लखनऊ - उत्तर प्रदेश के कृषक अपनी कृषि को बचाने के लिए वर्षा ऋतु में इस समय मुख्यत: कीट रोगों से बचाव करें। मक्का के पौधों में छेद करने वाले कीटों के प्रकोप होने पर लिण्डेन 6 प्रतिशत ग्रेन्यूल 20 कि0ग्रा0 अथवा कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत 20 कि0ग्रा0 या (लिण्डेन/+कार्बराइल) सेवीडाल 4.4 जी 25.00 कि0ग्रा0 प्रति हे0 की दर से प्रयोग कर नियन्त्रण करें।
फसल सतर्कता समूह के कृषि वैज्ञानिकों ने यह सलाह देते हुए बताया कि दलहनी फसलों में अरहर की देर से पकने वाली प्रजातियों यथा बहार तथा पी0 डी0 ए0-11 की मेड़ों पर बुआई शीघ्र समाप्त करें। उर्द, मूंग में पीसा मोजेक का प्रकोप होने पर पौधों को उखाड़ कर जला दें तथा इस रोग को फैलाने वाली सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 30 ई0सी0 1 लीटर प्रति हे0 1 लीटर प्रति हे0 1 लीटर प्रति हे0 की दर से छिड़काव करें। तिलहनी फसल में मूंगफली में हल्की-हल्की मिट्टी चढ़ाते रहे तथा खूटियां पेगिंग बनते समय निराई गुड़ाई न करें। तोरिया की टा-9 (काली) टाइप-36 (पीली), पी0टी0-303, नरेन्द्र तोरिया-1 पी0टी0-30, बी0-9 पीली प्रजातियों की बुवाई प्रारम्भ करें।
शरद कालीन गन्ने को गिरने से बचाने के लिए त्रिकोण विधि से गन्ने की बंधाई करें। विभिन्न छेद वाले कीटों से बचाव के लिए ट्राइकोगामा कार्डस को गन्ना की फसल में बांधें, ये कार्ड कृषिरक्षा प्रयोग शाला एवं कृषि विश्वविद्यालयों से प्राप्त कर सकते है यह मौसम कीटों के प्रकोप का होता है। इस लिए चोटी बेधक, अंकुर बेधक, काला चिटका, गुरूदासपुर बेधक, सफेद मक्खी आदि कीटों का प्रकोप होने पर निरीक्षण कर रोकथाम करें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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