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गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी के कारनामों के 20 वर्ष उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड और दिल्ली के 12 बहादुरों का सम्मान

Posted on 26 May 2011 by admin

गोडफ्रे फिलिप्स इण्डिया द्वारा अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने के लिए शुरू किए गए, गोडफ्रे बहादुरी पुरस्कारों के अन्तर्गत आज उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और दिल्ली के 12 बहादुरों को सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश के माननीय राज्यपाल, श्री बी.एल. जोशी ने उन्हें लखनऊ में आयोजित समारोह में ये पुरस्कार प्रदान किए।

इस अवसर पर अपने सम्बोधन में गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों के महासचिव, श्री हरमनजीत सिंह ने बताया, ‘‘गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 1990 में आम आदमी द्वारा किए गए बहादुरी के कारनामों का सम्मान करने के लिए शुरू किए गए थे। आज 20 साल बाद यह अभियान सभी आयु, धर्म, जाति के लोगों को बहादुरी की मशाल जलाते रहने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। 20 वर्ष की इस सफल यात्रा के इस वर्ष हम आज 20 राज्यों में पदार्पण कर रहे हैं और चार अन्य राज्य, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, तमिलनाडु और केरल इस अभियान से जोड़े जा रहे हैं।’’

photo-sammanउन्होंने कहा कि गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों और अमोदिनी, अपनी दो पहल से हम साहसिक भावना और समाज के सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। हमें गर्व है कि हमने 1,200 बहादुरों को सम्मानित किया है और 7,600 महिलाओं को सीधे सशक्त बनाया है।

उत्तर प्रदेश के श्री मोहम्मद शरीफ को अस्पतालों में ऐसे गरीब मरीजों की सेवा करने के लिए सामाजिक बहादुरी विषेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया है जिनकी देख-रेख के लिए परिवार का कोई सदस्य उपस्थित नहीं होता। उत्तराखण्ड की गैर-सरकारी संस्था, पहल को गरीब औरतों के सशक्तिकरण की दिशा में अनुकरणीय कार्यों के लिए अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया गया है। पहल ने महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए छोटे ऋणों का मार्ग चुना और सबसे अधिक संख्या में स्वयं सहायता समूहों का गठन किया है।

सामाजिक बहादुरी पुरस्कार दिल्ली के श्री दीपक कुमार, उत्तराखण्ड के प्रोफेसर अजय सिंह रावत तथा उत्तर प्रदेश की कुमारी नीरज को दिया गया। दीपक ने 15 वर्ष की छोटी सी आयु में रक्तदान करना शुरू किया और सबसे कम आयु के स्वेच्छा से रक्तदान करने वाले बने। बाद में कई संस्थाओं से भी जुड़े। प्रोफेसर रावत ने बिल्डर माफिया, खनन माफिया और लकड़ी की तिजारत करने वाले माफिया के खिलाफ निरन्तर अभियान चलाया और पर्यावरण की रक्षा की। कुमारी नीरज ने एक ऐसे स्कूल में पढ़ाने का बीड़ा उठाया जहाँ कोई सुविधा, कोई अध्यापक नहीं था और जिसे ‘अनाथ स्कूल’ के नाम से जाना जाता था।

शारीरिक बहादुरी पुरस्कार दिल्ली के श्री पवन कुमार (जो मुम्बई-दिल्ली राजधानी में पैन्ट्री इन्चार्ज थे) को प्रदान किया गया। इन्होंने एक बड़ी दुर्घटना टाल कर जलती ट्रेन के 150 से अधिक लोगों की जान बचाई। श्री सलीम अहमद को भी शारीरिक बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्होंने सशक्त बदमाशों और उनके आग उगलते हथियारों की परवाह न करते हुए अनेक पर्यटकों को बदमाशों के शैतानी इरादों से बचाया। श्री रईस अहमद, श्री शमशाद और उनकी बहन, सुश्री शहनाज को भी अद्वितीय साहस तथा दूसरों के लिए अपनी जान जोखिम में डालने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है।

उत्तराखण्ड के श्री संतोष सिंह नेगी को माइण्ड आॅफ स्टील पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहस और शक्ति की प्रतिमूर्ति, श्री संतोष के अंग बचपन से ही छोटे थे। संघर्ष के बावजूद उन्होंने अपनी जिन्दगी शान से बिताई है और पढ़ाई में हमेशा आगे ही रहे। वे छोटे ही थे कि माता का देहान्त हो गया और पिता सेवा निवृत्त हो गए। किसी प्रकार की नियमित आय न होने पर उन्होंने बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया और अपने भाई-बहन को पढ़ाया व अपनी पढ़ाई का इन्तजाम किया। श्री नेगी इस समय एम.ए. (अर्थशास्त्र) और एम.बी.ए. की पढ़ाई के साथ-साथ आई.ए.एस. की तैयारी भी कर रहे हैं।

गोडफ्रे फिलिप्स इण्डिया ने गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 1990 में शुरू किए थे। ये पुरस्कार आम आदमी में एक अनूठी भावना का प्रवाह करते हैं और शारीरिक बहादुरी, समाज सेवा व मानवीय भावना को सम्मानित करते हैं। गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का उद्देश्य जनता में निःस्वार्थ सेवा भाव का प्रवाह करना है। इन दो पहल - गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार और अमोदिनी पुरस्कारों के अन्तर्गत 1,200 से अधिक बहादुरों को सम्मानित किया गया है और 7,000 महिलाओं को सशक्त बनाया गया है।

1990 में शुरू होने के बाद से ये पुरस्कार 20 राज्यों - उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गोवा, हिमाचल प्रदेश में दिय जा रहे हैं। हाल ही में इस सूची में जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, तमिलनाडु और केरल शामिल हो गए हैं।

क्षेत्रीय स्तर पर पाँच समारोहों के बाद नवम्बर में दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की घोषणा की जाएगी।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
बहादुर आमंत्रण के मोहताज नहीं होते। 26-वर्षीय शमषाद और उनकी बहन, शहनाज ने 10 मई, 2009 को अपहरण की एक कोशिश को नाकाम कर यह साबित कर दिया है।
शमशाद अपने घर बैठे चाय पी रहे थे, कि उन्होंने मदद के लिए गुहार सुनी। कुछ लोगों एक व्यक्ति को जबरन कार में खींच रहे थे।

छरअसल, एक व्यापारी, श्री अजय गुप्ता का अपहरण करने का प्रयास किया जा रहा था। अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए, वह तेजी से कार की तरफ दौड़े और एक अपहरणकर्ता को धर-दबोचा। उनकी बहन व दादी भी उनके पीछे दौड़ पड़ीं।

भाई-बहन अपहरणकर्ताओं से भिड़ चुके थे। अजय गुप्ता ने स्वयं को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाया और जान बचाने के लिए एक मंदिर में जा घुसे।

इस दौरान एक अपहरणकर्ता ने रिवाल्वर निकाली और शमशाद को धमकाने लगा। फिर भी, शमशाद ने उसे अपने गिरफ्त से जाने नहीं दिया। अपहरणकर्ता ने गोली चला दी, जो शमशाद के सिर में लगी। वे गिर पड़े तथा अपहरणकर्ता भाग खड़े हुए।

शमशाद को अस्पताल ले जाया गया। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और एक मंत्री ने अस्पताल जा कर बहादुरी के लिए शमशाद शमशाद को बधाई दी।

उत्तर प्रदेष के श्री शमषाद और  शहनाज को अदम्य साहस तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
शान्त और समझदार, ऐसे दो गुण हैं जो बहादुरों को आम लोगों से अलग करते हैं। रईस अहमद देहरादून से कोटद्वार की बस चला रहे थे। बस में 37 यात्री सवार थे। जैसे ही बस लच्छीवाला मोड़ पर पहुंची उसके बे्रक और गियर बाॅक्स ने काम करना बंद कर दिया।

गाड़ी ढलान पर थी। बस पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था। बस रोकने का कोई तरीका दिखाई नहीं दे रहा था।

बस 80 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी। सभी यात्रियों में भय छा गया और वे शोर मचाने लगे। लेकिन, रईस अहमद शान्त थे और उनका ध्यान स्थिति का मुकाबला करने पर केन्द्रित था। वे बस को घुमावदार सड़कों पर चलाते रहे तथा सामने सड़क पर आने वाले लोगों को सामने से हटने की हिदायत देते रहे।

उन्होंने सभी यात्रियों से गाड़ी में पीछे की ओर जमा होने का अनुरोध किया और बस को वन विभाग के कार्यालय की ओर ले गए। उन्होंने बस को विभाग की चारदीवारी से जा टकराया। बस रुक गई और यात्री बिना किसी गम्भीर चोट के सुरक्षित बाहर आ गए।

उत्तराखण्ड के श्री रईस अहमद को अदम्य साहस, सूझबूझ तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
रिक्शा चालक, सलीम अहमद की बहादुरी देशवासियों द्वारा लम्बे समय तक याद रखी जाएगी। सशस्त्र आतंकवादियों और उनके आग उगलते हथियारों की परवाह न करते हुए सलीम अहमद ने आतंकवादियों का पीछा किया तथा अनेक पर्यटकों को उनके शैतानी इरादों से बचाया।

19 सितम्बर, 2010 की वह भयावह सुबह। सलीम अहमद रोज की तरह लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के अपने काम में लगे हुए थे। अचानक उन्होंने दो अज्ञात मोटरसाइकिल सवारों को पर्यटकों के एक दल पर गोली चलाते देखा। ये पर्यटक जामा मस्जिद देख कर वापस लौट रहे थे। आतंकवादियों ने 12 गोलियां चलाईं।

अदम्य साहस का परिचय देते हुए वे तुरन्त अपनी रिक्शा से उतर गए। उन्होंने जमीन पर पड़ी एक ईंट उठाई तथा आतंकवादियों की तरफ फैंकी। उन्होंने आतंकवादियों का पीछा भी किया। इस बहादुर का साहस देखकर आतंकवादी घबरा गए और अपना हथियार छोड़ भाग खड़े हुए।

सलीम अहमद की बीमार बीबी और दो बच्चे हैं। वे अपनी बहादुरी के कारण अनेक दिलों में छा गए हैं। कुछ कंपनियों और व्यक्तियों ने आगे आकर उनकी बीबी के इलाज का खर्च उठाने का वायदा किया है। दिल्ली पुलिस ने भी उनके लिए 25 हजार रुपये के पुरस्कार की घोषणा की है।

दिल्ली के श्री सलीम अहमद को अदम्य साहस, निर्भीकता तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में विषेष पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

उस दुखद घटना की याद आते ही बहादुर अंजुम की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वे अपनी केवल एक साथी को ही बचा पाईं और अपनी बाकी पाँच साथियों के लिए कुछ नहीं कर पाईं।

उस दिन अंजुम अपनी छह साथियों के साथ स्कूल से वापस आ रहीं थी। वे और उनकी सहेलियाँ रेलवे ट्रैक पार कर रहीं थी कि अचानक सामने से एक ट्रेन आती नजर आई। ट्रेन बिलकुल पास पहुँच चुकी थी। अंजुम तो ट्रैक पार कर चुकी थी पर सहेलियाँ पीछे थीं।

अंजुम खतरा साफ देख रही थी। वे झपट कर पीछे मुड़ी और उन्हें बचने की चेतावनी देते हुए एक सहेली को पकड़ कर पीछे खींच लिया। ट्रेन पास से गुजर गयी और बाकी पाँच सहेलियाँ उसकी चपेट में आ गयी। एक पल की भी देर होने पर वह और उसकी सहेली भी शिकार बन जाती।

अंजुम के पिता भारत इलेक्ट्राॅनिक्स लिमिटेड में काम करते हैं। उनकी इस बहादुरी के लिए भारत इलेक्ट्रोनिक्स आॅफिसर्स क्लब और उसकी महिला शाखा ने अंजुम को पुरस्कृत किया है।

आसाधारण साहस और बहादुरी के लिए उत्तर प्रदेष की कुमारी अंजुम को
गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की विषेष शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।


गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स

क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरणः

मुम्बई-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में रसोई इन्चार्ज और आईआरसीटीसी के कर्मचारी, श्री पवन कुमार की सूझबूझ, तुरन्त और बहादुरी भरी कार्यवाही ने 18 अप्रैल 2011 को 150 यात्रियों को मौत के मुँह से सुरक्षित निकाल लिया।

राजधानी एक्सप्रेस के तीन डिब्बों में तड़के भीषण आग लग गयी। आग रसोई घर से शुरू हुई थी। ट्रेन तेज गति से दौड़ी जा रही थी। यात्री दिन के पहले पहर में आराम से सो रहे थे। तभी श्री पवन कुमार को धुएँ का आभास हुआ। वे चैंक कर उठ बैठे, ट्रेन रोकने के लिए चैन खींची और फौरन अग्निशमन उपकरण की ओर हो लिए।

साथ ही, उन्होंने अपने साथियों को लोगों को उठाने के लिए कहा। जैसे ही ट्रेन रूकी वे रसोईघर की ओर हो लिए और आगे बुझाने में लग गए। उनका आत्म-विश्वास देखकर कुछ और लोग भी साथ हो लिए। आग बुझा दी गयी और सभी लोगों को सुरक्षित नीचे उतार लिया गया। इस आग में ट्रेन के 3 डिब्बे जल कर पूरी तरह तबाह हो गए।

अपनी जान की परवाह न कर अद्वितीय सूझबूझ और बहादुरी का परिचय देते हुए 150 से अधिक यात्रियों को सुरक्षित बचाने के लिए दिल्ली के श्री पवन कुमार को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक श्रेणी में विशेष पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार

क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    सामाजिक बहादुरी

सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
मोहम्मद शरीफ गरीब और जरूरतमंद लोगों के मसीहा हैं। उन्होंने अपना जीवन अस्पतालों में गरीब मरीजों की सेवा में समर्पित कर दिया है। पेशे से साइकिल मैकेनिकल, मोहम्मद शरीफ ने दुःख को करीब से महसूस किया है। उनका बेटा मृत्यु से एक माह पूर्व गायब हो गया था। अतः वह उसका अंतिम संस्कार तक नहीं कर सके।

इस दुखद घटना ने उन्हें और अधिक शक्ति दी। उन्होंने फैसला किया कि अब कोई गुमनामी की मौत नहीं मरेगा।

वे अपने काम और लोगों की सेवा में जुट गए। मोहम्मद शरीफ रोज प्रातः 5 बजे उठते हैं और नगर अस्पताल जाकर उन सभी मरीजों को नहलाते हैं जिनकी देखरेख करने के लिए उनके परिवार का कोई सदस्य उपस्थित नहीं होता है। वे इन मरीजों को दवाई आदि देने में नर्स की पूरी सहायता करते हैं। मोहम्मद शरीफ अस्पताल के कर्मचारियों का एक भाग बन चुके हैं।

अस्पताल से निकल कर वे साइकिलों की मरम्मत करने का अपना कार्य करते हैं और अपनी दुकान बंद करने के बाद फिर अस्पताल वापस लौट आते हैं तथा देर रात तक मरीजों की सेवा करते हैं।
मोहम्मद शरीफ ने शहर में ऐसी सभी लाशों का अंतिम संस्कार करने का उत्तरदायित्व भी लिया है जिनका कोई दावेदार नहीं है। उनके लिए मृतक के का धर्म का कोई मतलब नहीं है।
वे अपने इस सामाजिक कार्य के लिए लोगों से चन्दा इकट्ठा करते हैं। रमज़ान महीने में तो वह ज़कात जमा करने के लिए विशेष प्रयास करते हैं।

उत्तर प्रदेष के मोहम्मद शरीफ को गरीब तथा जरूरतमंद रोगियों की निःस्वार्थ सेवा के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    सामाजिक बहादुरी

सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
प्रो. अजय सिंह रावत सदा से न्याय के लिए लड़ाई करते रहे हैं। उन्होंने पर्यावरण सुरक्षा के उद्देश्य से भवन निर्माण, खनन और वन माफिया से भी टक्कर ली है।

शिक्षाविद तथा सामाजिक कार्यकर्ता, श्री रावत ने नैनीताल तथा नैनी झील को पर्यावरण की दृष्टि से बर्बाद होने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसके परिणामस्वरूप नैनीताल में बहुमंजिली इमारतें बनाने पर रोक लगा दी गई और 499 लोगों को इसके लिए दण्डित भी किया गया। प्रो. रावत के सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप नैनी झील की सफाई की गई और ठण्डी सड़क को पैदल चलने वालों के मार्ग के रूप में तैयार किया गया। यही नहीं, निहाल नदी के पास गैर-कानूनी खनन कार्यों पर भी रोक लगाई गई।

वे अपने लेखों से पर्यावरण सुरक्षा के संबंध में लोगों में निरन्तर जागरूकता लाते रहे हैं। उन्हें वन इतिहास के क्षेत्र में दो राष्ट्रीय फैलोशिप भी प्रदान की गई हैं। श्री रावत अपने छात्रों, वन विभाग, पुलिस और जिला प्रशासन के सहयोग से वृक्षारोपण के क्षेत्र में भी आगे रहे हैं।

उत्तराखण्ड के प्रो. अजय सिंह रावत को पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी निष्ठा के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार

क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    सामाजिक बहादुरी

सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
इन्हें उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के रोठा गांव में मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है। मृदु भाषी, कुमारी नीरज ने एक ऐसे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है जहां न तो कोई अध्यापक था, न ही किसी प्रकार की सुविधा। इस स्कूल को लोग ”अनाथ स्कूल“ के तौर पर जानते थे।

वे गांव की उन गिनी-चुनी लड़कियों में से एक हैं जो कभी स्कूल गईं थीं। गांव वालों की लगातार मांग पर दो वर्ष पूर्व उनके गांव में एक स्कूल खोला गया लेकिन कोई अध्यापक वहां तक नहीं पहुंचा। स्कूल में ताला लगा रहा।

सुश्री नीरज ने कुछ कर गुजरने का फैसला किया। वे आगे बढ़ीं और ताला खोल स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। इस कार्य में मदद के लिए न तो किसी गैर-सरकारी संगठन और न ही सरकार ने उनका हाथ थामा। फिर भी, नीरज अपने मिशन में आगे बढ़ती रहीं। वे हर रोज जल्दी स्कूल पहुंचती हैं और बच्चों के आने से पहले खुद साफ-सफाई भी करती हैं।
बच्चे खुश हैं। वे उन्हें खुशी से मदर टेरेसा कहते हैं। दरअसल, उन्होंने ही तो बच्चों को मदर टेरेसा के बारे में बताया है।

उत्तर प्रदेष की सुश्री नीरज को शिक्षा के प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों तथा उनकी निःस्वार्थ सेवा भावना के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में विषेष पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स

क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: सामाजिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

समाज सेवा ही दीपक कुमार का धर्म है। वे स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में स्थायी कर्मचारी हैं और नियमित रूप से रक्त दान कर समाज की सेवा कर रहे हैं। श्री दीपक कुमार 31 अगस्त 1979 से 01 जनवरी 2011 तक 113 बार रक्त दान कर चुके हैं।

श्री दीपक 15 साल की उम्र से ही रक्त दान करते रहे हैं। कहा जाता है कि वे सबसे कम उम्र के रक्त दाता हैं।

वे कई संस्थाओं के सदस्य और लिमका बुक आॅफ रिकाॅर्ड्स, 2004 के राष्ट्रीय रिकाॅर्ड होल्डर भी हैं।

वे अपनी समाज सेवा के लिए कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

रक्तदान द्वारा मानव जाति के प्रति उनकी सेवाओं का सम्मान करते हुए दिल्ली के  श्री दीपक कुमार को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    माइण्ड आॅफ स्टील
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

संतोष सिंह नेगी के जन्म से ही अंग छोटे तथा कमजोर थे। उनका जीवन संघर्षों से भरा है। उन्होंने स्वयं को किसी से कम नहीं माना और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सम्मान से अपना जीवन व्यतीत किया।

वे 10 वर्ष के थे कि उन्हें अपने परिवार के मुखिया की भूमिका निभानी पड़ी। उनके पिता सेना की ड्यूटी में उनसे बहुत दूर थे और बीमार मां बिस्तर पर थी। उनका एक छोटा भाई भी था।
दो वर्ष पश्चात उनकी माता का देहान्त हो गया और पिता भी सेवानिवृत्त हो गए। नियमित आय का कोई साधन न था, अतः श्री नेगी ने अपने परिवार का पालन करने तथा अपनी तथा अपने भाई की शिक्षा पूरी करने के लिए ट्यूशन देना शुरू किया।

वे बारहवीं कक्षा में ही थे कि उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य इंजीनियरी परीक्षा पास की। लेकिन पैसे के अभाव में इंजीनियरी की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके और बीएससी पाठ्यक्रम में प्रवेश पा लिया। इस दौरान वे अपने परिवार का पोषण करने के लिए ट्यूशन देते रहे।

उन्होंने भौतिकी शास्त्र में एमएससी और फिर बीएड की उपाधि प्राप्त की तथा आकाशवाणी, नजीबाबाद में कार्यक्रम देने लगे। वे राजीव गांधी स्नातकोत्तर छात्रवृत्ति के लिए भी चुने गए।
आज वे राॅयल इंटर काॅलेज, भैराकुण्ड में विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके छात्रों के परीक्षा परिणाम उनकी योग्यता का प्रमाण है।

उनका भाई पीएचडी कर रहा है। श्री नेगी का सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है। वे अर्थशास्त्र में एमए और एमबीए के पाठ्यक्रम में भाग ले रहे हैं तथा आईएएस की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड के श्री संतोष सिंह नेगी को अपनी सभी शारीरिक कमजोरियों और कठिनाइयों के बावजूद शान से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों के अन्तर्गत माइण्ड आॅफ स्टील पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: अमोदिनी पुरस्कार

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

गैर-सरकारी संगठन, पहल ने उत्तराखण्ड ने स्वयं सहायता समूह के गठन के क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त करने के साथ-साथ महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए छोटे-छोटे ऋणों की व्यवस्था करने में भी अपार सफलता प्राप्त की है।

1974-75 में गठित इस गैर-सरकारी संस्था ने शुरू में गदी बस्ती की 10 महिलाओं को 8000 रुपये के ऋण दिलवा कर अपना काम शुरू किया। समय बीतता गया और पहल सफलता की नई-नई सीढ़ीयाँ चढ़ती गयी। इस समय यह छोटी बचत के क्षेत्र में राज्य की सबसे बड़ी संस्था है।

इसके अन्तर्गत 537 स्वयं सेवा समूह काम कर रहे हैं और इसने 6000 महिलाओं को 5 करोड़ से भी अधिक के ऋण दिलवाए हैं।

पहल के अध्यक्ष श्री इस्लाम हुसैन ने यह संस्था पर्यावरण संबंधी मामलों के लिए शुरू की थी। 1994 में इसने महिलाओं के जीवन-यापन पर ध्यान देना शुरू किया और 25 महिलाओं को एचएमटी में नौकरी दिलाई गयी। यह कामयाबी से उत्साहित हो संस्था ने गन्दी बस्तियों की 10-10 महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाने शुरू किए। इस समय पहल अपने स्वयं सेवा समूहों की संख्या बढ़ाकर अगले 2 सालों में 10,000 करने की योजना पर काम कर रही है।

महिलाआ सशक्तिकरण की दिशा में किए जा रहे कार्यों के लिए उत्तराखण्ड की गैर-सरकारी संस्था, पहल को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स

क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: अमोदिनी विषेष पुरस्कार

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

गुलाबी गैंग उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में महिलाओं को न्याय दिलाने, घरेलू हिंसा से बचाने और समाज की कुरीतियों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहा है।

गत अनेक वर्षों से यह गैर-सरकारी संस्था रूढ़ीवादी परम्पराओं, जातिवाद, महिला निरक्षरता, घरेलू हिंसा, बाल श्रम, बाल-विवाह व दहेह प्रथा के खिलाफ आवाज उठा रही है।

संस्था की स्थापना पुरुष उत्पीड़न से औरतों को बचाने के लिए की गयी थी। लेकिन अब यह संस्था घर-घर जा कर परिवारों से अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने को कहती है और औरतों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

आज गुलाबी गैंग की हजारों महिला सदस्य है। संस्था के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए अनेक पुरूष भी अभियान में शामिल हो गए हैं। बात चाहे सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की हो या वृद्ध महिलाओं को पेंशन की, गुलाबी गैंग को आप सदा आगे पायेंगे।

जहाँ भी किसी पुरूष द्वारा किसी महिला के शोषण की बात सामने आती है, गैंग के सदस्य सामने आकर समझाते-बुझाते हैं और जरूरत पड़ने पर पुरुष की जग हँसाई करने से भी नहीं चूकते।

महिला सशक्तिकरण तथा महिलाओं को अपने अधिकार दिलवाने के लिए चलाये जा रहे अभियान के लिए उत्तर प्रदेश की गैर-सरकारी संस्था, गुलाबी गैंग को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का विषेष अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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जनसुनवाई - अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वननिवासी(वनाधिकारों की मान्यता)कानून-2006

Posted on 03 April 2011 by admin

100_2690राजधानी में आदिवासियों के हितों के प्रति सरकार का ध्यान आक्रसित करने हेतु सहकारिता भवन में आयोजित जन सुनवाई कार्यक्रम वनाधिकार से वंचित उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के वन गूजरों से लेकर बुन्देलखण्ड के चित्रकूट, ललितपुर के शहरिया तथा कोल आदिवासियों के साथ साथ वनटंगिया तथा थारू आदिवासियों के साथ सरकारी मशीनरी द्वारा लगातार किये जा रहे उत्पीड़न के दर्दनाक किस्से जब महिलाओं ने मंच पर आकर सुनाये तो सारा वातावरण करूणा मय बन गया। वनों पर आश्रित समुदायों के वनाधिकारों को मान्यता देने वाला कानून ‘‘अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वननिवासी(वनाधिकारों की मान्यता)कानून-2006‘‘ को 1 जनवरी 2008 से देशभर में लागू  किया जा चुका है। उŸार प्रदेश में भी सरकार द्वारा इसे लागू कराने के लिये हमारे संगठन राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच के साथ लगातार वार्तारत रहते हुये सकारात्मक दिशा में कई तरह के प्रयास व जिलास्तर पर प्रशासन तथा वनविभाग के लिये कई तरह के आदेश व निर्देश जारी किये हैं। लेकिन स्थानीय स्तर पर वनविभाग व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा राज्य सरकार के निर्देशों का अनुसरण न करके लगातार इस केन्द्रीय विशिष्ट कानून के क्रियान्वयन की प्रक्रिया को बाधित करने का काम किया जा रहा है। वनाधिकार कानून के तहत वनसमुदायों को मान्यता प्राप्त अधिकार सौंपने की बजाय लोगों को जंगलक्षेत्रों से बेदख़ली के आदेश जारी किये जा रहे हैं, समुदायों द्वारा प्रस्तुत किये गये दावों को निरस्त करने का अधिकार न होने के बावज़ूद बड़ी संख्या में निरस्त किया जा रहा है, सामुदायिक अधिकारों की बात पर एकदम चुप्पी है, लोगों को लघुवनोपज के अधिकार से वंचित किया जा रहा है और जंगल में अपनी ज़रूरतों का सामान लेने गये लोगों को लकड़ी काटने व शिकार आदि के मुकदमों में अंग्रेजी काल के कानूनों का सहारा लेकर झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। वनविभाग व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा ऐसा करके वन समुदायों को एक बार फिर उन्हीं ऐतिहासिक अन्यायों की भट्ठी में झोंकने का काम खुले आम किया जा रहा है, जिन्हें स्वीकार करते हुये देश कीे संसद ने यह कानून पारित किया है। सरकार भी इन सब कारनामों को देखते जानते हुये सिर्फ अधिकारियों को चेतावनी देने के अलावा इनके खिलाफ कोई बहुत ठोस कदम नहीं उठा रही है।

100_2701इस कार्यक्रम में वनाधिकार कानून के सफल क्रियान्वयन के रास्ते में आने वाली रुकावटों व वनाश्रित समुदायों के विभिन्न तरह से किये जाने वाले उत्पीड़न से सम्बंधित मामलों का व वनाश्रित समुदायों के ऊपर ब्रिटिश काल में बनाये गये भारतीय वन अधिनियम-1927 के तहत लगाये गये झूटे मुकदमों का प्रस्तुतिकरण किया जा रहा है। चूंकि वनविभाग द्वारा वनाधिकार कानून के आ जाने के बाद भी लोगों पर इन मुकदमों को लादा जाना बन्द नहीं किया गया है, जो कि वनाधिकार कानून का सीधा उलंघन है व जिससे देश के तमाम वनक्षेत्रों में एक संवैधानिक संकट पैदा हो रहा है। प्रदेश की बसपा सरकार ने अक्टूबर 2010 में जनपद सोनभद्र में 7000 मुकदमों को वापिस लेने की घोषणा की थी। लेकिन स्थानीय स्तर पर वनविभाग व प्रशासन द्वारा इन सब मामलों में लोकअदालत लगा कर आदिवासियों व अन्य परम्परागत समुदाय पैसा लेकर अपराध स्वीकार कराया जा रहा है व उनका आपराधिक इतिहास बनाया जा रहा है जिससे कि वनाधिकार कानून की प्रस्तावना में दिये गये ऐतिहासिक अन्याय की पुर्नावृति की जा रही है।

इस जनसुनवाई में ऐसे कई गंभीर मामले जूरी सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत किये गये हैं, जिसमेंः-
उ0प्र0 के जनपद सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर पर वनविभाग व पुलिस विभाग द्वारा आदिवासीयों को माओवादी बना कर झूठी कार्यवाही करने के केस शामिल है।ं।
इन्हीं जनपदों से वनाश्रित समुदाय के ऊपर लदे करीब 10000 फर्जी केसों की सूची भी जूरी सदस्यों के समक्ष रखी जायेगी। इन मुकदमों में 80 फीसदी संख्या महिलाओं की है।
प्रदेश के सात जनपदों के टांगिया गांवों की समस्या के भी केस शामिल हैं। यह गांव आज भी वनविभाग के अधीन है जिन्हें अंग्रेजी शासन काल में वनों को लगाने के लिये बंधुआ मज़दूरों की तरह इस्तेमाल किया गया था। यह गांव अभी तक अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित है व देश के नागरिक तक कहलाने के लिये मोहताज हैं। इन्हें अभी तक वोट देने का भी अधिकार नहीं है। इन गांवों को राजस्व ग्रामों का दर्जा देने के लिये मुख्य सचिव के आदेश के बाद भी वनविभाग द्वारा अड़ंगा लगाया जा रहा है।
वनाधिकार कानून के तहत सामुदायिक अधिकारों को बहाल न कियेे जाने के सम्बन्ध में केस प्रस्तुत किया गया।
प्रदेश में शिवालिक की पहाड़ियों पर रहने वाले घुमन्तु जनजातीय समुदाय के वनगुजर के गंभीर मामले शामिल होगें जिन्हें कानून के लागू होने के चार साल बाद भी कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। अभी तक इनके अधिकारों को मान्यता नहीं दी जा रही बल्कि इन परिवारों को वनविभाग द्वारा बेदख़ल करने की पूरी योजना बनाई जा रही है। राजा जी नेशनल पार्क के निदेशक द्वारा वनगुजरों के साथ साम्प्रदायिक व्यवहार किया जा रहा है जिसके बारे में कुछ खास केसों को इस जनसुनवाई में प्रस्तुत किया गया।
जनपद खीरी में जंगलों में रहने वाले कई थारू आदिवासीयों पर वन्य जन्तुओं के शिकार के अनेकों झूठे मामले दर्ज किये गये है जिसमें आदिवासीयों को झूठी कार्यवाही कर जेल तक भेजा जा चुका है, लेकिन असली शिकारियों की जो कि वनविभाग की मिली भगत से शिकार कर रहे हैं उनके उपर कोई भी जांच नहीं की गयी है।
इसी तरह खीरी जनपद के ही मोहम्मदी तहसील के दिलावर नगर में सरकार द्वारा ही बसाये गये बाढ़ से उजड़े परिवारों को वनाधिकार कानून लागू होने के बाद वनविभाग ने बड़ी बर्बरता के साथ उनके घरों को आग लगा दी, लोगों की पिटाई की व महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की। यह तब किया गया जब इन परिवारों के पास हाई कोर्ट का आदेश था कि इन परिवारों को उजाड़ा न जाये।
इसी तरह पलिया तहसील, खीरी के नेपाल सीमा से जुड़े फिक्सड डिमांड होल्डिंग गांव गौरी फंटा को उजाड़ने के लिये वनविभाग द्वारा पूरा माहौल बनाया जा रहा है जबकि यह गांव वनाधिकार कानून के तहत बसाये जाने चाहिये।
मिर्जापुर, चित्रकूट, बांदा में भी वनाधिकार कानून को लागू करने की प्रक्रिया न के बराबर है। सबसे बड़ी समस्या इन क्षेत्रों में बसे आदिवासी कोल समुदाय के अनुसूचित जनजाति का दर्जा न मिलना है। जिसकी वजह से वनाधिकार कानून के अनुरूप उन्हें 75 वर्ष का प्रमाण देने के लिये बाध्य किया जा रहा है। हांलाकि प्रदेश सरकार ने 50 साल तक के साक्ष्य को आधार मानते हुये मालिकाना हक़  देने की बात कही है लेकिन वनविभाग व जिलाधिकारी स्तर पर इस कानून को लागू करने की कोई भी राजनैतिक इच्छा नहीं है।
यह जनसुनवाई केवल उ0प्र0 तक सीमित नहीं है इस जनसुनवाई में उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, झाड़खंड़ के भी वनाधिकार से सम्बन्धित कई मामलों की प्रस्तुति।

ban-gujar-jan-sunyai-me-apni-samasyai-batate-huyeजनसुनवाई में प्रस्तुत किये जाने वाले केसों की सूची
1.    दिलावर नगर, मोहम्मदी तहसील, खीरी में वनविभाग द्वारा सन् 2007 में घरों को जलाने व फसलों को जलाने के सम्बन्ध में
2.    पल्हनापुर टांगीयां ग्राम, खीरी में वनाधिकार कानून की कार्यवाही को  लम्बित करना
3.    खीरी के थाना पलिया, ग्रा0 बसही व थाना चन्दन चैकी सीमा क्षेत्र में वन्य जीव-जन्तु संरक्षण अधि0 की आड़ लेकर आदिवासियों का उत्पीड़न का मामला
4.    गौरी फंटा, फीक्सड डीमांड होल्डिंग ग्राम को वनविभाग द्वारा बेदखली के नोटिस ज़ारी करना
5.    ग्राम ढकिया, जनपद पीलीभीत में वनविभाग द्वारा बेदखली का मामला
6.    जनपद सहारनपुर,गोरखपुर,महराजगंज,खीरी के टांगीयां गांव को वनाधिकार कानून के तहत राजस्व ग्राम का दर्जा न देने का मामला
7.    गोंडा जनपद में पांच टांगीयां ग्रामों में वनविभाग द्वारा वनाधिकार कानून लागू होने के बाद भी ग्रामीणों के खेतों में गडडे खोदे जाने व बंधुआ मज़दूरी प्रथा को ज़ारी रखने का मामला
8.    उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड़ के शिवालिक पहाड़ीयों में घुमन्तु जनजाति समुदाय वनगुजरों के वनाधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने का मामला
9.    जनपद चन्दौली में गोंड़ व अन्य आदिवासीयों को अनुसूचित जनजाति के दर्जे में शामिल न करने का मामला
10.    मगरदह टोला, ग्राम सत्तद्वारी जनपद सोनभद्र में वनविभाग व सांमतों द्वारा आदिवासीयों के घरों व फसलों को जलाने व महिलाओं के साथ बदसलूकी का मामला
11.    राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच के कार्यकर्ता रामशकल गोंड़ को माओवादी बना कर जेल में ठूसने का मामला
12.    भैसइया नाला, ग्राम पनिकप, सोनभद्र में वनविभाग व सांमती तत्वों द्वारा ग्रामीणों के घर व फसल जलाने का मामला
13.    जनपद चित्रकूट में डबल एंट्री का मामला
14.    जनपद सोनभद्र में वनविभाग व पुलिस विभाग द्वारा आदिवासी, अन्य परम्परागत समुदाय व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर करीब 10000 फर्जी मुकदमें लादने का मामला

उक्त के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, तथा मध्य प्रदेश से अन्य वनविभाग द्वारा वनाधिकार अधिनियम के उल्लघंन के मामले जूरी के सामने रखने के लिये तकरीबन हजारों लोग अपने-अपने दमन, शोषण व अत्याचारों के मामलों को जूरी के सामने रखा।

इस जनसुनवाई में ज़ूरी मैम्बर हैंः- श्री मन्नूलाल मरकाम (रिटायर्ड न्यायाधीश जबलपुर, सदस्य राष्ट्रीय वनाधिकार संयुक्त समीक्षा समिति), श्री रवि किरण जैन (वरिष्ठ अधिवक्ता इलाहाबाद उच्च न्यायालय), सुश्री स्मिता गुप्ता (सदस्य वनाधिकार कानून ड्राफ्टिंग कमेटी) एवं सुश्री मणिमाला (निदेशक गाॅधी स्मृति दर्शन-नई दिल्ली)

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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आईआईएफएल ने में इन्वेस्टर मीट का आयोजन किया

Posted on 08 January 2011 by admin

रुद्रपुर । आईआईएफएल (इण्डिया इन्फोलाइन लिमिटेड) जो कि सभी प्रकार की वित्तीय सेवाओं की प्रदाता अग्रणी कंपनी है, ने प्रतिभूति शेयर बाजारों में परिलक्षित नवीन ऊर्जा के परिदृश्य में भारतीय शेयर बाजारों के लिए भावी संभावनाओं और निवेश के मूलभूत तथ्यों को लेकर निवेशकों के नज़रिए पर बात करने के लिए रुद्रपुर में एक निवेशक सम्मेलन (इन्वेस्टर मीट) का आयोजन किया। आईआईएफएल, देश मेें वित्तीय सेवायें प्रदान करने वाली एक अग्रणी कंपनी है और 450 से अधिक शहरों में 2,700 से अधिक कारोबारी लोकेशनों के नेटवर्क के माध्यम से ऑनलाइन ब्रोकिंग क्षेत्र में एक प्रमुख कंपनी है। रुद्रपुर के रिटेल निवेशकों ने इस सम्मेलन में भाग लिया। 2 घंटों से भी अधिक समय तक, आईआईएफएल के विशेषज्ञ सुभाश चन्द्र अग्रवाल, सी.ए. ने पूंजी बाजारों, जोखिम और प्रतिफल, निवेश माध्यमों, अन्य परिसम्पत्ति वर्गों की तुलना में प्रतिभूतियों के प्रतिफल, व्यापार विकल्प, ईटीएफ आदि पर बात की जबकी आईआईएफएल के प्रवक्ता ने भारतीय शेयर बाजारों पर आधारित एक बातचीत सत्र में निवेशकों के प्रश्नों के उत्तर दिए। मीडिया से बात करते हुए,  स्ंादीप अरोरा ए एवीपीए आईआईएफएल ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि, उत्तरांचल की जनता सामान्य और रुद्रपुर की विशेश रूप से शेयर बाजारोें में निवेश को लेकर बेहद जागरूक और बाजार की गहन जानकारियों से युक्त है। उत्तरांचल के लिए हमारी विशेष योजनाएं हैं और पूरे उत्तरांचल राज्य में रिटेल निवेशकों की जरूरत के अनुसार अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए हमने अपने नेटवर्क का विस्तार किया है।´ श्री अरोरा ने आगे कहा कि, `भारतीय विकास की गाथा, वित्तीय वर्ष 2011 की दूसरी तिमाही में बेहतरीन जीडीपी संवृद्धि के साथ अभी भी बेहद सुसंगठित है। हालांकि वैश्विक मसलों और हाल के घरेलू घोटालों के कारण शेयर बाजार, लघु अवधि में अस्थिर रह सकते हैं, लेकिन लम्बी अवधि में इनमें स्वस्थ बढ़ोत्तरी की हमें पूरी उम्मीद है।´

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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