों में सूर्य निकलने से पहले अक्सर तालाब में आक्सीजन की कमी के कारण मछलियॉ सतह पर मुंह खोलते हुये देखी जा सकती हैं। आक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिये तालाब में 100 कि0ग्रा0 कली चूने का छिड़काव करायें या 1/4 या 1/2 भाग जल को बदलकर ताजा जल तालाब में भरें। यदि जल बदलने का साधन न हो तो पम्प द्वारा तालाब का पानी तालाब में ही फब्वारे के रूप में डालें अथवा केले के तने काटकर डालने से या बॉस के डण्डे से जल को पीटने से भी पानी में आक्सीजन की मात्रा बढ़ायी जा सकती है। उन्होंने बताया कि यदि प्लवक या आप्यकाओं की अधिकता से जल रंगीन हो जाये अथवा आक्सीजन की मात्रा कम हो जाये तो सामान्य परिस्थितियॉ उत्पन्न होने तक पूरक आहार रोक दें।
निदेशक मत्स्य ने बताया कि जिन मत्स्य पालकों ने अभी तक मत्स्य बीज संचय नहीं किया है वे शीघ्र अपने तालाबों में मत्स्य बीज संचय करा लें। उन्होंने कहा कि मत्स्य पालकों को यह भी सलाह दी जाती है कि वे अपने तालाब में 200 कि0ग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुझे हुये चूने का घोल बनाकर छिड़काव करें तथा एक टन प्रति हे0 की दर से गोबर की खाद तालाब में डालने के 3-4 दिन बाद यदि 50 मिमी0 से बड़े आकार का बीज है तो 5000 मत्स्य बीज हे0 की दर से संचय करायें। यदि 50 मिमी0 से छोटे आकार का बीज है तो 10,000 मत्स्य बीज प्रति हे0 की दर से संचय करायें।
श्री दीक्षित ने यह भी सलाह दी है कि तालाबों/झीलों में यदि जल कुम्भी उग आई हो तो तत्काल उसे बाहर निकाल दें अन्यथा यह बहुत तेजी से बढ़ेगी और कुछ ही दिनों में पूरे तालाब/झील को आच्छादित कर लेगी। अन्य सतही जलीय पौधों की भी सफाई करते रहें। उन्होंने बताया कि माह में कम से कम एक बार जाल चलाकर मछलियों की बढ़त तथा स्वास्थ्य के बारे में जानकारी कर लेनी चाहिये।