समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कुल पांच दिन का विधान सभा सत्र आहूत कर मुख्यमन्त्री ने जता दिया है कि उन्हें न तो जनता की समस्याओं की चिन्ता है और नहीं लोकतन्त्र की सामान्य प्रक्रियाओं से वास्ता है। अपनी सरकार की नाकामियों और अयोग्यता को छुपाने के लिए वे सदन से मुंह चुरा रही हैं।
सुश्री मायावती जानती है कि वास्तव में उनकी सरकार ने अपने पूरे ‘ाासनकाल में जनहित का कोई कार्य किया ही नहीं है। वह स्वयं तथा उनके सभी मन्त्री, अधिकारीगण दोनों हाथों से प्रदेश की जनता को लूट कर अपने निजी खजानों को भरने में लगे रहे हैं।
प्रदेश में कानून व्यवस्था पूरी तरह से तार-तार हो गई है। स्वयं कैबिनट मन्त्री की हत्या के प्रयास और विपक्षी नेता की पत्नी की हत्या के बाद भी बसपा सरकार के संरक्षण में अपराधी न केवल निद्वZन्द घूम रहे हैं, बल्कि सरकार में मन्त्री पद पर आरूढ़ होकर आमजन को लूट रहे है। प्रदेश की विकास दर अधोगति की ओर अग्रसर है। इस बारे में कभी मुख्यमन्त्री अपनी जुबान तक नहीं खोलतीं। प्रदेश सरकार द्वारा एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) को छूट देने के फलस्वरूप जनपद लखीमपुर के थाना सम्पूर्णानन्दनगर स्थित ग्राम त्रिकोलिया में जवानों द्वारा वाहन पास न मिलने जैसी छोटी घटना पर फायरिंग कर दो ग्रामीणों की नृशंस हत्या एवं पूर्व विधायक श्री निरवेन्द कुमार मुन्ना सहित कइयों को घायल कर दिया गया। प्रशासन पूरी तरह पंगु है।
मुख्यमन्त्री की प्रमुख चिन्ता आम आदमी के हित की न होकर निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना है। राज्यपाल द्वारा पहले अस्वीकृत किए जाने के बाद भी पुन: किसी भी तरह इनको स्वीकार कराने के प्रयासों में वे लगी हैं ताकि उनके संचालक बड़े पूंजीपतियों को लाभािन्वत कर उनसे भारी आर्थिक सहयोग प्राप्त किया जा सके। दोहरी स्वास्थ्य एवं शिक्षा व्यवस्था उनकी जन विरोधी सोच से चल रही है। अनिवार्य शिक्षा अभियान के लिए वे धन की कमी का रोना रोती हैं पर पत्थर के स्मारकों की सुरक्षा पर करोड़ों रूपए खर्च करने में उन्हें संकोच नहीं होता है।
बाढ़ एवं दिमागी बुखार से प्रभावित प्रदेश की अधिकांश जनता मुख्यमन्त्री की चिन्ता का विशय भी नहीं है। पिछले तीन दशकों में इसने हजारों बच्चों की जानें ली हैं। टीकों का समय से यह सरकार इन्तजाम नहीं कर रही है।
प्रदेश की जनता इस तानाशाही सरकार से पूरी तरह ऊब चुकी है और इसे उखाड़ फेंकने के लिए संकल्पित हो रही है। महामहिम राज्यपाल को भी इस सरकार के आचरण पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए जोकि जनतान्त्रिक मूल्यों के निर्वहन में कतई आस्था एवं विश्वास नहीं रखती है और विधानमण्डल में भी इस सरकार का आचरण मनमाना, अधिनायकशाही भरा होता है। स्वयं सत्तापक्ष के सदस्य व मन्त्रीगण सदन की कार्यवाही के सुचारू संचालन में बाधक बने रहते है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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