उत्तर प्रदेश में खरीफ की फसल में कृषक वषाZ पर आधारित खेती की दशा में अरहर एवं ज्वार की सहफसली खेती करेंं। सिंचित क्षेत्रों में शीघ्र पकने वाली अरहर की उन्नतिशील प्रजातियों में जैसे-पारस, यू0पी0ए0एस0-120 तथा पूसा-992 की बुवाई की जानी चाहिये। बुआई से पूर्व यदि बीज शोधित न हो तो एक कि0ग्रा0 बीज को दो ग्राम थीरम, एक ग्राम काबेZन्डाजिम अथवा 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा, एक ग्राम कारबािक्सन से उपचारित किया जाय।
फसल सतर्कता समूह के कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार उर्द की प्रजातियों में यथा-टा-9, पन्त-19, आजाद-1, आई0पी0यू0-35, नरेन्द्र उर्द(हरा दाना), पी0डी0यू0-1, शेखर-1, आजाद उर्द-3, शेखर व पन्त-31 आदि की बुवाई करें। मूंग की प्रजातियों में पन्त मूंग-1,2,3, नरेन्द्र मूंग-1, पी0डी0एम0-54, पन्त मूंग-4, मालवीय ज्योति, सम्राट, आशा, नेहा आदि की बुवाई की जाय।
तिलहनी फसलों में मूंगफली की टा-64, टा-28, चन्द्रा, अम्बर, चित्रा, कौशल, प्रकाश आदि प्रजातियों की बुवाई की जाय। जिन क्षेत्रों में बडनिक्रोसिस रोग की समस्या देखी गई हो वहॉ बुवाई जुलाई के दूसरे पखवाड़े में की जानी चाहिए। यदि बीज शोधित नहीं है तो बोने से पूर्व बीजों की थीरम 2.0 ग्राम और काबेZन्डाजिम 1.0 ग्राम के मिश्रण को 2 ग्राम/प्रति किलो बीज की दर से शोधित करें। तिल की प्रजातियों जैसे टा-4, टा-12, टा-13, टा-18, शेखर तथा तरूण की बुवाई 3-4 कि0ग्रा0 बीज प्रति हे0 दर से की जाय।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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