समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुलायम सिंह यादव पूरे देश में सांप्रदायिकता के खिलाफ अथक संघर्ष के लिए जाने जाते हैं जबकि उनपर उंगली उठानेवाली पार्टियां कांग्रेस, बसपा और भाजपा का चरित्र पूर्णतया सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्षता की विरोधी रही हैं। श्री मुलायम सिंह ने बडप्पन दिखाते हुए बड़ी सोच के तहत गलत तत्वों को साथ लेने की गलती पर मुस्लिम भाईयों से माफी मांग ली तो इसके लिए उन्हें मुबारकबाद दिया जाना चाहिए कि उन्होने समय रहते प्रदेश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों को बल दिया और गुमराह करनेवाले तत्वों की नकेल कसने की पहल की।
जो दल श्री मुलायम सिंह की आलोचना कर रहे है वे सभी वस्तुत: एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वे सब स्वभावत: सांप्रदायिक चरित्र के हैं और मुस्लिमों को महज अपने वोट बैंक की तरह गिनते हैं। भाजपा बसपा के बीच गहरे Þराखीबन्दÞ रिश्ते रहे हैं। भाजपा के सहारे तीन बार सुश्री मायावती को मुख्यमन्त्री की कुर्सी हासिल हुई। वे गुजरात के चुनाव में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनवाने के लिए स्टार प्रचारक बनकर गई थी। भाजपा तो बाबरी विध्वंस की मुख्य अभियुक्त रही है। मायावती को बसपा के लगातार साथ और भाजपा को बाबरी विध्वंस के जरिए देश में एकता, सदभाव को तोड़ने तथा एक बडे़ समुदाय की भावनाओं को आहत करने के लिए माफी मांगनी चाहिए। जहॉ तक कांग्रेस का सवाल है वह ऐसी पार्टी है जो 1984 के सिखो के नरसंहार के लिए माफी मांगने से गुरेज करती है। केन्द्र में कांग्रेस की सरकारों के रहते बाबरी मिस्जद में मूर्तियां रखी गई, शिलान्यास हुआ और बाबरी मिस्जद का ध्वंस भी हुआ। इस सबके लिए माफी मांगने का साहस और नेकनीयती किसी अन्य दल के नेता में नहीं है। कांग्रेस के गुनाहों की तो लम्बी फेहरिस्त है। अपने गुनाहों के लए कांग्रेस को मुस्लिमो से माफी मांगनी चाहिए।
श्री मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिमों से उनकी भावनाओं पर चोट लगने की वजह से माफी मांगकर कोई वोट की राजनीति नहीं की है। उनका अवसरवादी चरित्र कभी नहीं रहा है। प्रारम्भ से ही वे यह मानते रहे हैंं कि इस देश का सामाजिक सांस्कृतिक तानाबाना मुस्लिमों को जोड़े बिना नहीं बन सकता है। उनका और हिन्दुओं का साथ गंगा जमुनी तहजीब का एक सुखद एहसास हैं। अल्पसंख्यको की भावना और उनके हितों के संरक्षण से ही देश की एकता-अखण्डता कायम रह सकती है। श्री मुलायम सिंह यादव अकेले ऐसे नेता है जिन्होने लोकप्रियता और अपनी सरकार की कीमत पर भी बाबरी मिस्जद को बचाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था। धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूती देने के उनके प्रयासो के चलते ही सांप्रदायिक ताकतों को लोकसभा चुनावों में शिकस्त खानी पड़ी थी। उन्होने मुस्लिमों से माफी मांगकर कोई औपचारिकता नहीं बरती है बल्कि दिल से दिल को मिलाने का नायाब कदम उठाया है। उसके लिए उन्हें मुस्लिमों के हर वर्ग से मुबारकवाद मिल रही है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com