(विकास कुमार शर्मा )भारतीय राजनीति में महिला सशक्तिकरण का दौर दिन प्रतिदिन जोर पकड़ता जा रहा है। विभिन्न राजनीतिक दलों के दिग्गजों के विरोध के बावजूद महिला आरक्षण विधेयक न केवल चर्चा के विषय तक सीमित रहा है, बल्कि हर जगह महिलाओं में इसकी झलक भी दिखायी देने लगी हैं। समाज में महिलाओं के शोषण की बात भी कोई नयी बात नहीं है और यदि शोषण को मिटाना है तो महिलाओं को सशक्त करना भी अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
भारत पूर्व में जहां पुरूष प्रधान देशों की श्रेणी में आता था, वहीं भारत वर्तमान समय में नारी प्रधान देशों की श्रेणी में आकर खड़ा हो गया है। वर्तमान समय को नारी युग का दर्जा दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर महिलाओं के दैहिक शोषण के लिए जबावदेह कौन है? महिलाओं को बेसक उनके अधिकारों से संपन्न किया जाना चाहिए। इसमें कोई दोराय वाली बात नहीं है, पर महिलाओं के दैहिक शोषण को लेकर केवल पुरूषों पर दोषारोपड़ करना कहां तक उचित है ? कहीं न कहीं इसमंे महिलाओं और जिनके साथ देैहिक शोषण की घटनाएं घटी हैं, वे भी इसमें बराबर की जिम्मेदार हैं।
अकेले एक प्रदेश की बात करें तेा दर्जनों ऐसे जिले हैं जहां कई महिलाओं ने ही किशेरी आदिवासी बालाओं को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से उठवा कर खुद व उन आदिवासी युवतियों का दैहिक शोषण कराने कंसल्टेंसी कंपनियों और रईस घरानों में भेजती है। इस धंधे में लिप्त महिलाएं और युवतियां अपनी ही सद्वुद्धि तथा करनी का फल भोग रही हैं, हालात यहां तक बन गयें हैं कि अब इस धंधे में लिप्त महिलाएं व युवती लोकलाज के चलते पैसों के कारण इससे बाहर ही आना नहीं चाहती। इसका सबसे अच्छा एक उदाहरण छत्तीसगढ़ का ही जशपुर जिला है। जहां से सैकड़ों की तादाद में युवतियों को चंद नोटों के लिए बेच दिया जाता है।
बात जब शिक्षित नहीं होने की आती है तो एक बच्चा जब मां की कोख से जन्म लेकर जैसे ही धरती पर अवतरित हेाता है तब उसके दूध के दांत निकलने से पहले ही उसे वह ज्ञान हो जाता है, जिसकी शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी आबरू को बचाकर रखना शिक्षित होने से कहीं ज्यादा आप पर निर्भर करता है। जैसे संस्कार बच्चे को मां से और घर परिवार के बड़े बुजुर्गों से मिलती हैं, वह वैसा ही पाता है।
पाश्चात्य संस्कृति की विचारधाराओं से प्ररित होकर और अर्द्धनग्न फिल्मों से प्रेरणा लेकर जिस तरह महिलाओं और नवयुवतियों ने अपनी वेशभूशा में परिवर्तन किया है और हमारे भारतीय परिधानों को धारण न कर दरकिनार कर दिया है, क्या यह किसी भी स्तर पर भारतीय संस्कार, सभ्यता और परिवेश में पली-बढ़ी महिला और शिक्षित महिलाओं के लिए शोभनीय है।
देशों और समाजों में जिस प्रकार नारियों के अनेकों रूप देखने को मिलते हैं ठीक उसी तरह पुरूष वर्ग में भी अनेकों रूप मिल जाते हैं। एक नारी वह होती है जो परिवार से मिले संस्कार को आधार बनाकर देश, समाज और अपना नाम रोशन करती है, वहीं दूसरी तरफ एक नारी वह भी होती है जो समाज, देश और अपने संस्कारों का वलिदान देकर उसे कलंकित करने का कार्य करती है। ठीक उसी तरह पुरूष भी। वहीं कुछ ऐसी महिलाएं और नवयुवतियां भी होती हैं जो मिले अधिकारों का इस्तेमाल सिर्फ गलत कार्यों में ही करती हैं, इसका मतलब यह नहीं कि पुरूष पूरी तरह से दोषी हो।
महिला आरक्षण का मुद्दा जोरशोर से उठाने वाली सोनिया गांधी भी तो एक महिला ही हैं और राहुल गांधी उनके पुत्र हैं, जो मां और पिता से मिले संस्कारों का सदुपयोग पर युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। यदि उन्हें कुसंस्कार मिले होते तो वे उन मां के कपूतों की भूमिका निभा रहे होते, जो वर्तमान में मधुकोड़ा, बीएल अग्रवाल और रूचिका का हत्यारा राठोर अदा कर रहे हैं। इनकी जननी इन्हें कोशती होंगी कि इन्हें किन महूरत में जना था। जिन्होने परिवार, देश और समाज में उनका सिर शर्म से झुका दिया।
माता-पिता अपने बच्चों से यही अपेक्षा करते हैं कि बच्चे उनका नाम अच्छे कर्मों से रोशन करें, मगर यह बिडंबना ही है कि उसमें से बहुत कम ही ऐसे होते हैं, जो उनके सपनों को साकार करते हैं। कोई अपने बच्चों को महिलाओं और युवतियों के दैहिक शोषण करने के संस्कार नहीं देता। हां इतना है कि समाज और देश में कुछ अपवाद जरूर होते हैं जिन्हें ऐसे संस्कार विरासत से मिले होते हैं। राजनीति और संतों में दर्जनों ऐसे घिनौने चेहरे हैं जिसमें एक सफेद बस्त्र धारण करता है और दूसरा गेरूआ वस्त्र पहनकर महिलाओं व युवतियों के साथ रासलीला रचाता है। प्रदेश में भी कुछ ऐसे नेता मंत्री हैं जो चमड़ी के दीवाने हैं, पर समाज उन लोगों की पूजा करता है।
क़ानूनी ढांचे में कुछ इस तरह संशोधन होना चाहिए कि इससे महिलाओं का शोषण बंद हो और उन्हें इस काम के लिए मजबूर न किया जा सके. इससे भी अधिक जरूरी है कि भारत की सामाजिक संरचना को नुक़सान न पहुंचे.
क़ानूनी ढांचे में कुछ इस तरह संशोधन होना चाहिए कि इससे महिलाओं का शोषण बंद हो और उन्हें इस काम के लिए मजबूर न किया जा सके. इससे भी अधिक जरूरी है कि भारत की सामाजिक संरचना को नुक़सान न पहुंचे.
देश की तरक्की और विकास के लिए इस मानसिकता को बदलना होगा और हर स्तर पर इसके लिए संघर्ष करना होगा, तभी महिलाओं का दैहिक शोषण थम सकता है।
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Vikas Sharma
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